धर्म कार्य करने का महत्त्व !
‘किसी जाति अथवा पंथ का कार्य करनेवालों का कार्य तात्कालिक होता है, परन्तु धर्म का मानवजाति के लिए किया जानेवाला कार्य स्थल एवं काल की सीमाओं के परे होता है ।’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले
‘किसी जाति अथवा पंथ का कार्य करनेवालों का कार्य तात्कालिक होता है, परन्तु धर्म का मानवजाति के लिए किया जानेवाला कार्य स्थल एवं काल की सीमाओं के परे होता है ।’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले
‘सक्रिय हिन्दुओं, निद्रित हिन्दुओं को जागृत करने में समय व्यर्थ करने की अपेक्षा अब जागृत हिन्दुओं को दिशा देने का कार्य करो । तभी आप निकट आए आपातकाल से बचेंगे और हिन्दू राष्ट्र की स्थापना कर पाएंगे !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले
‘पुलिस तथा सेना में ही नहीं, प्रशासन में सभी को भर्ती करते समय हिन्दू राष्ट्र में ‘राष्ट्र एवं धर्म के प्रति प्रेम’ सबसे बडा घटक माना जाएगा !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले
‘भ्रष्टाचार उजागर करनेवाले प्रशासकीय अधिकारी अथवा कर्मचारी दिखाओ और एक लाख रुपए पाओ’, ऐसी घोषणा करने पर भी क्या कभी किसी को वह पुरस्कार मिलेगा ? – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले
‘नेता जनता को पैसा देकर अथवा वाहन की सुविधा देकर सभा में बुलाते हैं । इसके विपरीत संतों के पास तथा धार्मिक उत्सव में बिना बुलाए लाखों की संख्या में भक्त आते हैं और धन अर्पण करते हैं ! इससे यह ध्यान में आता है कि संतों की तुलना में नेताओं का महत्त्व शून्य है … Read more
‘बुद्धिप्रमाणवादियों एवं विज्ञान निष्ठों में यह अहंकार होता है कि ‘मुझे जो पता है, वही सत्य है’ और नया कुछ समझने की उनमें जिज्ञासा नहीं होती । इसके विपरीत ऋषियों में अहंकार न होने के कारण तथा जिज्ञासा होने के कारण उनके ज्ञान की श्रेणी बढती जाती है और वे अनंत कोटि ब्रह्मांड के असीमित … Read more
‘किसी थाली में कीटाणुओं की वृद्धि सीमा से अधिक हो जाए, तो थाली में रखा भोजन कीटाणुओं के लिए पर्याप्त नहीं होता । इस कारण वे मर जाते हैं । ऐसी ही अब पृथ्वी की स्थिति हो गई है । पृथ्वी की क्षमता ३०० करोड़ लोगों का पालन पोषण करने की है । अब पृथ्वी … Read more
‘भक्तों द्वारा भक्तिभाव से मंदिरों में अर्पण किए धन को मंदिरों का सरकारीकरण कर लूटनेवाले सर्वदलीय नेता, अर्थात माता-पिता की संपत्ति हडपकर उसे खर्च कर देनेवाले निकम्मे बच्चे !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले
अ. (बुरी) आदतों को छोडने के लिए ईश्वर के सामने ध्येय रखकर कृति करने का प्रयत्न करना । आ. अपना निरीक्षण जागृत रहना चाहिए, तभ ही स्वयं में अहं के पहलू एवं त्रुटियां ध्यान में आती हैं । इ. जो अपनी चूकें बताता है एवं मान्य करता है, वही ईश्वर को प्रिय है एवं ईश्वर … Read more
अ. जब (खेत में) नदी का पानी आता है, तब उसे पाट बनाकर दिशा देनी पडती है; अन्यथा वह समस्त (खेत) नष्ट कर देता है । उसीप्रकार मन में आ रहे विचारों को दिशा देनी पडती है । आ. ‘मन खोलना’, अर्थात ईश्वर द्वारा सुझाया गया बोलना एवं बताना । मन खाली करने के उपरांत … Read more