हिंदु धर्ममें बताया गया मुंडनके संदर्भ में शास्त्रीय ज्ञान
यहां पर आप हिंदु धर्ममें बताया गया मुंडनके संदर्भ में शास्त्रीय ग्यान जान सकते है |
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हिंदु धर्ममें स्त्री एवं पुरुषद्वारा धारण किए जानेवाले वस्त्रोंकी रचना देवताओंने की है । इसीलिए ये वस्त्र शिव एवं शक्ति तत्त्व प्रकट करते हैं । स्त्रियोंके वस्त्रोंसे अर्थात साडीसे शक्तितत्त्व जागृत होता है एवं पुरुषोंके वस्त्रोंसे शिवतत्त्व जागृत होता है ।
रात्रिकालमें तमोगुण प्रबल होता है । ‘भूमिसे प्रार्थना कर ‘समुद्रवसने देवी…’ श्लोक कहकर भूमिपर पैर रखनेसे, रात्रिकालमें देहमें आवेशित कष्टदायक स्पंदन भूमिमें विसर्जित हो जाते हैं ।
झुककर कपडे धोनेसे नाभिचक्र निरंतर जागृत स्थितिमें रहता है । वह देहकी पंचप्राणात्मक वायु-वहनको पोषित करता है ।
हाथ-पैर धोकर, कुल्ला करनेके उपरांत जनेऊ कानसे हटाएं । इसका आधारभूत शास्त्रीय कारण यह है कि, शरीरके नाभिप्रदेशसे ऊपरका भाग धार्मिक क्रियाओंके लिए पवित्र है, जबकि उससे नीचेका भाग अपवित्र माना गया है ।
पूर्व दिशाकी ओरसे देवताओंकी सगुण तरंगोंका पृथ्वीपर आगमन होता है । कूडा रज-तमात्मक होता है, इसलिए पश्चिमसे पूर्वकी ओर कूडा ढकेलते समय कूडा और धूलका प्रवाह पूर्व दिशामें होता है ।
दिन और रात, इन दो मुख्य कालों में से रात के समय साधना करने में हमारी शक्ति का अधिक व्यय होता है; क्योंकि इस काल में वातावरण में अनिष्ट शक्तियों का संचार बढ जाता है । इसलिए यह काल साधना के लिए प्रतिकूल रहता है ।
संध्यासमय, अर्थात् दीप जलानेके समय देवता व तुलसीके समीप दीप जलानेसे घरके चारों ओर देवताओंकी सात्त्विक तरंगोंका सुरक्षाकवच निर्माण होता है ।
उंगलियोंसे दांत स्वच्छ करते समय दांत स्वच्छ होनेके साथ ही मसूडोंका मर्दन अपनेआप होता है तथा वे स्वस्थ रहते हैं ।