वास्तु का कष्ट बढ गया है, यह ध्यान में आने पर वास्तु के चारों ओर तत्काल गेरू से मंडल बनाएं ! – महर्षि

अनेक बार हमें लगने लगता है कि अकस्मात वातावरण में दबाव बढ गया है । अनेक बार हमारे चारों ओर नकारात्मक स्पंदन घूम रहे हैं, इसका बोध होने लगता है, साथ ही ‘श्‍वास लेने में कुछ रुकावट आ रही है’, ऐसा भी लगता है ।

आध्यात्मिक उपाय आपातकाल की संजीवनी है, अत: गंभीरता से करें !

साधकों की साधना खंडित हो, इसलिए अनिष्ट शक्तियां हर प्रकारसे प्रयत्न कर रही हैं । इसलिए साधकों की रक्षा होने हेतु प.पू. गुरुदेव समय-समय पर सनातन प्रभात नियतकालिकों के माध्यम से विविध आध्यात्मिक उपचार बताते हैं ।

साधको, अपने आसपास मानस रूप से नामजप की पेटी बनाकर उस पेटी में सोएं !

अनेक साधकों को प्रातः जागने पर विविध प्रकार के कष्ट होते हैं । इस प्रकार के कष्टों से पीडित साधक तथा अन्य साधक भी जब रात में सोने से पूर्व मानस रूप से नामजप की पेटी बनाकर उसमें सोए, तब यह ध्यान में आया कि उन्हें होनेवाले विविध प्रकार के कष्ट घट गए हैं ।

विकार-निर्मूलन और साधना की बाधाआें पर उपयुक्त : सर्वबाधानाशक यंत्र !

बार-बार बीमार होने अथवा चोट लगने के कारण साधना में बाधाएं आना, आध्यात्मिक कष्ट होना अथवा सेवा करते समय सेवासंबंधी उपकरण, वाहन इत्यादि बंद पडना अथवा अन्य बाधाएं आना आदि पर यह यंत्र उपयुक्त है ।

ईश्‍वरीय चैतन्य से सर्व देह चैतन्यमय बनाने के लिए पू. राजेंद्र शिंदेजी ने दी एक अभिनव उपचारपद्धति !

१. मानस सर्व देहशुद्धि का अभिप्रेत अर्थ यहां सर्व देहशुद्धि, अर्थात स्थूलदेहसहित मनोदेह (मन), कारणदेह (बुद्धि) और महाकारणदेह (अहं) इन सूक्ष्मदेहों की शुद्धि । २. मानस सर्व देहशुद्धि का अध्यात्मशास्त्रीय आधार २ अ. संतों के संकल्प से लाभ ! यह मानस सर्व देहशुद्धि साधना-पद्धति सनातन के छठे संत पू. राजेंद्र शिंदेजी ने बताई है । … Read more

सनातन के श्रद्धाकेन्द्र प.पू. भक्तराज महाराजजीद्वारा गायी गई चैतन्यमय नामधुन

सनातन संस्थाके आस्थाकेन्द्र प.पू. भक्तराज महाराजजीको उनके सर्व भक्त बाबा कहते थे । श्री अनंतानंद साईश, प.पू. बाबाके गुरु थे । भजन, भ्रमण एवं भण्डारा; यही बाबाका जीवन था । लाखों कि.मी. भ्रमण कर उन्होंने अनेक लोगोंमें अध्यात्मके प्रति रूचि उत्पन्न की । प.पू. बाबाने १७.११.१९९५ को इन्दौरमें देहत्याग किया ।

दत्तात्रेय के नामजपद्वारा पूर्वजों के कष्टोंसे रक्षण कैसे होता है ?

कलियुगमें अधिकांश लोग साधना नहीं करते, अत: वे मायामें फंसे रहते हैं । इसलिए मृत्युके उपरांत ऐसे लोगोंकी लिंगदेह अतृप्त रहती है । ऐसी अतृप्त लिंगदेह मर्त्यलोक (मृत्युलोक)में फंस जाती है । मृत्युलोकमें फंसे पूर्वजोंको दत्तात्रेयके नामजपसे गति मिलती है