गाने का अभ्यास करते समय सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी द्वारा किया गया मार्गदर्शन

जब हम आरती गाना आरंभ करते हैं, उसके पश्चात उस देवता का सगुण तत्त्व कार्यरत होता है तथश आरती की पंक्तियों में से अंतिम अक्षर का उच्चारण कर रुकनेपर पुनः निर्गुण तत्त्व कार्यरत होता है ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा बताया प्रतिशत और उपकरणों द्वारा किए परीक्षण में समानता होना तथा उनके दृष्टा होने की प्रतीति !

देवता का चित्र उनके मूल रूप से जितना अधिक मिलता-जुलता होता है, उतना ही उसमें देवता का तत्त्व अधिक मात्रा में होता है ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के शरीर में विद्यमान निर्गुण तत्त्व के कारण उनके सिरहाने के आवरणपर ॐ अंकित होने का अर्थ ‘ॐ’ कार के माध्यम से सगुणरूप में साकार नादब्रह्म !

८.७.२०१९ को परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के नियमित उपयोगवाले सिरहाने के आवरण के २ स्थानोंपर ॐ अंकित हुआ दिखाई दिया ।

अपनी लडकी का आध्यात्मिक स्तरपर मार्गदर्शन करनेवाली पू. (श्रीमती) संगीता जाधव !

‘मुझे बचपन से ही माता-पिता का सान्निध्य अल्प मिला । मैं ५ – ६ वर्षतक घरपर ही रही और उसके पश्चात शिक्षा हेतु पुणे में १ वर्ष और उसके पश्चात मिरज आश्रम में ४ वर्षोंतक रही ।

राष्ट्र एवं धर्म के कार्य में सतर्क रहनेवाले आदर्श धर्मरक्षक श्री. शिवाजी वटकर (आयु ७२ वर्ष) सनातन संस्था के १०२वें संत घोषित !

निष्ठापूर्वक धर्मकार्य करनेवाले देवद आश्रम के साधक श्री. शिवाजी वटकर (आयु ७२ वर्ष) के रूप में सनातन संस्था को क्षात्रतेजयुक्त संतरत्न की प्राप्ति हुई है ।

अध्यात्म के सर्वोच्चपदपर विराजमान होते हुए भी अखंडित शिष्यभाव में रहनेवाला महान व्यक्तित्व !

प.पू. डॉक्टजी सर्वोच्च परात्पर गुरुपदपर विराजमान हैं । इतनी उच्च स्थिति में होते हुए भी प.पू. डॉक्टरजी ने अपने शिष्यत्व को टिकाए रखा है । यह उनके अनेक कृत्यों से सिखने के लिए मिलता है ।

संतों के प्रति भाव रखनेवाले तथा जिन्होंने वास्तव में संतत्व का मोल जाना, वे परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !

जो सच्चे संत हैं, उनके प्रति परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का भाव कैसा होता है, इसके कुछ प्रातिनिधिक उदाहरण हम इस लेख में देखेंगे । शब्दशः बताना हो, तो परात्पर गुरुदेवजी ने संतों का मोल जितना जाना है, उतना शायद ही अभीतक किसी ने जाना होगा ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के सिर के बालों के आकार में बदलाव आने का विश्‍लेषण !

संतों के चरणों से चैतन्य का सर्वाधिक प्रक्षेपण होता है । उसी प्रकार से अवतारी कार्य करनेवाले परात्पर गुरुदेवजी के सिर के बालों के मूल से समष्टि हेतु आवश्यक चैतन्य प्रक्षेपण होता है ।

गुरुदेवजी के जन्मोत्सव के समय गायनसेवा प्रस्तुत करनेवाली २ साधिकाओं में से एक साधिका की आंखें बंद होना तथा दूसरी साधिका की आंखे खुली रहना, इसका शास्त्र !

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ७७वें जन्मोत्सव के अवसरपर अध्यात्म विश्वविद्यालय की ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त साधिका कु. तेजल पात्रीकर एवं कु. अनघा जोशी ने गायन के माध्यम से स्वरांजली समर्पित की ।