श्री गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi 2024)

श्री गणेश चतुर्थी के दिन पूजन हेतु श्री गणेशजीकी नई मूर्ति लाई जाती है । पूजाघरमें रखी श्री गणेशमूर्तिके अतिरिक्त, इस मूर्तिका स्वतंत्र रूपसे पूजन किया जाता है । सर्वप्रथम आचमन कीजिए । उसके उपरांत देशकालका उच्चारण कर विधिका संकल्प कीजिए । उसके उपरांत शंख, घंटा, दीप इत्यादि पूजासंबंधी उपकरणोंका पूजन किया जाता है तथा उसके उपरांत श्री गणेशमूर्तिमें प्राणप्रतिष्ठा की जाती है ।

गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएं !

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परिवार के किस सदस्य को यह व्रत रखना चाहिए ?

श्री गणेश चतुर्थी के दिन रखे जानेवाले व्रत को ‘सिद्धिविनायक व्रत’ के नाम से जाना जाता है । वास्तव में परिवार के सभी सदस्य यह व्रत रखें । सभी भाई यदि एक साथ रहते हों, अर्थात सभी का एकत्रित द्रव्यकोष (खजाना) एवं चूल्हा हो, तो मिलकर एक ही मूर्ति का पूजन करना उचित है । यदि सब के द्रव्यकोष और चूल्हे किसी कारणवश भिन्नभिन्न हों, तो उन्हें अपनेअपने घरों में स्वतंत्र रूप से गणेशव्रत रखना चाहिए । कुछ परिवारों में कुलाचारानुसार अथवा पूर्व से चली आ रही परंपरा के अनुसार एक ही श्री गणेशमूर्ति पूजन की परंपरा है । ऐसे घरों में प्रतिवर्ष भिन्नभिन्न भाई के घर श्री गणेश मूर्ति की पूजा की जाती है । कुलाचार के अनुसार अथवा पूर्व से चली आ रही एक ही श्री गणेशमूर्ति के पूजन की परंपरा तोडनी न हो, तो जिस भाई में गणपति के प्रति भक्तिभाव अधिक है, उसी के घर गणपति की पूजा करना उचित होगा ।

नई मूर्ति का प्रयोजन क्यों ?

पूजाघर में गणपति की मूर्ति होते हुए भी नई मूर्ति लाने का उद्देश्य इस प्रकार है – श्री गणेश चतुर्थी के समय पृथ्वी पर गणेशतरंगें अत्यधिक मात्रा में आती हैं । उनका आवाहन यदि पूजाघर में रखी गणपति की मूर्ति में किया जाए तो उसमें अत्यधिक शक्ति की निर्मिति होगी । इस ऊर्जित मूर्ति की उत्साहपूर्वक विस्तृत पूजाअर्चना वर्षभर करना अत्यंत कठिन हो जाता है । उसके लिए कर्मकांड के कडे बंधनों का पालन करना पडता है । इसलिए गणेश तरंगों के आवाहन के लिए नई मूर्ति उपयोग में लाई जाती है । तदुपरांत उसे विसर्जित किया जाता है । सामान्य व्यक्ति के लिए गणेश तरंगोंको अधिक समय तक सह पाना संभव नहीं । इसलिए कि, गणपति की तरंगों में सत्त्व, रज एवं तम का अनुपात ५::५ होता है, तथापि सामान्य व्यक्ति में इसका अनुपात १::५ होता है ।

श्री गणेश चतुर्थी के दिन पूजी जानेवाली मूर्ति घर कैसे लाएं ?

श्री गणेशजी की मूर्ति घर लाने के लिए घर के कर्ता पुुरुष अन्यों के साथ जाएं ।

मूर्ति हाथ में लेनेवाला व्यक्ति हिन्दू वेशभूषा करे, अर्थात धोती-कुर्ता अथवा कुर्ता-पजामा पहने । वह सिरपर टोपी भी पहने ।

