व्यष्टि एवं समष्टि साधना करते समय आवश्यक प्रयास !
‘घर में हमारे साथ साक्षात भगवान हैं’, इस दृढ श्रद्धा से साधना करनी चाहिए !
‘घर में हमारे साथ साक्षात भगवान हैं’, इस दृढ श्रद्धा से साधना करनी चाहिए !
साधारण मानव को परिवार का पालन करते समय भी परेशानी होती है । परमेश्वर तो सुनियोजित रूप से पूरे ब्रह्मांड का व्यापक कार्य संभाल रहे हैं । उनकी अपार क्षमता की हम कल्पना भी नहीं कर सकते ! ऐसे इस महान परमेश्वर के चरणों में कोटिशः कृतज्ञता !
आपकी दृष्टि सुंदर होनी चाहिए । तब मार्ग पर स्थित पत्थरों, मिट्टी, पत्तों और फूलों में भी आपको भगवान दिखाई देंगे; क्योंकि प्रत्येक बात के निर्माता भगवान ही हैं । भगवान द्वारा निर्मित आनंद शाश्वत होता है; परंतु मानव-निर्मित प्रत्येक बात क्षणिक आनंद देनेवाली होती है । क्षणिक आनंद का नाम ‘सुख’ है ।
साधकों को यह ध्यान में रखना चाहिए कि उन्हें नामजप श्वास से जोडना है और श्वास नामजप से नहीं जोडना है, अर्थात नामजप की लय में श्वासोच्छ्वास नहीं करना है, अपितु श्वास की लय में नामजप करना है ।
मन अस्थिर होना, तनाव आना, चिंता लगना, भय लगना, परिस्थिति न स्वीकार पाना इत्यादि कष्ट होते हैं । अनेक लोगों को भविष्यकाल में संभाव्य आपत्तियों की कल्पना से भी ऊपर दिए गए कष्ट होते हैं । इसके साथ ही सगे-संबंधियों में भावनिकदृष्टि से अटकना होता है
ऐसे समय पर सर्वत्र विध्वंस होना, आग लगना, गली-गली मृतदेहें पडी होना, ऐसी स्थिति सर्वत्र दिखाई देती है । ऐसी घटना देखकर अथवा सुनकर अनेकों का मन अस्थिर होना, तनाव आना, चिंता लगना, भय लगना, परिस्थिति न स्वीकार पाना इत्यादि कष्ट होते हैं ।
मनुष्य के त्रिगुणों के कारण होनेवाले कृत्यों का फल
शुकदेव गोस्वामी महाराज परिक्षित से कहते हैं, यह जग ३ प्रकार के कृत्यों से भरा है । सत्त्वगुण (भलाई के उद्देश्य से किए जानेवाले कृत्य), रजोगुण (वासना के अधीन होकर होनेवाले कृत्य) और तमोगुण (अज्ञान के कारण होनेवाले कृत्य) । इसलिए उन्हें ३ विविध प्रकार के परिणाम भोगने पडते हैं ।
‘अध्यात्म विषयक बोधप्रद ज्ञानामृत’ लेखमाला से भक्त, संत तथा ईश्वर, अध्यात्म एवं अध्यात्मशास्त्र तथा चार पुरुषार्थ ऐसे विविध विषयों पर प्रश्नोत्तर के माध्यम से पू. अनंत आठवलेजी ने सरल भाषा में उजागर किया हुआ ज्ञान यहां दे रहे हैं । इस से पाठकों को अध्यात्म के तात्त्विक विषयों का ज्ञान होकर उनकी शंकाओं का निर्मूलन होगा तथा वे साधना करने के लिए प्रवृत्त होंगे ।
२१ जून विश्वभर में आंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाया जाता है । योग इस शब्द का उगम ‘युज’ धातु से हुआ है । युग का अर्थ है संयोग होना । योग इस शब्द का मूल अर्थ जीवात्मा का परमात्मा से मिलन होना है । योगशास्त्र का उगम लगभग ५००० वर्षाें पूर्व भारत में हुआ है ।
मनुष्य का जीवन कर्ममय है । कर्मफल अटल होते हैं । अच्छे कर्माें के फलस्वरूप पुण्य तथा बुरे कर्माें के फलस्वरूप पाप लगता है । परमेश्वर प्रत्येक जीव के साथ उसके कर्माें के अनुसार न्याय करते हैं । इसलिए मनुष्य द्वारा होनेवाले प्रत्येक अपराध का उसे दंड मिलता है और इस दंड को उसे भोगकर ही समाप्त करना पडता है ।