संसार की सभी भाषाओं में केवल संस्कृत में ही उच्चारण सर्वत्र एक समान होना

‘लिखते समय अक्षर का रूप महत्वपूर्ण होता है, उसी प्रकार उच्चारण करते समय वह महत्त्वपूर्ण होता है । संसार की सभी भाषाओं में केवल संस्कृत में ही इसे महत्व दिया गया है; इसलिए भारत में सर्वत्र वेदों का उच्चारण समान और परिणामकारक है ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

‘मानव’ किसे कहा जा सकता है ?

‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, स्वेच्छाचार, प्राणियों की विशेषता हो सकती है, मानव की नहीं । ‘धर्मबंधन में रहना, धर्मशास्त्र का अनुकरण करना’, ऐसा करनेवाला ही ‘मानव’ कहला सकता है ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

भारत को ऐसे नेताओं की आवश्यकता है !

‘भारत में अन्य कुछ आयात करने की अपेक्षा राष्ट्रप्रेमी तथा धर्मप्रेमी नेता आयात करें । तब अन्य कुछ भी आयात नहीं करना पडेगा । भारत पुनः विश्वगुरु बनेगा और पूर्ववैभव प्राप्त करेगा !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

हिन्दुओं का धर्मांतरण ही न हो, इसके लिए प्रयास करें !

‘धर्मांतरित हिन्दुओं को पुनः हिन्दू धर्म में अपनाने का कार्य करने की अपेक्षा ‘हिन्दू धर्मांतरित ही न हो’, ऐसा कार्य करना अधिक महत्वपूर्ण है !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

धन का त्याग अधिक सुलभ !

‘धन अर्जित करने की अपेक्षा उसका त्याग करना अधिक सुलभ है, तब भी मानव वह नहीं करता, यह आश्चर्य की बात है !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

विज्ञान और बुद्धिप्रमाणवादी !

‘विज्ञान का वास्तव में अध्ययन करनेवाले ही विज्ञान की सीमाएं जानते हैं । अन्य तथाकथित बुद्धिप्रमाणवादी विज्ञान को सिर पर चढाते हैं !’ – (परात्पर गुरु)डॉ. आठवले

ईश्वर के विश्व में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण क्या है ?

‘भारत में ‘भारतरत्न’ सर्वोच्च पद है । विश्व में ‘नोबेल प्राइज’ सर्वोच्च पद है, जबकि सनातन द्वारा उद्घोषित ‘जन्म-मृत्यु से मुक्ति’ तथा ‘संत’, ये पद ईश्‍वर के विश्‍व में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

एकरूपता की प्रक्रिया !

एक बूंद पानी समुद्र में डालें, तो वह समुद्र से एकरूप हो जाता है । उसी प्रकार राष्ट्रभक्त राष्ट्र से एकरूप होता है तथा साधक परमात्मा से एकरूप होता है । – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले