प्राकृतिक पद्धति से लगाई गई शकरकंद के एक अंकुर से ३ माह में २ किलो से भी अधिक शकरकंद मिलना
शकरकंद की बेल काटकर और भी रोपण कर सकते थे ।
शकरकंद की बेल काटकर और भी रोपण कर सकते थे ।
हाट (बाजार से) लाया गया पालक अथवा पुदीना, कई बार उनमें कुछ जडसहित होते हैं जिसे मिट्टी में खोंसने पर उनसे नए पौधे आते हैं । अदरक, प्याज, आलू, शकरकंद, सूरन, अरबी जिनमें अंकुर आ गए, उनसे नया रोपण करना सहज संभव है ।’
हाथ-पैरों पर फुंसिया आना, ज्वर एवं ज्वर जाने के पश्चात मुंह में वेदनादायक छाले आना, इन लक्षणों के संक्रमक रोग को आधुनिक वैद्यकीयशास्त्र में ‘हैंड, फुट एवं माऊथ’ रोग कहते हैं । इस रोग पर आयुर्वेद में प्राथमिक उपचार यहां दे रहे हैं ।
‘बद्धकोष्ठता के लिए ‘गंधर्व हरीतकी वटी’ की २ से ४ गोलियां रात में सोने से पहले गुनगुने पानी के साथ लें । इसके साथ ही भूख न लगना, भोजन न कर पाना, अपचन होना, पेट में वायु (गैस) होना, ऐसे लक्षण होने पर ‘लशुनादी वटी’ की १ – २ गोलियां दोनों बार के भोजन के १५ मिनट पहले चुभलाकर खाएं ।
प्रस्तुत औषधियों के साथ शासन द्वारा प्राधिकृत की हुई वैद्यकीय चिकित्सा एवं औषधियां लेना टालें नहीं । अन्य सर्व उपाययोजनाओं का पालन करें, इसके साथ ही स्थल, काल एवं प्रकृति के अनुसार चिकित्सा में परिवर्तन हो सकता है । इसलिए योग्य वैद्यों की सलाह लें ।
छोटे लडके-लडकियों के गले में धागा बांधकर उसे छाती के स्तर तक आए एवं शरीर को स्पर्श हो, इसप्रकार वेखंड का टुकडा मजबूती से बांध कर रखें ।
किसी भी कारणवश (उदा. छिल जाना, कट जाना इत्यादि के कारण) व्रण (घाव) होने पर उस पर तुलसी का रस लगाएं ।
‘दूध युक्त चाय पीने से पित्त बढता है । अल्पाहार के साथ हम चाय पीते हैं । अल्पाहार के पदार्थाें में नमक होता है ।
‘एक बार मुझे बहुत निराशा आई थी । दैनंदिन जीवन की भागदौड से मैं इतना ऊब गया था कि मुझे लगने लगा, ‘घर छोडकर मैं कहीं दूर चला जाऊं ।’ तब मैंने अनायास अपने आयुर्वेद के गुरु वैद्य अनंत धर्माधिकारी से संपर्क कर, अपनी मनःस्थिति बताई । इस पर वे बोले,
‘कई बार (उदा. तीज-त्योहार के दिन) अधिक भोजन करने से पेट भारी होकर अपचन की संभावना होती है ।