श्री लक्ष्मीकुबेर पूजाविधि

आश्विन अमावस्या अर्थात दिवाली के श्री लक्ष्मीपूजन के दिन सर्व मंदिरों, दुकानों तथा घरों में धन-संपत्ति की अधिष्ठात्रि देवी श्री लक्ष्मी की पूजा होती है । इस दिन अर्धरात्रि के समय देवी श्री लक्ष्मी का आगमन सद्गृहस्थोंके घर होता है । घर को पूर्णत: स्वच्छ, शुद्ध और सुशोभित कर दीपावली मनाने से श्री लक्ष्मी देवी प्रसन्न होती हैं । इसलिए इस दिन श्री लक्ष्मीपूजन करते हैं और दीप जलाते हैं ।

नरकचतुर्दशी के दिन की जानेवाली धार्मिक विधियां

नरक चतुर्दशीपर अभ्यंगस्नान एवं यमतर्पण करनेके उपरांत देवताओंका पूजन करते हैं । सूर्यदेव एवं कुलदेवता को नमस्कार करते हैं । इसके उपरांत दोपहर ब्राह्मणभोजन कराते हैं ।

नरकचतुर्दशी

आश्विन कृष्ण चतुर्दशी तथा विक्रम संवत अनुसार कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी नरक चतुर्दशीके नामसे जानते हैं । दीपावलीके दिनोंमें अभ्यंगस्नान करनेसे व्यक्तिको अन्य दिनोंकी तुलनामें ६ प्रतिशत सात्त्विकताका अधिक लाभ मिलता है ।

धनत्रयोदशी

‘धनत्रयोदशी’ दिनके विशेष महत्त्वका कारण यह दिन देवताओंके वैद्य धन्वंतरिकी जयंतीका दिन है । धनत्रयोदशी मृत्युके देवता यमदेवसे संबंधित व्रत है । यह व्रत दिनभर रखते हैं । व्रत रखना संभव न हो, तो सायंकालके समय यमदेवके लिए दीपदान अवश्य करते हैं ।

गोवत्स द्वादशी का महत्त्व

वसुबारस अर्थात गोवत्स द्वादशी दीपावलीके आरंभमें आती है । हिंदू कृतज्ञतापूर्वक गौको माता कहते हैं । जहां गोमाताका, भक्तिभावसे पूजन किया जाता है, वहां व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्रका उत्कर्ष हुए बिना नहीं रहता।

तीर्थक्षेत्र एवं उनकी विशेषताएं, अनुभूति एवं प्रमुख स्थान

दत्तभक्त गुरुचरित्रका वाचन, पाठ एवं श्रवण बडे भक्तिभावसे करते हैं । दत्तके सभी तीर्थक्षेत्र अत्यंत जागृत हैं । इन तीर्थक्षेत्रोंमें जानेपर अनेक भक्तोंको शक्तिकी अनुभूति होती है ।

भगवान दत्तात्रेय तथा अन्य देवताओंके देवालयोंमें होनेवाले अनाचारोंको रोकें !

वर्तमानमें देवताओंका विविध प्रकारसे अनादर किया जाता है । देवताओंका अनादर करनेसे धर्मप्रेमियोंकी भावनाएं आहत होती हैं । इसके संबंधमें पुलिस थानेमें परिवाद (शिकायत) प्रविष्ट करें !

श्री दत्तजयंतीका महत्त्व

मार्गशीर्ष पूर्णिमाके दिन मृग नक्षत्रपर सायंकाल भगवान दत्तात्रेयका जन्म हुआ, इसलिए इस दिन भगवान दत्तात्रेयका जन्मोत्सव सर्व दत्तक्षेत्रोंमें मनाया जाता है ।

नवरात्रिमें आधुनिक गरबा : संस्कृतिका जतन नहीं; बल्कि पतन !

हिंदुओ, हमाारे सार्वजनिक उत्सवोंका विकृतिकरण हो रहा है । अधिकांश लोग उत्सव मनानेके धार्मिक, आध्यात्मिक व सामाजिक कारणको भूलकर केवल मौजमस्ती इस एक ही दृष्टिसे उत्सवोंकी ओर देखते हैं ।

विसर्जनकी विविध कृतीया एवं उनका अध्यात्मशास्र

ऐसी जगदोद्धारिणी मां शक्तिके प्रति कृतज्ञता व्यक्त कर आवाहित शक्तितत्त्वको उनके मूल स्थानपर विराजमान होनेकी विनती करनेका दिन है महानवमी । इस दिन वेदीपर स्थापित घट एवं नवार्णव यंत्रपर स्थापित देवी का विशेष पूजन कर उनका विसर्जन करते हैं ।