मूर्ति लाते समय उसपर रेशमी, सूती अथवा खादी का स्वच्छ वस्त्र डालें ।

मूर्ति घर लाते समय मूर्ति का मुख लानेवाले की ओर तथा पीठ सामने की ओर हो ।

मूर्ति के सामने के भाग से सगुण तत्त्व, जब कि पीछे के भाग से निर्गुण तत्त्व प्रक्षेपित होता है । मूर्ति हाथ में रखनेवाला पूजक होता है । वह सगुण के कार्य का प्रतीक है । मूर्तिका मुख पूजक की ओर करने से उसे सगुण तत्त्व का लाभ होता है और अन्यों को निर्गुण तत्त्व का लाभ होता है ।

श्री गणेशजी की जयजयकार और भावपूर्ण नामजप करते हुए मूर्ति घर लाएं ।

घर की देहली के बाहर खडे रहें । घर की सुहागिन स्त्री मूर्ति लानेवाले के पैरों पर दूध और तत्पश्‍चात जल डाले ।

घर में प्रवेश करने से पूर्व मूर्ति का मुख सामने की ओर करें । तदुपरांत मूर्ति की आरती कर उसे घर में लाएं ।

श्री गणेशजीके भक्त इस विधिसे उनका स्वागत करते हैं । स्वागतसहित लाई गई श्री गणेशजीकी मूर्तिका पूजन-अर्चन, स्तोत्रपाठ, नामजप इत्यादि कृत्य भावसहित करनेसे हमें श्री गणेशजीके तत्त्वका लाभ मिलता है । साथही वातावरणमें प्रक्षेपित उनसे संबंधित भाव, चैतन्य, आनंद एवं शांतिकी तरंगोंका भी हमें लाभ मिलता है ।

श्री गणेश चतुर्थी के दिन मूर्ति घरमें लाते समय कैसा भाव होना चाहिए ?

‘वास्तवमें भगवान घर आएंगे’, ऐसा भाव होना चाहिए : मूर्ति घरमें लाते समय हमें ऐसा भाव रखना चाहिए कि वास्तवमें भगवान हमारे घर आनेवाले हैं । मूर्ति लाते समय नामजप करें । तब हम श्री गणेशजीके नामका जयघोष कर सकते हैं, और भजन गा सकते हैं ।

श्री गणेशजी की मूर्ति अक्षत पर रखने का शास्त्राधार

शास्त्रके अनुसार किसी भी देवताका आवाहन कर पूजन करनेसे उस देवताकी मूर्तिमें संबंधित देवताका तत्त्व आकृष्ट होता है । इस देवतातत्त्वसे वह मूर्ति संपृक्त अर्थात संचारित होती है । देवताका यह तत्त्व मूर्तिमें घनीभूत होकर आसपासके वायुमंडलमें प्रक्षेपित होता रहता है । मूर्तिके संचारित होनेके कारण मूर्तिके नीचे रखे अक्षतके दाने भी देवतातत्त्वसे संचारित होते हैं । दो तंबूरोंके समान कंपनसंख्याके दो तार हों, तो एक तारसे नाद उत्पन्न करनेपर वैसा ही नाद दूसरी तारसे भी उत्पन्न होता है ।

उसी प्रकार मूर्तिके नीचे रखे अक्षतमें देवताके स्पंदन घनीभूत होनेसे घरमें रखे चावलके भंडारमें भी देवताके स्पंदन घनीभूत होते हैं । उत्तरपूजनके उपरांत ये अक्षत घरमें रखे चावलके भंडारमें मिलाए जाते हैं । देवतातत्त्वसे संचारित सभी चावल वर्षभर प्रसादके रूपमें ग्रहण करनेसे परिवारके सभी सदस्योंको उनसे लाभ होता है । इस प्रक्रियाके अनुसार श्री गणेशमूर्ति अक्षतपर रखनेसे श्री गणेशजीके भक्तोंको पूरा वर्ष प्रसादके रूपमें गणेशतत्त्वका लाभ मिलता है ।

श्री गणेशजीके आगमनके उपरांत उनका लाभ कैसे लें ?

