सनातन संस्था के ४०वें संत पू. गुरुनाथ दाभोलकरजी (आयु ७९ वर्ष) की साधनायात्रा !
जब से मुझे साधना समझ में आई, तब से मैं आने-जानेवाले लोगों को नामजप करने के लिए बताने लगा ।
जब से मुझे साधना समझ में आई, तब से मैं आने-जानेवाले लोगों को नामजप करने के लिए बताने लगा ।
दादी को जब से गुरुकृपायोग के अनुसार साधना समझ में आई, तब से अर्थात पिछले १५ वर्षों से वह प्रातःकाल उठकर मानसपूजा, नामजप, दैनिक ‘सनातन प्रभात’ का वाचन, सारणी लेखन आदि व्यष्टि साधना के प्रयास नियमितरूप से करती है ।
२५ अगस्त को पू. (श्रीमती) उमा रविचंद्रन् के निवासपर सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने श्रीमती कांतीमती संतानम् से भावपूर्ण संवाद किया । इस संवाद के समय ही सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने श्रीमती कांतीमती संतानम् (आयु ८१ वर्ष) के संतपदपर विराजमान हो जाने की घोषणा की ।
‘मुझे बचपन से ही माता-पिता का सान्निध्य अल्प मिला । मैं ५ – ६ वर्षतक घरपर ही रही और उसके पश्चात शिक्षा हेतु पुणे में १ वर्ष और उसके पश्चात मिरज आश्रम में ४ वर्षोंतक रही ।
निष्ठापूर्वक धर्मकार्य करनेवाले देवद आश्रम के साधक श्री. शिवाजी वटकर (आयु ७२ वर्ष) के रूप में सनातन संस्था को क्षात्रतेजयुक्त संतरत्न की प्राप्ति हुई है ।
श्री. कुलकर्णीकाका भले ही दोपहर को मिलें अथवा देररात मिलें, तब भी वे सदैव उत्साहित एवं आनंदित होते हैं ।
वैशाख कृष्ण पक्ष चतुर्थी ( संकष्ट चतुर्थी) अर्थात २२ मई २०१९ को संपन्न एक समारोह में कुसुम जलतारेदादीजी (आयु ८० वर्ष) के सनातन के ९५वें संतपदपर विराजमान । आश्रम में सेवारत कु. गुरुदास घोडके (आयु १३ वर्ष) तथा आश्र ममें वाहनोंका नियोजन और देखभाल करनेवाले श्री. परशुराम पाटिल (आयु ५० वर्ष) ये दोनों साधकों द्वारा ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कर जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो गए ।
वैशाख पूर्णिमा अर्थात १८ मई २०१९को यहां गुरुपूर्णिमाके उपलक्ष्यमें आयोजित सत्संगसमारोहम में सनातन के सद्गुरु सत्यवान कदमजीने सभीको डिगस (तहसील कुडाळ)के श्री. बन्सीधर तावडे (आयु ७९वर्ष) सनातनके ९३वें संतपदपर विराजमान होनेका शुभसमाचार दिया ।
विविधतापूर्ण सेवाएं करनेवाली तथा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के निरंतर साथ होने की अनुभूति करनेवाली सनातन की संत पू. नंदिनी मंगळवेढेकर की साधनायात्रा को उन्हीं के शब्दों में जान लेते हैं ।
वैशाख कृष्ण नवमी अर्थात १३ मई २०१९ को सनातनके इतिहासमें सुवर्णाक्षरोंसे लिखी जानी चाहिए, ऐसी अद्वितीय घटना यहांके सनातनके रामनाथी आश्रममें घटित हुई ।