स्वभावदोष एवं अहं

अ. (बुरी) आदतों को छोडने के लिए ईश्वर के सामने ध्येय रखकर कृति करने का प्रयत्न करना । आ. अपना निरीक्षण जागृत रहना चाहिए, तभ ही स्वयं में अहं के पहलू एवं त्रुटियां ध्यान में आती हैं । इ. जो अपनी चूकें बताता है एवं मान्य करता है, वही ईश्वर को प्रिय है एवं ईश्वर … Read more

मनमुक्तता का महत्त्व

अ. जब (खेत में) नदी का पानी आता है, तब उसे पाट बनाकर दिशा देनी पडती है; अन्यथा वह समस्त (खेत) नष्ट कर देता है । उसीप्रकार मन में आ रहे विचारों को दिशा देनी पडती है । आ. ‘मन खोलना’, अर्थात ईश्वर द्वारा सुझाया गया बोलना एवं बताना । मन खाली करने के उपरांत … Read more

शीघ्र ही होगी हिन्दू राष्ट्र की स्थापना !

‘कलियुगांतर्गत कलियुग अब वृद्ध हो चुका है । शीघ्र ही वह *समाप्त होगा और कलियुगांतर्गत सत्ययुग आएगा, अर्थात हिन्दू राष्ट्र की स्थापना होगी ।’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

पश्चिमी एवं हिन्दू संस्कृति में भेद !

‘पश्चिमी संस्कृति शिक्षा को प्रोत्साहित करनेवाली व्यक्तिगत स्वतंत्रता का समर्थन करती है और दुख को निमंत्रण देती है, जबकि हिन्दू संस्कृति स्वेच्छा नष्ट कर सत-चित-आनंद अवस्था कैसे प्राप्त करें, यह सिखाती है ।’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉक्टर जयंत आठवले

हिन्दुओं को धर्म सिखाने की आवश्यकता !

‘मुसलमान एवं ईसाई उनके हित का ध्यान रखनेवालों को ही मत देते हैं; जबकि हिन्दू बुद्धिप्रमाणवाद, समाजवाद, साम्यवाद इत्यादि विभिन्न विचारधाराओं के अनुसार मत देते हैं । इस कारण उनके मत विभाजित हो जाते हैं । इसलिए भारत में उनका कोई मूल्य नहीं रह गया । हिन्दुओं को धर्म सिखाने पर ही उनके मत अन्य … Read more

यह स्थिति हिन्दुओं के लिए लज्जाजनक है !

मुसलमान अथवा ईसाइयों के धार्मिक उत्सवों में भीड जमा करने के लिए नाटक, चलचित्र, वाद्यवृंद जैसे कार्यक्रम नहीं रखे जाते । इसके विपरीत हिन्दुओं के धार्मिक उत्सवों के समय ऐसे कार्यक्रम रखे जाते हैं । इससे यह प्रश्न उत्पन्न होता है, ‘क्या हिन्दू केवल मनोरंजन के लिए धार्मिक उत्सव मनाते हैं ?’ – सच्चिदानंद परब्रह्म … Read more

विज्ञान की तुलना में अध्यात्म की श्रेष्ठता !

‘संसार के वैद्य, अभियंता, अधिवक्ता, वास्तु विशारद इत्यादि विभिन्न विषयों के विशेषज्ञ; उसी प्रकार गणित, भूगोल, इतिहास, विज्ञान इत्यादि कोई भी विषय दूसरे विषय के संदर्भ में एक वाक्य भी नहीं बता सकता । केवल अध्यात्म ही एकमात्र ऐसा विषय है, जो विश्व के सभी विषयों से संबंधित त्रिगुण, पंचमहाभूत तथा शक्ति भाव, चैतन्य, आनंद … Read more

शासनकर्ता ऐसा हो !

‘भगवान को देखने के लिए चश्मे की आवश्यकता नहीं और भगवान की बात सुनने के लिए कान में यंत्र लगाने की आवश्यकता नहीं; इसके लिए केवल शुद्ध अंतःकरण ही आवश्यक है । प्रजा वत्सल शासनकर्ता भी ऐसा ही होता है । उसे दुखी जनता को देखने के लिए चश्मा लगाने और जनता की समस्याएं सुनने … Read more

कहां पश्चिमी विचारधारा और कहां हिन्दू धर्म !

‘पश्चिमी विचारधारा और शोध कार्य केवल सुखप्राप्ति के लिए होते हैं । मानव की सुख की लालसा कभी पूर्ण नहीं होती, इसलिए अनेक शोध करने पर भी मानव अधिक और अधिक दुखी ही होते जा रहा है । इसके विपरीत हिन्दू धर्म ईश्वर प्राप्ति हेतु अर्थात चिरंतन आनंद की प्राप्ति हेतु मार्गदर्शन करता है, इसलिए … Read more