राष्ट्रविरोधी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के समर्थक !
‘व्यक्ति की अपेक्षा समाज और समाज की अपेक्षा राष्ट्र अधिक महत्त्वपूर्ण है, यह न समझनेवाले व्यक्तिगत स्वतंत्रता का समर्थन करनेवाले देश को विनाश की ओर ले जा रहे हैं !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले
‘व्यक्ति की अपेक्षा समाज और समाज की अपेक्षा राष्ट्र अधिक महत्त्वपूर्ण है, यह न समझनेवाले व्यक्तिगत स्वतंत्रता का समर्थन करनेवाले देश को विनाश की ओर ले जा रहे हैं !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले
‘कोई भी राजनीतिक दल तृतीय विश्वयुद्ध के समय हिन्दुओं की रक्षा नहीं कर पाएगा; क्योंकि उनके पास आध्यात्मिक बल नहीं है । उस काल में स्वयं को बचाने के लिए अभी से साधना करें !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले
‘आदि शंकराचार्य तथा समर्थ रामदास स्वामी के समय बुद्धिप्रमाणवादी नहीं थे, यह अच्छा हुआ ,अन्यथा वे बच्चों द्वारा घर-परिवार छोडकर आश्रम में जाकर साधना करने का विरोध करते और संसार उनके अनुपम ज्ञान से सदा के लिए वंचित रह जाता ।’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले
विज्ञान की भांति बुद्धिगम्य शिक्षा यह सिखाती है कि ‘जीवन सुखमय कैसे जिएं’; जबकि अध्यात्म हमें यह सिखाता है कि ‘जीवन आनंद से कैसे जिएं और जन्म मृत्यु के फेरों से भी कैसे मुक्त हों !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले
‘भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में (अध्याय २, श्लोक ११) अर्जुन से कहा, अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे । अर्थात ‘हे अर्जुन, जिनके लिए शोक नहीं करना चाहिए, उन लोगों के लिए तुम शोक करते हो तथा विद्वानों के समान युक्तिवाद करते हो ।’ अर्जुन के समान आजकल अधिकांश हिन्दुओं की स्थिति हो गई है । कुछ करने … Read more
‘पूरे विश्व के जिज्ञासु चिरंतन आनंद की प्राप्ति हेतु अध्यात्म सीखने के लिए संसार के अन्य किसी भी देश में नहीं जाते, भारत आते हैं , जबकि भारतीय केवल सुखप्राप्ति के लिए अमेरिका, इंग्लैंड इत्यादि देशों में जाते हैं !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म (डॉ.) जयंत आठवले
‘हिन्दू राष्ट्र में अहंकार बढानेवाली व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सीमाएं होंगी तथा सामाजिक स्वास्थ्य एवं राष्ट्रीय सुरक्षा बढानेवाली तथा उसके माध्यम से अहं नष्ट कर ईश्वरप्राप्ति करानेवाली समष्टि साधना की प्रधानता होगी !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले
‘कहां माता-पिता को भी कूडे के समान वृद्ध आश्रम में भेज देनेवाली पश्चिमी विचारधारा की आज की पीढी और कहां ‘यह पूरा विश्व ही मेरा घर है’, ऐसा सिखानेवाली हिन्दू धर्म की अभी तक की पीढियां !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले
‘ध्वनि-प्रदूषण, जल-प्रदूषण, वायु- प्रदूषण इत्यादि के विषय में सदैव समाचार आते हैं; परंतु उनके मूल में निहित रजतम के प्रदूषण की ओर धर्मशिक्षा के अभाव में किसी का भी ध्यान नहीं जाता !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉक्टर आठवले
‘कहां पूर्णतः अपनी देख-रेख में रहनेवाले अपने एक या दो बच्चों पर भी सुसंस्कार करने में असक्षम आजकल के अभिभावक और कहां अपने सहस्रों भक्तों पर साधना का संस्कार करनेवाले संत एवं गुरु !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले