चंडीविधान (पाठ एवं हवन)
श्री दुर्गादेवी का एक नाम है चंडी । मार्कडेय पुराण में चंडी देवी का माहात्म्य बताया गया है, जिसमें उसके अवतारों का एवं पराक्रमों का विस्तार से वर्णन किया गया है ।
श्री दुर्गादेवी का एक नाम है चंडी । मार्कडेय पुराण में चंडी देवी का माहात्म्य बताया गया है, जिसमें उसके अवतारों का एवं पराक्रमों का विस्तार से वर्णन किया गया है ।
महाकाली ‘काल’ तत्त्व का, महासरस्वती ‘गति’ तत्त्व का एवं महालक्ष्मी ‘दिक्’ (दिशा) तत्त्व का प्रतीक है । काल के प्रवाह में सर्व पदार्थों का विनाश होता है ।
सावित्रीको अखंड सौभाग्यका प्रतीक माना जाता है । सावित्री समान अपने पतिकी आयुवृद्धिकी इच्छा करनेवाली सुहागिनोंद्वारा यह व्रत किया जाता है । यह एक काम्यव्रत है । किसी कामना अथवा इच्छापूर्तिके लिए किया जानेवाला व्रत काम्यव्रत कहलाता है ।
हमारे देशमें सूर्योपासनाके लिए प्रसिद्ध पर्व है छठ । मूलत: सूर्य षष्ठी व्रत होनेके कारण इसे छठ कहा गया है । यह पर्व वर्षमें दो बार मनाया जाता है ।
व्यावहारिक इच्छापूर्तिके उद्देश्यसे किए जानेवाले व्रतको ‘काम्य व्रत’ कहते हैं । श्रद्धाभावसे किया गया व्रत व्यक्तिको संतुष्टि प्रदान करता है एवं आगे व्रती निष्कामताकी ओर बढने लगता है ।
श्री महालक्ष्मी गौरीने भाद्रपद शुक्ल पक्ष अष्टमी के दिन असुरों का संहार कर शरण में आईं स्त्रियों के पतियों को तथा पृथ्वी के प्राणियों को सुखी किया ।
‘जिन ऋषियोंने अपने तपोबल से विश्व के मानव पर अनंत उपकार किए हैं, जीवन को उचित दिशा दी है । उन ऋषियों का इस दिन स्मरण किया जाता है ।
अनुरूप वर की प्राप्ति के लिए विवाहयोग्य कन्याएं हरितालिका व्रत करती हैं, तो सुुहाग को अखंड बनाए रखने के लिए सुहागन स्त्रियां भी यह व्रत करती हैं ।
सारणी १. व्रतको सोच-समझकर अंगीकार करना आवश्यक है २. व्रतका यथार्थ पालन आवश्यक है ३. आरंभ किया व्रत पूर्ण करना आवश्यक है ३.१ स्नानसंबंधी नियम ३.२ वस्त्र एवं अलंकार धारण करनेसंबंधी नियम ३.३ आचमनसंबंधी नियम ३.४ देवतापूजनसंबंधी नियम ३.५ आहारसंबंधी नियम ४. व्रतीके लिए वर्ज्य बातें ५. व्रतकालमें व्रतीद्वारा अपेक्षित गुणोंका पोषण ६. व्रतीके लिए … Read more
मनुष्य जीवनमें उसके स्वभावदोषोंके कारण ही अधिकांश समस्याओंका प्रादुर्भाव होता है । दोषोंके कारण उससे चूक होती है एवं उसका पाप बढता है । चूकोंके कारणही उसे दुःखोंका सामना करना पडता है ।