दिन में ४ – ४ बार खाना टालें !
जो शारीरिक श्रम करते हैं, यदि वे ३ बार आहार लें, तो ठीक है; परंतु जो बैठकर काम करते हैं, उन्हें केवल २ बार भोजन करना चाहिए । इससे अधिक खाने पर वह स्वास्थ्य के बिगडने का कारण बन जाता है ।’
जो शारीरिक श्रम करते हैं, यदि वे ३ बार आहार लें, तो ठीक है; परंतु जो बैठकर काम करते हैं, उन्हें केवल २ बार भोजन करना चाहिए । इससे अधिक खाने पर वह स्वास्थ्य के बिगडने का कारण बन जाता है ।’
‘तडका देकर बनाए पोहे, यह अल्पाहार में अधिक खाया जानेवाला पदार्थ है । कुछ लोगों को तडका देकर बनाए पोहे खाने से गले एवं छाती में जलन एवं मितली आने जैसे कष्ट होते हैं ।
औषधि अपने मन से न लेते हुए वैद्यों के मार्गदर्शनानुसार ही लेनी चाहिए; परंतु कई बार वैद्यों के पास तुरंत ही जाने की स्थिति नहीं रहती । कई बार थोडी-बहुत औषधि लेने पर वैद्यों के पास जाने की आवश्यकता ही नहीं पडती । इसलिए ‘प्राथमिक उपचार’ के रूप में यहां कुछ आयुर्वेद की औषधियां दी हैं ।
‘चिकनगुनिया’ इस व्याधि का स्वरूप भले ही भयंकर है, तब भी यह प्राणघातक व्याधि नहीं है । वह ठीक हो जाती है और जोडों में वेदना भी ठीक हो सकती है । केवल योग्य समय पर वैद्य के पास जाना ओर उनसे पर्याप्त समय तक उपचार लेने की आवश्यकता है ।’
पूर्वाग्रह, राग, भय के समान मूलभूत स्वभावदोषों के कारण अधिकांश लोगों के लिए खुलकर बात करना असहज रहता है । कुछ लोगों के मन में अनेक वर्षाें के प्रसंग तथा उस संबंधी भावनाएं रहती हैं । यदि मन में किसी भी प्रकार के विचार संगठित हुए, तो उसका परिणाम देह पर होता है तथा विभिन्न शारीरिक कष्ट आरंभ होते हैं ।
‘वर्तमान में देश एवं धर्म के दृष्टिकोण से आपातकाल चल रहा है । प्राकृतिक आपत्तियां सतत आना, देशद्रोही एवं धर्मद्रोही की प्रबलता बढना, राजकीय अस्थिरता निर्माण करनेवाली घटनाएं होना, समाज, राष्ट्र एवं धर्म के हित के शुभ कार्य में विघ्न आना इत्यादि आपातकाल के भौतिक लक्षण हैं । ऐसे काल में सामान्य नागरिकों का दैनंदिन जीवन संघर्षशील होता है !
रसोईघर में रखा हुआ आटा, अनाज एवं मसालों के भी खराब होने की संभावना होती है । कुछ समय उपरांत रखा हुआ आटा, अनाज एवं मसालों के भी खराब होने की संभावना होती है । कई बार आटे में पडनेवाले कीडे हमारे लिए कष्टदायी हो सकते हैं । इसलिए वर्षा में आनेवाले कीडे हमारे लिए कष्टदायक भी हो सकते हैं । इसलिए वर्षा में आटा एवं दालों को कीडों से बचाने के लिए कुछ सरल युक्तियां यहां दे रहे हैं ।
कोई भी रोग, यह शरीर के वात, पित्त एवं कफ की मात्रा में परिवर्तन होने से होता है । आयुर्वेद के अनुसार कर्करोग से हृदयरोग तक एवं पक्षाघात से लेकर मधुमेह तक सर्व रोगों का मूल यही है । शरीर के त्रिदोषों में से किसी भी दोष की मात्रा बढने अथवा अल्प होने अथवा उनके गुणों में परिवर्तन होने से वे दूषित हो जाते हैं । फिर यही कण शरीर में रोग उत्पन्न करते हैं ।
आम्लपित्त के कष्ट के पीछे के कारणों का तज्ञों की सहायता से शोध लेकर उनपर कायमस्वरूपी उपचार करना अत्यावश्यक है । इसके लिए जीवनशैली में परिवर्तन करने की तैयारी होनी चाहिए ।
पोषणमूल्यहीन, चिपचिपे, तेल से भरे तथा ‘प्रिजर्वेटिव पदार्थाें का उपयोग किए गए तथा स्वास्थ बिगाडनेवाले पदार्थ खाने की अपेक्षा पौष्टिक, सात्त्विक तथा प्राकृतिक पदार्थ खाने चाहिए । चॉकलेट आदि पदार्थ कभी कभी खाना ठीक है; किंतु नियमित सेवन न करें ।’