परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा समय-समय पर दिए गए साधना के विषय में दृष्टिकोण

गुरुपूर्णिमा के दिन गुरुतत्त्व १ सहस्र गुना मात्रा में कार्यरत होने से गुरुपूर्णिमा सभी शिष्य, भक्त एवं साधकों के लिए एक अनोखा पर्व होता है । केवल गुरुकृपा के कारण ही साधक की आध्यात्मिक उन्नति होती है ।

सहस्रों वर्षों के काल-पटल पर अपना प्रभाव अंकित करनेवाले अवतारी पुरुष !

साधारण व्यक्ति का जीवन पक्षियों की भांति होता है, ४ तिनकों से बनी गृहस्थी ! उनमें से भी जो व्यक्ति अपने स्वार्थ को त्याग कर समाज, राष्ट्र एवं धर्म हेतु अपना जीवन अर्पित करते हैं, वे विभूति कहलाते हैं । ऐसी अनेक विभूतियों को भारत मां ने अपनी गोद में खेलाया है । कुछ व्यक्ति सही समय पर अपने कार्य छाप अंकित कर, कीर्ति अर्जित करते हैं ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की आदर्श जीवन पद्धति !

आश्रम में सैकडों साधक हैं तथा वे प.पू. डॉक्टरजी का प्रत्येक शब्द झेलने के लिए तैयार हैं । तब भी प.पू. डॉक्टरजी कभी किसी भी साधक को स्वयं के काम नहीं बताते । वे अपने सभी काम स्वयं ही करते हैं ।

उत्कट भाव से युक्त बेंगलुरु के धर्माभिमानी उमेश शर्मा का आध्यात्मिक स्तर घोषित हुआ ६४ प्रतिशत

हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक पूज्य डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी ने कहा, श्री शर्मा जब अपना मनोगत व्यक्त कर रहे थे, तब उसे सुनकर सबको शांति और आनंद की अनुभूति हुई । क्योंकि, उनका आध्यात्मिक स्तर ६४ प्रतिशत हो गया है ।

अध्यात्म में सर्वाेच्च पद पर विराजमान होते हुए भी अखंड शिष्यावस्था में रहनेवाली महान विभूति !

प.पू. डॉक्टरजी परात्पर गुरु के सर्वाेच्चपद पर विराजमान हैं । इतनी उच्च स्थिति में होते हुए भी प.पू. डॉक्टरजी ने अपना शिष्यत्व बनाए रखा है । उनके अनेक कृत्यों से यह सीखने को मिलता है । इनमें से कुछ उदाहरण आगे दे रहे हैं ।   १. भेंट लेने आए संतों के सामने भी शिष्यभाव … Read more

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का अद्वितीय ग्रंथकार्य (परिचय एवं विशेषताएं)

‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के गुरु सन्त भक्तराज महाराजजी ने उनसे एक बार कहा था, ‘‘मेरे गुरु ने मुझे आशीर्वाद दिया था कि तू किताबों पर किताबें लिखेगा ।’ किन्तु मैं भजन का एक ही ग्रन्थ लिख पाया । वह आशीर्वाद मैं आपको देता हूं ।

प.पू. डॉक्टरजी का शिष्यरूप

उच्च विद्याविभूषित प.पू. डॉक्टरजी ने उनके गुरू की , परात्पर गुरु प.पू. भक्तराज महाराजजी की तन-मन-धन अर्पण कर परिपूर्ण सेवा की ।

साधकों को कभी विनोद की भाषा में, तो कभी गंभीरता से अध्यात्म सिखानेवाले परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !

प.पू. डॉक्टरजी साधकों को विनोद की भाषा में सिखाते हैं । संत और गुरु का वाक्य ब्रह्मवाक्य होता है और वह समष्टि को कुछ सिखाता है ।

सनातन के अल्प अवधि में ही व्यापक होने के पीछे का रहस्य !

सनातन संस्था के अल्प अवधि में ही विश्‍वव्यापी होने के पीछे कुछ विशेषताएं हैं; परंतु ये विशेषताएं आध्यात्मिक स्तर की हैं ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीके कार्यको ईश्‍वरद्वारा प्राप्त आध्यात्मिक प्रमाणपत्र !

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीकी देह, नख और केश में दैवी परिवर्तन हो रहे हैं । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीके समान ही शरीरमें दैवी परिवर्तनकी अनुभूति सनातनके कुछ सन्तों और साधकों को भी हुई है ।