परात्पर गुरु डॉ. आठवले इनका सूक्ष्म ज्ञान-सम्बन्धी कार्य
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी वर्ष १९८२ से सूक्ष्म ज्ञानसम्बन्धी अध्ययन कर रहे हैं । उन्हें १५.७.१९८२ से, अर्थात साधना आरम्भ करनेके पहलेसे ही सूक्ष्मज्ञान अवगत होने लगा ।
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी वर्ष १९८२ से सूक्ष्म ज्ञानसम्बन्धी अध्ययन कर रहे हैं । उन्हें १५.७.१९८२ से, अर्थात साधना आरम्भ करनेके पहलेसे ही सूक्ष्मज्ञान अवगत होने लगा ।
अनेक प्रकारकी आध्यात्मिक महत्त्वकी वस्तुआेंका संरक्षण कर, परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी आध्यात्मिक विश्वके इतिहासमें एक नया अध्याय ही लिख रहे हैं ।
परात्पर गुरु डॉक्टरजीके मार्गदर्शनमें सनातनके साधक-कलाकार अपनी-अपनी कलाके सात्त्विक प्रस्तुतीकरणके सन्दर्भमें सूक्ष्म-स्तरीय अध्ययन और शोध कर रहे हैं ।
देवताकी सात्त्विक नामजप-पट्टीसे उस देवताकी शक्ति प्रक्षेपित होती है । इस शक्तिसे आध्यात्मिक उपचार होते हैं ।
समाज को धर्मशिक्षा मिले, समाज साधना करे, समाज में धर्म और हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के विषय में जागृति हो आदि उद्देश्य सामने रखकर परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने वर्ष २००६ से वार्षिक सनातन पंचांग प्रकाशित करना आरम्भ किया । वर्ष २००६ से संस्कार-बही का उत्पादन आरम्भ हुआ है ।
परात्पर गुुरु डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में साधना, अध्यात्म-सम्बन्धी शंकासमाधान, देवताआें के नामजप की उचित पद्धति और उपासनाशास्त्र (३ भाग), आरती, क्षात्रगीत आदि विषयोंपर श्रव्य-चक्रिकाआें का निर्माण किया गया है ।
अप्रैल २०१७ तक सनातन के २९९ ग्रन्थ-लघुग्रन्थों की १५ भाषाआें में ६८ लाख ५१ सहस्र से अधिक प्रतियां प्रकाशित हो चुकी हैं । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा संकलित ग्रन्थों की कुछ अद्वितीय विशेषताएं देखते है ।
शीघ्र गुरुप्राप्ति हो और गुरुकृपा निरन्तर होती रहे इसलिए परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने गुरुकृपायोग नामक सरल साधनामार्ग बताया है । साधकों की साधना की ओर व्यक्तिगत ध्यान देने हेतु व्यष्टि साधना और समष्टि साधना का ब्यौरा देने की पद्धति निर्माण की । साधना की दृष्टि से १४ विद्या एवं ६४ कलाआें की शिक्षा का बीजारोपण किया ।
कलियुग के अंतकालतक अधिकांश जीवों की देह रोगादि के कारण जर्जर हो जाएगी; उस समय गुरुदेवजी का उदाहरण उनके सामने रखने के लिए श्रीविष्णु ने प्रौढावस्था की लीला की है ।
प.पू. डॉक्टरजी का (प्रोस्टेट का) शस्त्रकर्म हुआ था । उस समय चिकित्सालय में भी वे ग्रंथ के लेखन संबंधी कागज पढने हेतु मंगवा लेते थे । वहां पर भी वे समय व्यर्थ नहीं गंवाते थे ।