दुर्गाष्टमी

दुर्गाष्टमीके दिन देवीके अनेक अनुष्ठान करनेका महत्त्व है । इसलिए इसे `महाष्टमी’ भी कहते हैं । अष्टमी एवं नवमीकी तिथियोंके संधिकालमें अर्थात अष्टमी तिथि पूर्ण होकर नवमी तिथिके आरंभ होनेके बीचके कालमें देवी शक्तिधारणा / शक्ति धारण करती हैं ।

घटस्थापना के विधिओं का शास्रीय आधार तथा उनका आध्यात्मिक परिणाम

नवरात्रिके प्रथम दिन घटस्थापना करते हैं । घटस्थापना करना अर्थात नवरात्रिकी कालावधिमें ब्रह्मांडमें कार्यरत शक्तितत्त्वका घटमें आवाहन कर उसे कार्यरत करना ।

गुरुपूर्णिमाका अध्यात्मशास्त्रीय महत्त्व

गुरुदेव वे हैं, जो साधना बताते हैं, साधना करवाते हैं एवं आनंदकी अनुभूति प्रदान करते हैं । गुरुका ध्यान शिष्यके भौतिक सुखकी ओर नहीं, अपितु केवल उसकी आध्यात्मिक उन्नतिपर होता है ।

गुरुपूर्णिमाके दिन गुरुतत्त्व १ सहस्त्र गुना कार्यरत रहता है

गुरु ईश्वरके सगुण रूप होते हैं । उन्हें तन, मन, बुद्धि तथा धन समर्पित करनेसे उनकी कृपा अखंड रूपसे कार्यरत रहती है ।

सार्वजनिक श्रीगणेशोत्सव : कैसा न हो तथा कैसा हो ?

हिंदूओंमें धर्मनिष्ठा एवं राष्ट्रनिष्ठा बढे, उन्हें संगठित करनेमें सहायता हो, लोकमान्य तिलकने इस उदात्त हेतु सार्वजनिक गणेशोत्सव आरंभ किया; परंतु आजकल सार्वजनिक गणेशोत्सवोंमें होनेवाले अनाचार एवं अनुशासनहीनताके कारण उत्सवका मूल उद्देश्य विफल होनेके साथ उसकी पवित्रता भी नष्ट होती जा रही है । ‘सार्वजनिक श्रीगणेशोत्सव कैसा न हो तथा कैसा हो’, आगे दिए सूत्रोंसे इसकी जानकारी हो सकती है ।

हाथ-पैर धोना तथा कुल्ला करनेके संदर्भमें आचार

शौच एवं लघुशंका जैसी कृति करते समय पैरके संपर्कमें आई रज-तमात्मक तरंगोंका पैर धोनेसे जलमें विसर्जन होता है तथा देह शुद्ध हो जाता है । हाथ-पैर धोना तथा कुल्ला करनेके संदर्भमें आचारके संदर्भमें देखते है…

ब्रह्मध्वजा पर रखे जानेवाले तांबे के कलश का महत्त्व !

आजकल ऐसा देखने को मिलता है कि कुछ लोग ब्रह्मध्‍वजा पर स्‍टील या तांबे का लोटा अथवा घडे के आकारवाला बरतन रखते हैं । धर्मशास्‍त्र के अनुसार ‘ब्रह्मध्‍वजा पर तांबे का कलश उल्‍टा रखने का अध्‍यात्‍मशास्‍त्रीय विवेचन यहां दे रहे हैं । इससे हमारी संस्‍कृति का महत्त्व तथा प्रत्‍येक कृत्‍य धर्मशास्‍त्र के अनुसार करने का महत्त्व समझ में आता है !

प्रकृतिनुसार वस्त्रोंका रंग

प्रकृतिनुसार वस्त्रोंका रंग कैसा होता है ? व्यक्तिकी रुचि-अरुचि उसकी प्रकृतिके अनुरूप होती है एवं प्रकृति उसमें विद्यमान सत्त्व, रज एवं तम, इन त्रिगुणोंपर आधारित होती है ।

श्री दुर्गासप्तशती पाठ एवं हवन

नवरात्रिकी कालावधिमें देवीपूजनके साथ उपासनास्वरूप देवीके स्तोत्र, सहस्रनाम, देवीमाहात्म्य इत्यादिके यथाशक्ति पाठ एवं पाठसमाप्तिके दिन हवन विशेष रूपसे करते हैं ।सुख, लाभ, जय इत्यादि कामनाओंकी पूर्तिके लिए सप्तशतीपाठ करनेका महत्त्व बताया गया है । श्री दुर्गासप्तशती पाठमें देवीमांके विविध रूपोंको वंदन किया गया है ।

देवालय की सात्त्विकता एवं भावपूर्ण दर्शन का महत्त्व

देवता के दर्शन भावपूर्ण करने से ईश्‍वर की अनुभूति होती हैं । देवालय की सात्त्विकता दर्शन हेतु पोषक होती है ।