श्री गणेशजी के घर आनेके उपरांत उनका नामजप करना चाहिए ।

श्रीगणेशजी को अडहुल के पुष्प अर्पण करें ।

गणेशपूजनमें दूर्वाका विशेष महत्त्‍व हैं ।

श्री गणेशजीसे बोलनेका प्रयत्न करना चाहिए । उनसे प्रार्थना एवं मानसपूजा करनी चाहिए ।

हम देवताओंकी आरती भावपूर्ण तथा आर्ततासे करें । आरती अर्थात भगवानको आर्ततासे पुकारना ।

श्री गणपतिजीका गुणगान करनेवाले भजन कहने चाहिए ।

श्रीगणेशजी को न्युनतम ८ अथवा ८ की गुना में परिक्रमा करें ।

गणेश चतुर्थी का व्रत कैसे करें ?

शास्त्रानुसार गणेशोत्सव कैसे मनाएं ?

यह करें

  • साज-सज्जा सात्विक तथा पर्यावरणके लिए घातक न होनेवाली होनी चाहिए । जैसे आमके पत्तोंका बंदनवार बनाएं, कागदी पताकाका उपयोग करें ।
  • प्रदूषण विरहित चिकनी मिट्टीकी मूर्ति लाएं ।
  • नैसर्गिक रंगोंका उपयोग की हुई मूर्ति घर लाए ।
  • श्री गणेशजी की मूर्ति उनका जो मूल रूप है, उसी रूपमें बनाएं ।
  • जो भक्त भाव से अर्पण दे वह स्विकारें
  • राष्ट्रभक्तिकी प्रेरणा देनेवाले गीत, शास्त्रीय संगीत तथा संतरचित भजनोंके कार्यक्रम रखें ।
  • श्री गणेश मूर्ति का विसर्जन बहते पानी में करें !

यह टालें

  • थर्मोकोलके कारण प्रदूषणमें वृदि्ध होती इसलिए थर्मोकोलका उपयोग टालें ए‍वं विद्युत दीपोंका अनावश्यक उपयोग करना टालें ।
  • ‘प्लास्टर ऑफ पैरिस’की तथा कागदकी लुगदीसे बनाई गई मूर्ति न लाए ।
  • रासायनिक रंगोंका उपयोग की हुई मूर्ति न लाए ।
  • श्री गणेशजी की मूर्ति चित्र-विचित्र आकारोंमें न बनाएं
  • बलपूर्वक चंदा उगाही टालें ।
  • गणेशोत्सव मंडपमें विचित्र अंगचलन कर नाचना, जुआ खेलना तथा मद्यपान करना टालें ।
  • श्री गणेशमूर्ति का दान करना एवं विसर्जन कृत्रिम जलाशय में न करें

गणेश चतुर्थी और पर्यावरण

श्री गणेश मूर्ति का विसर्जन बहते पानी में करें !

अध्यात्मशास्त्रानुसार गणेश चतुर्थी के काल में की गई शास्त्रोक्त पूजा विधियों के कारण मूर्ति में श्री गणपति का चैतन्य अधिक मात्रा में आकर्षित होता है । मूर्ति पानी में विसर्जित करने से यह चैतन्य पानी के माधयम से दूर-दूर तक फैलता है । पानी का वाष्पीकरण होने से यह चैतन्य वातावरण में भी दूर-दूर तक पहुंचता है ।
गणेशभक्तो, गणेश चतुर्थी के काल में आपने श्री गणेश की भक्तिभाव एवं धर्मशास्त्रानुसार सेवा की । अब उनका शास्त्रानुसार विसर्जन करने के स्थान पर प्रसिद्धि के लिए पर्यावरण रक्षा का ढोंग करनेवाले नास्तिकों के हाथ में मूर्ति सौंपनेवाले हो क्या ? नास्तिकों के आवाहन की बलि चढ, विसर्जन न करने के महापाप से बचें । श्री गणेश मूर्ति धर्म शास्त्रानुसार शाडू मिट्टी से बनाने पर पर्यावरण की रक्षा भी होगी और धर्माचरण करने से श्री गणेश की कृपा भी होगी ।

सूखाग्रस्त क्षेत्र में मूर्ति विसर्जन के विकल्प

छोटी मूर्ति की स्थापना करें

श्री गणेशमूर्ति का विसर्जन कृत्रिम जलाशय में न करें ?

‘इको फ्रेंडली’ गणेश मूर्तियों के भुलावे से सावधान !

गणेश चतुर्थी के दिन चंद्र के दर्शन करना मना है !

