परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की कृपा से महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के संगीत विभाग की साधिका को हुई अनुभूतियां
संगीत, नाद-साधना है, स्वभावदोष और अहं जाने पर ही, चैतन्यदायी गायन हो पाएगा ।
संगीत, नाद-साधना है, स्वभावदोष और अहं जाने पर ही, चैतन्यदायी गायन हो पाएगा ।