परात्पर गुरु डॉ. आठवलजी ने वादनकला के माध्यम से ईश्वरप्राप्ति की एक अमूल्य संधि दी है !
स्थूल रूप से भारतीय वाद्यों की अपेक्षा पश्चिमी वाद्य अधिक प्रगतिशील प्रतीत होते हैं किंतु सूक्ष्म रूप से देखने पर उसका परिणाम अच्छा नहीं होता । एक कार्यक्रम में इसका प्रयोग किया गया था ।