इस दिन चंद्र को नहीं देखना चाहिए, क्योंकि चंद्र का प्रभाव मन पर होता है । वह मन को कार्य करने पर प्रवृत्त करता है; परंतु साधक को तो मनोलय करना है । ग्रहमाला में चंद्र चंचल है अर्थात उसका आकार घटता-बढता है । उसी प्रकार शरीर में मन चंचल है । चंद्रदर्शन से मन की चंचलता एक लक्षांश बढ जाती है । संकष्टी (शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायकी और कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी कहते हैं ।) पर दिनभर साधना कर रात्रि के समय चंद्रदर्शन करते हैं । एक प्रकार से चंद्रदर्शन की क्रिया साधना काल के अंत एवं मन के कार्यारंभ की सूचक है ।

पुराणोंमें इससे संबंधित एक कथा

एक दिन चंद्रने गणपतिके डील-डौलका मजाक उडाया, ‘देखो तुम्हारा इतना बडा पेट, सूप जैसे कान, क्या सूंड और छोटे-छोटे नेत्र !’ इसपर गणपतिने उसे श्राप दिया, ‘अबसे कोई भी तुम्हारी ओर नहीं देखेगा । यदि कोई देखे भी तो उसपर चोरीका झूठा आरोप लगेगा ।’ उसके उपरांत चंद्रको न कोई अपने पास आने देता, न ही वह कहीं आ-जा सकता था । उसके लिए अकेले जीना कठिन हो गया । तब चंद्रने तपश्‍चर्या कर गणपतिको प्रसन्न किया एवं प्रतिशापकी विनती की ।

गणपतिने मन ही मन सोचा, ‘शाप तो मैं पूर्ण रूपसे वापस नहीं ले सकता । उसका कुछ तो प्रभाव रहना ही चाहिए एवं अब प्रतिशाप भी देना पडेगा । कैसे करूं कि अपना दिया हुआ शाप भी नष्ट न हो और उसे प्रतिशाप भी दे सकूं ?’ ऐसा विचार कर गणपतिने चंद्रको प्रतिशाप दिया, ‘श्री गणेश चतुर्थीके दिन तुम्हारे दर्शन कोई नहीं करेगा; परंतु संकष्टी चतुर्थीके दिन तुम्हारे दर्शन किए बिना कोई भोजन नहीं करेगा ।’ (शुक्ल पक्षकी चतुर्थीको ‘विनायकी’ एवं कृष्ण पक्षकी चतुर्थीको ‘संकष्टी’ कहते हैं ।)

गणेश चतुर्थी के दिन भूल से चंद्र दर्शन हो जाए तो क्या करें ?

‘श्री गणेश चतुर्थी’ को ‘कलंकित चतुर्थी’ भी कहा जाता है । इस चतुर्थी पर चंद्रमा को देखना वर्जित है । यदि गलती से चतुर्थी का चंद्रमा दिखाई दे तो ‘श्रीमद्भागवत’ के १०वें खंड के अध्याय ५६-५७ में दी गई कहानी ‘स्यमंतक मण्याची चोरी’ पढनी अथवा सुननी चाहिए । भाद्रपद शुक्ल तृतीया या पंचमी को चंद्रमा देखें । इससे चतुर्थी के चंद्र दर्शन का अधिक धोखा नहीं रहता ।
यदि भूल से चंद्रदर्शन हो जाए तो आगे दिए मंत्र से अभिमंत्रित किया हुआ पवित्र जल प्राशन करें । इस मंत्र का २१, ५४ अथवा १०८ बार जप करें ।

सिंहः प्रसेनमवधीत् सिंहो जाम्बवता हतः ।
सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्यमन्तकः ।। – ब्रह्मवैवर्त पुराण, अध्याय ७८

अर्थ : हे सुंदर सुकुमार! इस मणि के लिए सिंह ने प्रसेन को मारा है, और जंबुवंत ने उस सिंह को मार डाला है; इसलिए तुम रोओ मत । अब इस स्यमन्तक मणि पर तुम्हारा ही अधिकार है ।

श्री गणपति का नामजप, श्री गणपति अथर्वशीर्ष, संकष्टनाशन स्तोत्र एवं आरती Audio सूनें !

