वास्तुशास्त्र (भवननिर्माणशास्त्र)
विदेशी वास्तुशास्त्र में भवन के केवल टिकाऊपन पर बल दिया गया है; परंतु भारतीय वास्तुशास्त्र में टिकाऊपन के साथ-साथ उसमें रहनेवाले व्यक्ति, उसकी सोच और देवता के प्रति श्रद्धा का भी विचार किया गया है ।
विदेशी वास्तुशास्त्र में भवन के केवल टिकाऊपन पर बल दिया गया है; परंतु भारतीय वास्तुशास्त्र में टिकाऊपन के साथ-साथ उसमें रहनेवाले व्यक्ति, उसकी सोच और देवता के प्रति श्रद्धा का भी विचार किया गया है ।
धनी लोगों को अपने धन का बहुत गर्व होता है । वे धन के बल पर ऊंचे-ऊंचे भवन बनवाते हैं । ये भवन देखनेयोग्य होते हैं । परंतु, वहां से जानेवाले कुछ लोगों को यह भवन अद्भुत लगता है, तो कुछ को इससे इर्ष्या होती है ।
सहस्रों वर्ष पहले प्रकृति, भवन और व्यक्ति के शरीर की ऊर्जा का संतुलन वास्तुशास्त्र के माध्यम से साधने की कला हमारे देश के महान दार्शनिक जानते थे । प्रत्येक घर की रचना कैसी होनी चाहिए, इसका सूक्ष्म विचार हिन्दू वास्तुशास्त्र में किया गया है ।
वास्तुदेवता की जो हम पर कृपा है, उसके लिए मन में जितनी कृतज्ञता रखें उतनी कम ही है । उनके चरणों में भावपूर्ण कृतज्ञता व्यक्त करेंगे ।
हम जिस घर में रह रहे हैं, वह वास्तुदेवता ही हैं । वास्तु हमें ईश्वर से मिला कृपाप्रसाद है । कुलदेवता समान ही अन्य देवता अर्थात वास्तु देवता, स्थान देवता व ग्राम देवता भी हमारे लिए कार्यरत रहते हैं और हमारी रक्षा करते हैं ।
मिट्टी के घर बनाते समय भी आयुर्वेद, वास्तुशास्त्र आदि शास्त्रों में दिए गए निर्देशों का पालन किया जाता था । ऐसे घरों को केरल में ‘आयुरगृह’ कहते हैं ।