गोपियों के गुण

गोपियों को श्रीकृष्ण का वास्तविक रूप ज्ञात होते ही, वे उन्हें पूर्णत: समर्पित हुईं । अपना अहंकार त्यागकर, श्रीकृष्ण की शरण में गईं, यह बहुत महत्त्वपूर्ण बात है ।

सनातन के सभी आश्रमों एवं प्रसारसेवा में सक्रिय साधकों को भावविश्‍व में ले जानेवाले रामनाथी, गोवा के सनातन आश्रम में होनेवाले भावसत्संग !

भाव उत्पन्न करने के लिए किए जानेवाले ऐसे प्रयोगों से साधक अंतर्मुख बनता है । साथ ही, थोडे समय के लिए ही क्यों न हो; वह भावस्थिति का अनुभव करता है । साधक के अंतर्मन में उभरनेवाली प्रतिक्रियाएं, स्वभावदोष एवं अहं के विचार, बाहर आने लगते हैं और उसका मन निर्मल होने लगता है ।

वेदना घटाने और एकाग्रता बढाने में संगीत उपयुक्त है ! – ब्रिटिश विद्यापीठ का संशोधन

ब्रिटन के ‘एंग्लिया रस्किन युनिवर्सिटी’ द्वारा किए शोध के अनुसार स्ट्रोक (आघात) हुए रोगी तथा शारीरिक और मानसिक रोगों पर संगीत उपचारपद्धति (म्युजिक थेरपी) उपयुक्त हो सकती है ।

सरोदवादन, ईश्‍वरप्राप्ति के लिए है तथा वादन करते समय ‘मैं ध्याना कर रहा हूं’, ऐसा भाव रखनेवाले मुम्बई के सुविख्यात सरोदवादक श्री. प्रदीप बारोट !

श्री. प्रदीप बारोट का पूरा परिवार ही संगीतमय है । उनके दादाजी पं. रोडजी बारोट विख्यात सारंगीवादक तथा रतलाम राजघराने के मान्यताप्राप्त संगीतकार थे ।

प्राचीन काल की लकडी से मूर्ति बनाने की अध्यात्मशास्त्रीय पद्धति

‘भारत को ऋषि-मुनियों की महान परंपरा प्राप्त है । ऋषि-मुनियों द्वारा लिखे गए वेद, उपनिषद, पुराण इत्यादि मनुष्य को सर्वांगीण ज्ञान प्रदान करते हैं ।

सनातन संस्था के ४०वें संत पू. गुरुनाथ दाभोलकरजी (आयु ७९ वर्ष) की साधनायात्रा !

जब से मुझे साधना समझ में आई, तब से मैं आने-जानेवाले लोगों को नामजप करने के लिए बताने लगा ।

कलाकारों का कला की ओर देखने का दृष्‍टिकोण, उसके दुष्‍परिणाम और ‘संगीत के माध्‍यम से साधना’ करने की आवश्‍यकता समझ में आना !

‘कला ईश्‍वर की देन है । कला के माध्‍यम से साधना कर ईश्‍वरप्राप्‍ति की जा सकती है ।

देवतातत्त्व आकृष्‍ट करनेवाली सात्त्विक रंगोलियां एवं सात्त्विक चित्रों में देवताओं के यंत्र की भांति सकारात्‍मक ऊर्जा (चैतन्‍य) होना

महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय’ द्वारा ‘यूनिवर्सल ऑरा स्‍कैनर (यूएएस)’ उपकरण के माध्‍यम से किया गया देवता का यंत्र, देवताआें के सात्त्विक चित्र और सात्त्विक रंगोली का वैज्ञानिक परीक्षण

प्रेमभाव, स्वयं को बदलने की तडप तथा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के प्रति अपार श्रद्धा से युक्त पुणे की सनातन की ८१वीं संत पू. माया गोखलेदादीजी (आयु ७५ वर्ष) !

दादी को जब से गुरुकृपायोग के अनुसार साधना समझ में आई, तब से अर्थात पिछले १५ वर्षों से वह प्रातःकाल उठकर मानसपूजा, नामजप, दैनिक ‘सनातन प्रभात’ का वाचन, सारणी लेखन आदि व्यष्टि साधना के प्रयास नियमितरूप से करती है ।