परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का अद्वितीय ग्रंथकार्य (परिचय एवं विशेषताएं)

‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के गुरु सन्त भक्तराज महाराजजी ने उनसे एक बार कहा था, ‘‘मेरे गुरु ने मुझे आशीर्वाद दिया था कि तू किताबों पर किताबें लिखेगा ।’ किन्तु मैं भजन का एक ही ग्रन्थ लिख पाया । वह आशीर्वाद मैं आपको देता हूं ।

प.पू. डॉक्टरजी का शिष्यरूप

उच्च विद्याविभूषित प.पू. डॉक्टरजी ने उनके गुरू की , परात्पर गुरु प.पू. भक्तराज महाराजजी की तन-मन-धन अर्पण कर परिपूर्ण सेवा की ।

साधकों को कभी विनोद की भाषा में, तो कभी गंभीरता से अध्यात्म सिखानेवाले परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !

प.पू. डॉक्टरजी साधकों को विनोद की भाषा में सिखाते हैं । संत और गुरु का वाक्य ब्रह्मवाक्य होता है और वह समष्टि को कुछ सिखाता है ।

सनातन के अल्प अवधि में ही व्यापक होने के पीछे का रहस्य !

सनातन संस्था के अल्प अवधि में ही विश्‍वव्यापी होने के पीछे कुछ विशेषताएं हैं; परंतु ये विशेषताएं आध्यात्मिक स्तर की हैं ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीके कार्यको ईश्‍वरद्वारा प्राप्त आध्यात्मिक प्रमाणपत्र !

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीकी देह, नख और केश में दैवी परिवर्तन हो रहे हैं । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीके समान ही शरीरमें दैवी परिवर्तनकी अनुभूति सनातनके कुछ सन्तों और साधकों को भी हुई है ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीके कार्यके विषयमें महर्षिके गौरवोद्गार !

हिन्दू राष्ट्रके लिए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी समान अवतारी कार्य करनेवाले दिव्यात्माकी आवश्यकता है ! – सप्तर्षि जीवनाडी-पट्टिकामें महर्षिकी वाणी

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीको अपने जीवनकार्यके विषयमें लगनेवाली कृतार्थता !

मैं ४३ वर्षकी अवस्थामें (वर्ष १९८५ में) साधनाकी ओर मुडा । ४५ वें वर्ष (वर्ष १९८७) में मुझे परम पूज्य भक्तराज महाराज (बाबा) गुरुरूपमें मिले । वर्ष १९९० में मुझे परम पूज्य बाबाने कहा, देश-विदेशमें सर्वत्र धर्मका प्रसार कीजिए ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीके कार्यके विषयमें जगद्गुरुपदके सन्तोंके गौरवोद्गार !

समाजमें अन्य साधु-सन्तोंद्वारा किए जा रहे कार्यकी अपेक्षा अनेक गुना महान कार्य प.पू. डॉ. आठवलेजीे कर रहे हैं ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीके कार्यके लिए गुरु, सन्त और ऋषियों के आशीर्वाद !

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीने इतना कार्य किया है इसका कारण है उनकी लगन, भक्ति और उन्हें प्राप्त हुए गुरु, सन्त और महर्षि के आशीर्वाद ।

आगामी भीषण आपातकालकी दृष्टिसे कार्य

परात्पर गुरु डॉक्टरजीका ग्रन्थलेखनका मुख्य उद्देश्य था समाजको अध्यात्म और साधना सिखाना । ऐसेमें उन्होंने इतने पहलेसे विविध उपचार-पद्धतियोंसे सम्बन्धित कतरनें क्यों संग्रहित की थीं ? इस रहस्यका मुझे वर्ष २०१३ में कारण ज्ञात हुआ