आपातकाल में जीवनरक्षा हेतु आवश्यक तैयारी : भाग – ५

आपातकाल में पेट्रोल, डीजल आदि ईंधन का संकट अनुभव होगा । आगे तो ये ईंधन मिलेंगे भी नहीं । तब ईंधन पर चलनेवाले दुपहिया और चारपहिया वाहन अनुपयोगी हो जाएंगे ।

आपातकाल में जीवनरक्षा हेतु आवश्यक तैयारी : भाग – ४

मनुष्य पानी के बिना जीवित नहीं रह सकता और वह बिजली के अभाव में जीवित रहने की कल्पना भी नहीं कर सकता; इसलिए पानी की सुविधा करना, पानी का भंडारण तथा उसके शुद्धीकरण की पद्धतियां, बिजली के  विकल्पों के विषय में जानकारी इस लेख में दे रहे हैं ।

आपातकाल में जीवनरक्षा हेतु आवश्यक पूर्वतैयारी : भाग – ३

आपातकाल में ऐसी स्थिति निर्माण हो सकती है कि भोजन के लिए ईंधन का अभाव हो, घर में सभी लोग रोगी हों, अचानक अन्य स्थान पर रहना पडे, बाजार में साग-सब्जियां न मिले ।

आपातकाल में जीवनरक्षा हेतु आवश्यक पूर्वतैयारी’ : भाग – २

हम कितना भी अनाज संग्रहित कर लें, वह धीरे-धीरे समाप्त होता है । ऐसे समय भूखा न रहना पडे, इसकी पूर्व तैयारी के लिए अनाज का रोपण, गोपालन आदि करना आवश्यक है ।

आपातकाल में जीवनरक्षा हेतु आवश्यक पूर्वतैयारी : भाग – १

आपातकाल में रक्षा हेतु व्यक्ति अपने बल पर कितनी भी तैयार रहे, भूकम्प, त्सुनामी समान महाभीषण आपदाओं से बचने के लिए अन्ततः भगवान पर भरोसा करना ही पडता है ।

आकाश में बिजली कडक रही हो, तो निम्नांकित सावधानियां बरतकर सुरक्षित रहें !

खुले आकाश के नीचे (उदा. मैदान, समुद्रतट आदि), साथ ही बिजली के खंभे, मोबाईल टॉवर, दलदलवाले स्थान, पानी की टंकी, टीन का शेड आदि स्थानों पर न रुकें ।

चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदा का सामना करने हेतु आवश्यक पूर्वतैयारी तथा प्रत्यक्ष संकटकालीन स्थिति में आवश्यक कृत्य

आज विज्ञान ने भले ही सभी क्षेत्रों में प्रगति कर ली हो; परंतु चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदा को रोकना मनुष्यशक्ति के परे है । ऐसे समय में स्थिर रहकर मनोबल टिकाए रखना ही हमारे हाथ में होता है ।

धूमपान : श्‍वसनतंत्र के विकारों पर प्रतिबंधजन्य आयुर्वेदीय चिकित्सा !

धूम का अर्थ धुआं और पान का अर्थ पीना ! औषधीय धुआं नाक-मुंह से अंदर लेकर उसे बाहर छोडने को धूमपान कहते हैं ।

प्राकृतिक आपदाओं की तीव्रता के संदर्भ में संतों का द्रष्टापन तथा उनका कार्य

इस लेख में प्राकृतिक आपदाओं का वर्तमानकाल में भयानक स्वरूप, संतों द्वारा उनके संदर्भ में बताए गए सूत्र और उनका पालन न करने से उत्पन्न दुःस्थिति, साथ ही तीव्र संकटकाल में भी समष्टि की रक्षा हेतु संत किस प्रकार से कार्यरत हैं ?, इन सूत्रों को रखने का प्रयास किया गया है ।

आपातकाल का अर्थ एवं स्वरूप

द्वितीय महायुद्ध के समय जर्मनी और ब्रिटन में युद्ध हुआ था । ब्रिटन में पहले ४ दिनों में ही १३ लाख लोगों को स्थलांतर करना पडा था । युद्धकाल में वे प्रकाशबंदी भी आरंभ हो गई ।