हनुमान जयंती

कुछ पंचांगोंके अनुसार हनुमान जन्मतिथि कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी है, तो कुछ चैत्र पूर्णिमा बताते हैं । महाराष्ट्रमें हनुमानजयंती चैत्र पूर्णिमापर मनाई जाती है ।

श्राद्धकर्म : पितृऋण चुकाने का सहज एवं सरल मार्ग

हिंदु धर्ममें उल्लेखित ईश्वरप्राप्तिके मूलभूत सिद्धांतोंमेंसे एक सिद्धांत ‘देवऋण, ऋषिऋण, पितृऋण एवं समाजऋण, इन चार ऋणोंको चुकाना है । इनमेंसे पितृऋण चुकानेके लिए ‘श्राद्ध’ करना आवश्यक है ।

दत्तात्रेय के नामजपद्वारा पूर्वजों के कष्टोंसे रक्षण कैसे होता है ?

कलियुगमें अधिकांश लोग साधना नहीं करते, अत: वे मायामें फंसे रहते हैं । इसलिए मृत्युके उपरांत ऐसे लोगोंकी लिंगदेह अतृप्त रहती है । ऐसी अतृप्त लिंगदेह मर्त्यलोक (मृत्युलोक)में फंस जाती है । मृत्युलोकमें फंसे पूर्वजोंको दत्तात्रेयके नामजपसे गति मिलती है

श्राद्धविधिके लिए उपयोगमें लाई जानेवाली सामग्रीके उपयोग करनेका शास्त्र

‘दर्भ तेजोत्पादक है, अर्थात तेजकी निर्मितिके लिए कारक एवं पूरक है । अतः दर्भकी सहायतासे श्राद्धविधि करनेसे, उससे प्रक्षेपित तेजोमय तरंगोंके प्रभावसे श्राद्धके प्रत्येक विधिकर्ममें रज-तम कणोंके हस्तक्षेप की मात्रा घटकर विधिकर्मको गति प्राप्त होती है ।

रक्षाबंधन (राखी)

पाताल के बलिराजा के हाथ पर राखी बांधकर, लक्ष्मी ने उन्हें अपना भाई बनाया एवं नारायण को मुक्त करवाया । वह दिन था श्रावण पूर्णिमा ।

श्राद्ध तिथिनुसार क्यों करें ?

‘प्रत्येक कृतिकी परिणामकारकता, उसका कार्यरत कर्ता (उसके कर्ता), कार्य करनेका योग्य समय एवं कार्यस्थल आदिपर निर्भर करती है ।

दशहरा (विजयादशमी)

आश्विन शुक्ल दशमीकी तिथिपर दशहरा मनाते हैं । दशहरेके पूर्वके नौ दिनोंमें अर्थात नवरात्रिकालमें दसों दिशाएं देवीमांकी शक्तिसे आवेशित होती हैं ।

देवालयमें दर्शनकी योग्‍य पद्धति

`देवालय’ अर्थात् जहां भगवानका साक्षात् वास है । दर्शनार्थी देवालयमें इस श्रद्धासे जाते हैं कि, वहां उनकी प्रार्थना भगवानके चरणोंमें अर्पित होती है और उन्हें मन:शांति अनुभव होती है ।

हिंदु संस्कृतिका प्रतीक `नमस्कार’

हिंदु मनपर अंकित एक सात्त्विक संस्कार है `नमस्कार’ । भक्तिभाव, प्रेम, आदर, लीनता जैसे दैवीगुणोंको व्यक्त करनेवाली और ईश्वरीय शक्ति प्रदान करनेवाली यह एक सहज धार्मिक कृति है ।

देवता की आरती कैसे करे ?

पंचारतीके समय आरतीकी थालीको पूर्ण गोलाकार घुमाएं । इससे ज्योतिसे प्रक्षेपित सात्त्विक तरंगें गोलाकार पद्धतिसे गतिमान होती हैं । आरती गानेवाले जीवके चारों ओर इन तरंगोंका कवच निर्माण होता है ।