परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीके कार्यके विषयमें महर्षिके गौरवोद्गार !

हिन्दू राष्ट्रके लिए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी समान अवतारी कार्य करनेवाले दिव्यात्माकी आवश्यकता है ! – सप्तर्षि जीवनाडी-पट्टिकामें महर्षिकी वाणी

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीको अपने जीवनकार्यके विषयमें लगनेवाली कृतार्थता !

मैं ४३ वर्षकी अवस्थामें (वर्ष १९८५ में) साधनाकी ओर मुडा । ४५ वें वर्ष (वर्ष १९८७) में मुझे परम पूज्य भक्तराज महाराज (बाबा) गुरुरूपमें मिले । वर्ष १९९० में मुझे परम पूज्य बाबाने कहा, देश-विदेशमें सर्वत्र धर्मका प्रसार कीजिए ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीके कार्यके विषयमें जगद्गुरुपदके सन्तोंके गौरवोद्गार !

समाजमें अन्य साधु-सन्तोंद्वारा किए जा रहे कार्यकी अपेक्षा अनेक गुना महान कार्य प.पू. डॉ. आठवलेजीे कर रहे हैं ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीके कार्यके लिए गुरु, सन्त और ऋषियों के आशीर्वाद !

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीने इतना कार्य किया है इसका कारण है उनकी लगन, भक्ति और उन्हें प्राप्त हुए गुरु, सन्त और महर्षि के आशीर्वाद ।

आगामी भीषण आपातकालकी दृष्टिसे कार्य

परात्पर गुरु डॉक्टरजीका ग्रन्थलेखनका मुख्य उद्देश्य था समाजको अध्यात्म और साधना सिखाना । ऐसेमें उन्होंने इतने पहलेसे विविध उपचार-पद्धतियोंसे सम्बन्धित कतरनें क्यों संग्रहित की थीं ? इस रहस्यका मुझे वर्ष २०१३ में कारण ज्ञात हुआ

अध्यात्म विश्‍वविद्यालयकी स्थापना

संसारमें भौतिक शिक्षा देनेवाले अनेक विश्‍वविद्यालय हैं; परन्तु अध्यात्मशास्त्रका परिपूर्ण तथा ईश्‍वरप्राप्तिकी शिक्षा देनेवाला एक भी विश्‍वविद्यालय नहीं है । इसलिए २२.३.२०१४ को परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीने गोवामें महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय नामक न्यास स्थापित किया ।

प्राचीन हिन्दू आरोग्यशास्त्र आयुर्वेदका प्रसार और उसके माध्यमसे हिन्दू संस्कृतिका संवर्धन करना !

आयुर्वेदको पुनर्वैभव प्राप्त करानेके लिए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी कार्यरत हैं । उनकी प्रेरणासे सनातनने आयुर्वेदसम्बन्धी ग्रन्थमाला प्रकाशित की है ।

गुरुकृपायोगानुसार जीवों से कलियुग में साधना करवानेवाले गुरुदेवजी !

हिन्दू राष्ट्र की (सनातन धर्म राज्य की) स्थापना करने हेतु कुछ चुने हुए जीवों को प.पू. डॉक्टरजी अपने साथ लेकर आए हैं । उन्होंने अनेक सार्वजनिक सभाओं में हिन्दू राष्ट्र स्थापित करने के विचार अनेक जीवों के अंतःकरण में बोए हैं ।

गुरु के विविध प्रकारानुसार परम पूज्य डॉक्टरजी में दिखे विविध रूप !

प.पू. डॉक्टरजी द्वारा लिखित गुरुकृपायोगानुसार साधना, इस ग्रंथ में गुरु के विविध प्रकार प्रतिपादित किए हैं । भाव रखकर पढनेका प्रयत्न करने पर ध्यान में आता है कि, ग्रंथ में वर्णित गुरु के सर्व रूप प.पू. डॉक्टरजी में समाहित हैं । आगे दिए अनुसार यह विषय शब्दबद्ध करने का प्रयत्न इस लेख में किया है ।

स्व-भाषारक्षाके कार्य और उसके अलौकिक पहलुआेंके विषयमें शोध !

मराठी और हिन्दी भाषाआेंमें घुसे हुए अंग्रेजी, उर्दू, फारसी आदि विदेशी भाषाके शब्दोंका प्रयोग न कर, स्वभाषाके संस्कृतनिष्ठ पर्यायी शब्दोंका उपयोग किया जाए, इसके लिए परात्पर गुरु डॉक्टरजीने वीर सावरकरके पश्‍चात खण्डित हुआ भाषाशुद्धि अभियान पुनः आरम्भ किया ।