शीघ्र ही होगी हिन्दू राष्ट्र की स्थापना !
‘कलियुगांतर्गत कलियुग अब वृद्ध हो चुका है । शीघ्र ही वह *समाप्त होगा और कलियुगांतर्गत सत्ययुग आएगा, अर्थात हिन्दू राष्ट्र की स्थापना होगी ।’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले
‘कलियुगांतर्गत कलियुग अब वृद्ध हो चुका है । शीघ्र ही वह *समाप्त होगा और कलियुगांतर्गत सत्ययुग आएगा, अर्थात हिन्दू राष्ट्र की स्थापना होगी ।’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले
‘पश्चिमी संस्कृति शिक्षा को प्रोत्साहित करनेवाली व्यक्तिगत स्वतंत्रता का समर्थन करती है और दुख को निमंत्रण देती है, जबकि हिन्दू संस्कृति स्वेच्छा नष्ट कर सत-चित-आनंद अवस्था कैसे प्राप्त करें, यह सिखाती है ।’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉक्टर जयंत आठवले
‘मुसलमान एवं ईसाई उनके हित का ध्यान रखनेवालों को ही मत देते हैं; जबकि हिन्दू बुद्धिप्रमाणवाद, समाजवाद, साम्यवाद इत्यादि विभिन्न विचारधाराओं के अनुसार मत देते हैं । इस कारण उनके मत विभाजित हो जाते हैं । इसलिए भारत में उनका कोई मूल्य नहीं रह गया । हिन्दुओं को धर्म सिखाने पर ही उनके मत अन्य … Read more
मुसलमान अथवा ईसाइयों के धार्मिक उत्सवों में भीड जमा करने के लिए नाटक, चलचित्र, वाद्यवृंद जैसे कार्यक्रम नहीं रखे जाते । इसके विपरीत हिन्दुओं के धार्मिक उत्सवों के समय ऐसे कार्यक्रम रखे जाते हैं । इससे यह प्रश्न उत्पन्न होता है, ‘क्या हिन्दू केवल मनोरंजन के लिए धार्मिक उत्सव मनाते हैं ?’ – सच्चिदानंद परब्रह्म … Read more
‘संसार के वैद्य, अभियंता, अधिवक्ता, वास्तु विशारद इत्यादि विभिन्न विषयों के विशेषज्ञ; उसी प्रकार गणित, भूगोल, इतिहास, विज्ञान इत्यादि कोई भी विषय दूसरे विषय के संदर्भ में एक वाक्य भी नहीं बता सकता । केवल अध्यात्म ही एकमात्र ऐसा विषय है, जो विश्व के सभी विषयों से संबंधित त्रिगुण, पंचमहाभूत तथा शक्ति भाव, चैतन्य, आनंद … Read more
‘राजनीतिक दल अथवा किसी बडे संगठन में पद पाने की अपेक्षा भगवान का भक्त बनना अधिक श्रेष्ठ है !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
‘भगवान को देखने के लिए चश्मे की आवश्यकता नहीं और भगवान की बात सुनने के लिए कान में यंत्र लगाने की आवश्यकता नहीं; इसके लिए केवल शुद्ध अंतःकरण ही आवश्यक है । प्रजा वत्सल शासनकर्ता भी ऐसा ही होता है । उसे दुखी जनता को देखने के लिए चश्मा लगाने और जनता की समस्याएं सुनने … Read more
‘पश्चिमी विचारधारा और शोध कार्य केवल सुखप्राप्ति के लिए होते हैं । मानव की सुख की लालसा कभी पूर्ण नहीं होती, इसलिए अनेक शोध करने पर भी मानव अधिक और अधिक दुखी ही होते जा रहा है । इसके विपरीत हिन्दू धर्म ईश्वर प्राप्ति हेतु अर्थात चिरंतन आनंद की प्राप्ति हेतु मार्गदर्शन करता है, इसलिए … Read more
‘लिखते समय अक्षर का रूप महत्वपूर्ण होता है, उसी प्रकार उच्चारण करते समय वह महत्त्वपूर्ण होता है । संसार की सभी भाषाओं में केवल संस्कृत में ही इसे महत्व दिया गया है; इसलिए भारत में सर्वत्र वेदों का उच्चारण समान और परिणामकारक है ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, स्वेच्छाचार, प्राणियों की विशेषता हो सकती है, मानव की नहीं । ‘धर्मबंधन में रहना, धर्मशास्त्र का अनुकरण करना’, ऐसा करनेवाला ही ‘मानव’ कहला सकता है ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले