ऋषिपंचमी

‘जिन ऋषियोंने अपने तपोबल से विश्‍व के मानव पर अनंत उपकार किए हैं, जीवन को उचित दिशा दी है । उन ऋषियों का इस दिन स्मरण किया जाता है ।

हरितालिका

अनुरूप वर की प्राप्ति के लिए विवाहयोग्य कन्याएं हरितालिका व्रत करती हैं, तो सुुहाग को अखंड बनाए रखने के लिए सुहागन स्त्रियां भी यह व्रत करती हैं ।

श्राद्ध में पितरों तथा देवताओं को नेवैद्य दिखाना

दर्भ पर पितरों के लिए पिंड रखने पर, इससे निकलनेवाली तेजतत्वयुक्त तरंगों से लिंगदेह के सर्व ओर स्थित कालीशक्ति का विघटन होता है । तब, उस अन्न से लिंगदेह सहजता से सूक्ष्म-वायु ग्रहण कर पाती है ।

व्रत करते समय व्रताचार के संदर्भ में ध्यान रखने योग्य बातें

सारणी १. व्रतको सोच-समझकर अंगीकार करना आवश्यक है २. व्रतका यथार्थ पालन आवश्यक है ३. आरंभ किया व्रत पूर्ण करना आवश्यक है ३.१ स्नानसंबंधी नियम ३.२ वस्त्र एवं अलंकार धारण करनेसंबंधी नियम ३.३ आचमनसंबंधी नियम ३.४ देवतापूजनसंबंधी नियम ३.५ आहारसंबंधी नियम ४. व्रतीके लिए वर्ज्य बातें ५. व्रतकालमें व्रतीद्वारा अपेक्षित गुणोंका पोषण ६. व्रतीके लिए … Read more

व्रतों के लाभ एवं प्रकार

मनुष्य जीवनमें उसके स्वभावदोषोंके कारण ही अधिकांश समस्याओंका प्रादुर्भाव होता है । दोषोंके कारण उससे चूक होती है एवं उसका पाप बढता है । चूकोंके कारणही उसे दुःखोंका सामना करना पडता है ।

व्रतों का महत्त्व एवं आधारभूत शास्त्र

मनुष्यको अपने जीवनके उदात्त ध्येयका स्मरण रहे, इसलिए हमारे ऋषिमुनियोंने जीवनका आध्यात्मीकरण करनेके विविध मार्ग बताए हैं, व्रत उन्हींमें एक है ।

श्राद्ध तीर्थक्षेत्र में करने की तुलना में घर पर करना अधिक लाभदायक

५० प्रतिशत पितरों का लगाव अपने घर से रहता है । इसलिए, घर में श्राद्ध करने से तीर्थक्षेत्र में किए गए श्राद्ध की तुलना में आठ गुना लाभ होता है ।

श्राद्ध में की जानेवाली विविध क्रियाओं का अध्यात्मशास्त्र

यह लेेख पढकर आप श्राद्ध में की जानेवाली अनेक छोटी-छोटी क्रियाओं का अध्यात्मशास्त्र समझ सकेंगे । इससे ‘श्राद्धकर्म’ की श्रेष्ठता ज्ञात होगी ।

श्राद्धकर्म में वर्जित वस्तुएं एवं उसका अध्यात्मशास्त्रीय कारण

श्राद्ध के भोजन में उपर्युक्त पदार्थों का समावेश करने से पितरों को नीचे की योनियों में स्थान मिलता है; क्योंकि भारी तरंगों का गुणधर्म सदैव अधोदिशा में जाना होता है ।’