देवताके प्रत्यक्ष दर्शन करते समय ध्यान रखने योग्य कुछ महत्त्वपूर्ण बातें
देवताके दर्शन करते समय उनके चरणोंमें लीन होनेका भाव रखें । कोई भी वस्तु देवताके सामने रखी थालीमें रखें; परंतु देवताके शरीरपर न फेंकें ।
देवताके दर्शन करते समय उनके चरणोंमें लीन होनेका भाव रखें । कोई भी वस्तु देवताके सामने रखी थालीमें रखें; परंतु देवताके शरीरपर न फेंकें ।
नंदीकी बाईं ओर साष्टांग नमस्कार करनेसे व्यक्तिमें शरणागतभाव जागृत होता है तथा देवालयमें विद्यमान चैतन्य तरंगें उसके देहमें प्रवाहित होने लगती हैं ।
सभामंडपके निकट सीढियां हों, तो चढनेसे पहले दाएं हाथकी उंगलियोंसे प्रथम सीढीको स्पर्श कर नमन करें एवं उन उंगलियोंसे आज्ञा-चक्रको स्पर्श करें ।
अन्न प्राणस्वरूप है, उसे सम्मानपूर्वक ग्रहण करनेसे ही बल एवं तेजसमें वृद्धि होती है ।
रंगोलीके माध्यमसे भूमितरंगों एवं शक्तितरंगोंका भोजनकी थालीके नीचे आच्छादन बन जानेसे भोजनके घटक पदार्थ भी इन तरंगोंसे पूरित हो जाते हैं । भोजनके माध्यमसे देहमें इन तरंगोंका संचार होकर पाचनप्रक्रियाको गति प्राप्त होकर देहमें इन तरंगोंका घनीकरण होता है ।
नामजप कर भोजन आरंभ करें । भोजन करते समय भी नामजप करते रहें । समय-समयपर प्रार्थना भी करें ।
अन्न-सेवन एक यज्ञकर्म ही है । यह यज्ञकर्म, पूर्व दिशामें तेजकी शक्तिरूपी धारणाद्वारा पिंडमें संचारित करनेसे उसका कृत्यको गति प्रदान करनेमें उचित पद्धतिसे विनियोग हो सकता है ।
‘कर्ता-करावनहार ईश्वर ही हैं । उनके बिना मैं कुछ नहीं कर सकता । उनकी कृपासे ही यह अन्न मिला है। अतः जो भी मिला है, उसे सर्वप्रथम ईश्वरको प्रथम अर्पित करूंगा’, इस कृतज्ञ भावसे देवताको भोजनपूर्व नैवेद्य चढाया जाता है ।
उचित समयपर भोजन न करनेसे शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य असंतुलित हो सकता है । परिणामस्वरूप आध्यात्मिक स्वास्थ्यपर भी इसका दुष्परिणाम होता है ।
‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम् ।’ अर्थात साधनाके लिए शरीर आवश्यक है । शरीर हेतु अन्न आवश्यक है । अन्नसे प्राप्त शक्तिका उपयोग केवल आत्मोन्नतिके लिए नहीं, अपितु समाजकी उन्नतिके लिए भी किया जा सकता है ।