कुदृष्टि उतारने की पद्धति का अध्यात्मशास्त्रीय आधार एवं अनुभूतियां

प्रार्थना के कारण देवता के आशीर्वाद से कुदृष्टिग्रस्त व्यक्ति की देह के भीतर और बाहर के कष्टदायक स्पंदन अल्पावधि में कार्यरत होकर कुदृष्टि उतारने हेतु उपयुक्त घटकों में घनीभूत होकर, तदुपरांत अग्नि की सहायता से अल्पावधि में नष्ट किए जाते हैं ।

नारियल से कुदृष्टि उतारने की पद्धति

कुदृष्टि उतारने की नारियल की क्षमता अन्य घटकों की अपेक्षा अधिक होने के कारण व्यक्ति की सूक्ष्म देह पर आया काली शक्ति का आवरण खींचने में नारियल अग्रणी माना जाता है ।

कुदृष्टि उतारने के लिए नमक और लाल मिर्च एक साथ प्रयोग करने की पद्धति

मिर्च की रज-तमात्मक तरंगें आकर्षित करने की गति राई की तुलना में अधिक होने के कारण स्थूलदेह और मनोदेह की कुदृष्टि उतारने में प्रायः मिर्च का उपयोग किया जाता है ।

कुदृष्टि उतारने के लिए नींबू प्रयोग करने की पद्धति

नींबू से कुदृष्टि उतारते समय उसके सूक्ष्म रजोगुणी वायु सदृश स्पंदनों को गति प्राप्त होने से, ये स्पंदन व्यक्ति पर आए रज-तमात्मक आवरण को अपनी ओर आकर्षित कर उन्हें घनीभूत करके रखते हैं ।

कुदृष्टि उतारने की पद्धति

कुदृष्टि यथासंभव सायं समय उतारें । कष्ट दूर करने के लिए वह समय अधिक अच्छा रहता है; क्योंकि उस समय अनिष्ट शक्ति का सहजता से प्रकटीकरण होता है तथा वह पीडा कुदृष्टि उतारने हेतु उपयोग किए जानेवाले घटक में खींची जा सकती है ।

कुदृष्टि उतारने के लाभ

कुदृष्टि उतारने से जीव की देह पर आया रज-तमात्मक आवरण समय पर दूर होता है । इससे उसकी मनःशक्ति सबल होकर कार्यकरने लगती है ।

कुदृष्टि लगने के परिणाम अथवा परखने हेतु लक्षण

कुदृष्टि लगना, इस प्रकार में जिस जीव को कुदृष्टि लगी हो, उसके सर्व ओर रज-तमात्मक इच्छाधारी स्पंदनों का वातावरण बनाया जाता है ।

पितृदोष के कारण एवं उनका उपाय

हमारी हिन्दू संस्कति में मातृ-पितृ पूजन का बडा महत्त्व है । पिछली दो पीढियों का भी स्मरण रखें । पितृवर्ग जिस लोक में रहते हैं, उसे पितरों का विश्व अथवा पितृलोक कहते हैं ।