अध्यात्म विश्‍वविद्यालयकी स्थापना

संसारमें भौतिक शिक्षा देनेवाले अनेक विश्‍वविद्यालय हैं; परन्तु अध्यात्मशास्त्रका परिपूर्ण तथा ईश्‍वरप्राप्तिकी शिक्षा देनेवाला एक भी विश्‍वविद्यालय नहीं है । इसलिए २२.३.२०१४ को परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीने गोवामें महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय नामक न्यास स्थापित किया ।

प्राचीन हिन्दू आरोग्यशास्त्र आयुर्वेदका प्रसार और उसके माध्यमसे हिन्दू संस्कृतिका संवर्धन करना !

आयुर्वेदको पुनर्वैभव प्राप्त करानेके लिए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी कार्यरत हैं । उनकी प्रेरणासे सनातनने आयुर्वेदसम्बन्धी ग्रन्थमाला प्रकाशित की है ।

गुरुकृपायोगानुसार जीवों से कलियुग में साधना करवानेवाले गुरुदेवजी !

हिन्दू राष्ट्र की (सनातन धर्म राज्य की) स्थापना करने हेतु कुछ चुने हुए जीवों को प.पू. डॉक्टरजी अपने साथ लेकर आए हैं । उन्होंने अनेक सार्वजनिक सभाओं में हिन्दू राष्ट्र स्थापित करने के विचार अनेक जीवों के अंतःकरण में बोए हैं ।

गुरु के विविध प्रकारानुसार परम पूज्य डॉक्टरजी में दिखे विविध रूप !

प.पू. डॉक्टरजी द्वारा लिखित गुरुकृपायोगानुसार साधना, इस ग्रंथ में गुरु के विविध प्रकार प्रतिपादित किए हैं । भाव रखकर पढनेका प्रयत्न करने पर ध्यान में आता है कि, ग्रंथ में वर्णित गुरु के सर्व रूप प.पू. डॉक्टरजी में समाहित हैं । आगे दिए अनुसार यह विषय शब्दबद्ध करने का प्रयत्न इस लेख में किया है ।

स्व-भाषारक्षाके कार्य और उसके अलौकिक पहलुआेंके विषयमें शोध !

मराठी और हिन्दी भाषाआेंमें घुसे हुए अंग्रेजी, उर्दू, फारसी आदि विदेशी भाषाके शब्दोंका प्रयोग न कर, स्वभाषाके संस्कृतनिष्ठ पर्यायी शब्दोंका उपयोग किया जाए, इसके लिए परात्पर गुरु डॉक्टरजीने वीर सावरकरके पश्‍चात खण्डित हुआ भाषाशुद्धि अभियान पुनः आरम्भ किया ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवले इनका सूक्ष्म ज्ञान-सम्बन्धी कार्य

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी वर्ष १९८२ से सूक्ष्म ज्ञानसम्बन्धी अध्ययन कर रहे हैं । उन्हें १५.७.१९८२ से, अर्थात साधना आरम्भ करनेके पहलेसे ही सूक्ष्मज्ञान अवगत होने लगा ।

आध्यात्मिक संग्रहालयके लिए आध्यात्मिक महत्त्वकी वस्तुआेंका संरक्षण कार्य !

अनेक प्रकारकी आध्यात्मिक महत्त्वकी वस्तुआेंका संरक्षण कर, परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी आध्यात्मिक विश्‍वके इतिहासमें एक नया अध्याय ही लिख रहे हैं ।

विविध कलाओंके सात्त्विक प्रस्तुतीकरणके सन्दर्भमें शोध

परात्पर गुरु डॉक्टरजीके मार्गदर्शनमें सनातनके साधक-कलाकार अपनी-अपनी कलाके सात्त्विक प्रस्तुतीकरणके सन्दर्भमें सूक्ष्म-स्तरीय अध्ययन और शोध कर रहे हैं ।

आध्यात्मिक उपचारोंकी अभिनव पद्धतियों के जनक !

देवताकी सात्त्विक नामजप-पट्टीसे उस देवताकी शक्ति प्रक्षेपित होती है । इस शक्तिसे आध्यात्मिक उपचार होते हैं ।

सनातन पंचांग, संस्कार-बही और सनातन के सात्त्विक उत्पाद

समाज को धर्मशिक्षा मिले, समाज साधना करे, समाज में धर्म और हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के विषय में जागृति हो आदि उद्देश्य सामने रखकर परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने वर्ष २००६ से वार्षिक सनातन पंचांग प्रकाशित करना आरम्भ किया । वर्ष २००६ से संस्कार-बही का उत्पादन आरम्भ हुआ है ।