देवता की विविध उपासनापद्धतियों में से कलियुग की सबसे सरल उपासना है ‘देवता का नामजप करना !’ मन में देवता के प्रति बहुत भाव उत्पन्न होने के उपरांत देवता का नाम कैसे भी लिया, तब भी चलता है; परंतु सर्वसामान्य साधक में इतना भाव नहीं होता । उसके लिए देवता के नामजप से देवता के तत्त्व का अधिक लाभ मिलने हेतु उस नामजप का उच्चारण अध्यात्मशास्त्र की दृष्टि से उचित होना आवश्यक होता है ।‘

आज के काल अनुसार कौनसा नामजप करना चाहिए ?, इसका अध्यात्मशास्त्र की दृष्टि से अध्ययन कर महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय ने विविध नामजप ध्वनिमुद्रित किए हैं । महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की ६३ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त संगीत समन्वयक सुश्री (कुमारी) तेजल पात्रीकर (संगीत विशारद) ने परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी के मार्गदर्शन में नामजप ध्वनिमुद्रित किए हैं तथा वे सभी के लिए सनातन संस्था का जालस्थल एवं ‘सनातन चैतन्यवाणी’ एप पर उपलब्ध हैं ।

‘ॐ गँ गणपतये नमः ।’

‘श्री गणेशाय नमः ।’

श्री गणेशजी की आरती – सुख कर्ता

श्री गणपति अथर्वशीर्ष

संकष्टनाशन स्तोत्र

गणेशतत्त्व आकर्षित करनेवाली रंगोलियां

नित्य उपासना में भाव अथवा सगुण तत्वकी, तथापि गणेशाेत्सव में आनंद अथवा निर्गुण तत्त्वकी रंगोलियां बनाएं ।

विडंबन रोको !

धर्महानि रोकना कालानुसार आवश्यक धर्मपालन है और वह उस देवता की समष्टि स्तर की साधना ही है । बिना इस उपासना के देवता की उपासना पूर्ण नहीं हो सकती है । देवता को चित्र-विचित्र रूप में दिखाकर देवता की अवकृपा ओढ न लें !

अलग-अलग उपकरणों से श्री गणेशमूर्ति न बनाए !
देवता को चित्र-विचित्र रूप में दिखाकर देवता की अवकृपा ओढ न लें !
सामाजिक माध्यमों द्वारा श्रीगणेश के नाम पर पारपत्र प्रसारित कर श्रीगणेश का अनादर न करें !
कागद की लुगदी से बनाई गई गणेशमूर्ति हानिकारक होने का वैज्ञानिकदृष्टि से भी प्रमाणित !
मूर्ति में बीज रखकर गमले में ही श्री गणेशमूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा करना और मूर्ति पर पानी डालकर गमले में ही मूर्ति विसर्जित करने का अशास्त्रीय प्रकार न करें !
मूर्ति में बीज रखकर गमले में ही श्री गणेशमूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा करना और मूर्ति पर पानी डालकर गमले में ही मूर्ति विसर्जित करने का अशास्त्रीय प्रकार न करें !
क्रिकेट खेलनेवाले गणेशजी, बुलेटपर विराजमान गणेशजी, सुंड के रूप में इंजेक्शन की सीरींज, कान के रूप में किडनी ट्रे, मुकुट के रूप में बोतल, आंखों के रूप में कैप्सुल जैसे विविध चिकित्सा उपकरणों का उपयोग न करें !

धर्मशास्त्र के अनुसार श्री गणेश मुर्ति कैसी हों ?

  • गणेशमूर्ति खडियामिट्टी की ही हों !
  • स्पंदनशास्त्रानुसार एवं गुरु के मार्गदर्शनानुसार सनातन-निर्मित श्री गणेश मूर्ति के नाप जान लें !

श्री गणेश उपासनाकी लाभ दर्शानेवाली सूक्ष्म चित्रे

गणेश चतुर्थी निमित्त किजिए श्री गणेशजी के दर्शन

भक्तों के मन में भाव एवं भक्ति निर्माण करनेवाले श्री गणेशजी के मंदिरोंके बारे जानने हेतु अवश्य पढें ।