पितृपक्ष में श्राद्धविधि (श्राद्धकर्म) करने के पश्‍चात पितरों के पिंड में अत्‍यधिक सकारात्‍मक परिवर्तन होना

‘पितृपक्ष में पितरों के लिए किए श्राद्ध का श्राद्धविधि में उपयोग किए पिंडों पर क्‍या परिणाम होता है ?’, इसका वैज्ञानिक अध्‍ययन करने के लिए २७.९.२०१८ को रामनाथी, गोवा स्‍थित सनातन के आश्रम में ‘महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय’ द्वारा एक परीक्षण किया गया ।

‘एलोपैथिक सेनिटाइजर’ (रोगाणुरोधक) की तुलना में ‘आयुर्वेदिक सेनिटाइजर’ का उपयोग करना स्‍वास्‍थ्‍य की दृष्‍टि से तथा आध्‍यात्मिक दृष्‍टि से भी लाभदायक होना

‘एलोपैथिक सेनिटाइजर’ और ‘आयुर्वेदिक सेनिटाइजर’ से प्रक्षेपित स्पंदनों का वैज्ञानिक अध्ययन करने के लिए २५.४.२०२० को रामनाथी, गोवा स्थित सनातन के आश्रम में ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ द्वारा एक परीक्षण किया गया ।

देवतातत्त्व आकृष्‍ट करनेवाली सात्त्विक रंगोलियां एवं सात्त्विक चित्रों में देवताओं के यंत्र की भांति सकारात्‍मक ऊर्जा (चैतन्‍य) होना

महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय’ द्वारा ‘यूनिवर्सल ऑरा स्‍कैनर (यूएएस)’ उपकरण के माध्‍यम से किया गया देवता का यंत्र, देवताआें के सात्त्विक चित्र और सात्त्विक रंगोली का वैज्ञानिक परीक्षण

भूमिपर सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी के पदचिन्ह अंकित होनेपर उनमें विविध शुभचिन्ह दिखाई देना

१०.३.२०१८ को रामनाथी (गोवा) के सनातन आश्रम में आयोजित सौरयाग के दिन भूमिपर सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी के पदचिन्ह अंकित हुए तथा उनमें विविध शुभचिन्ह दिखाई दे रहे थे ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा बताया प्रतिशत और उपकरणों द्वारा किए परीक्षण में समानता होना तथा उनके दृष्टा होने की प्रतीति !

देवता का चित्र उनके मूल रूप से जितना अधिक मिलता-जुलता होता है, उतना ही उसमें देवता का तत्त्व अधिक मात्रा में होता है ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का मुखमंडल, आश्रम की दीवारें तथा साधकों के शरीरपर अनिष्ट शक्तियों के मुख और आकृतियां दिखाई देना

प्रत्येक युग में देवासुर युद्ध निरंतर होता रहता है । आज के इस कलियुगांतर्गत कलियुग में भी वह चल रहा है । सप्तलोकों में विद्यमान दैवीय अथवा अच्छी और सप्तपातालों में विद्यमान अनिष्ट शक्तियों में चल रहे इस युद्ध का स्थूल से प्रकटीकरण भूतलपर भी विविध रूपों में दिखाई देता है ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का कक्ष तथा उससे संबंधित वस्तुओं में आए बुद्धिअगम्य परिवर्तन !

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी समष्टि गुरु एवं जगद्गुरु होने के कारण उनका अवतारकार्य संपूर्ण ब्रह्मांड में चालू रहता है । इस कार्य को पूर्णत्व की ओर ले जाने हेतु उनके कक्ष में कार्यरत पंचतत्त्व अन्य स्थानों की अपेक्षा अधिक संवेदनशील होती हैं ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का कक्ष तथा परिसर में स्थित वृक्षोंपर हुए अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण

वर्ष १९८९ से लेकर परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के जीवन में कई बार महामृत्युयोग आए । वर्ष २००९ में आया हुआ परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का महामृत्युयोग तो बहुत कठिन था ।

‘ईश्‍वरीय राज्य’ की निर्मिति की अटल प्रक्रिया : सूक्ष्म का ‘देवासुर युद्ध’ !

वातावरण में अच्छी और अनिष्ट दोनों प्रकार की शक्तियां कार्यरत होती हैं । कोई भी शुभकार्य करते समय अच्छी और अनिष्ट इन दोनों शक्तियों का संघर्ष होता है ।

सनातन आश्रम की कोटा फर्शपर अपनेआप उभरे ॐ के आसपास श्‍वेत वलय बनना

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के निवासवाले गोवा के सनातन आश्रम में लगाए गए कोटा फर्श पर वर्ष २०१३ में कुछ स्थानों पर अपनेआप ॐ अंकित हुआ था । १५.१२.२०१७ को परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को इस ॐ के आसपास श्‍वेत वलय बनने की घटना दिखाई दी ।