अक्षय्य तृतीया के दिन तिलतर्पण का महत्त्व क्या है ?

अक्षय्य तृतीयाके दिन ब्रह्मा एवं श्रीविष्णु इन दो देवताओंका सम्मिलित तत्त्व पृथ्वीपर आता है । ऐसे पवित्र दिनपर किए गए पूजा-पाठ, होम-हवन, नामजप, दान, पितृतर्पण इत्यादिका लाभ भी अत्यधिक मिलता है ।

हिंदु संस्कृति के अनुसार नववर्ष कब मनाए ?

सर्व ऋतुओंमें बहार लानेवाली ऋतु है, वसंत ऋतु । इस काल में उत्साहवर्द्धक, आह्लाददायक एवं समशीतोष्ण वायु होती है । इस प्रकार भगवान श्रीकृष्णजी की विभूतिस्वरूप वसंतऋतु के आरंभ का दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा नववर्ष है ।

वर्षारंभदिन एवं उसे मनानेका शास्त्र

चैत्र शुक्ल प्रतिपदाके दिन तेजतत्त्व एवं प्रजापति तरंगें अधिक मात्रामें कार्यरत रहती हैं । अत: सूर्योदयके उपरांत ५ से १० मिनटमेंही ब्रह्म ध्वजको खडाकर उसका पूजन करनेसे जीवोंको ईश्वरीय तरंगोका अत्याधिक लाभ मिलता है ।

धूलिवंदन का महत्त्व

होली ब्रह्मांडका एक तेजोत्सव है । होलीके दिन ब्रह्मांडमें विविध तेजोमय तरंगोंका भ्रमण बढता है । इसके कारण अनेक रंग आवश्यकताके अनुसार साकार होते हैं । रंगोंका स्वागत हेतु होलीके दूसरे दिन ‘धूलिवंदन’ का उत्सव मनाया जाता है ।

शिव-शिमगा कैसे मनाएं ?

धूलिवंदन के दिन अपने घरमें जन्मे नए शिशु की रक्षा हेतु उसके पहले होली पर विशेष विधि किया जाता है । इसे ‘शिव-शिमगा’ कहते हैं ।

रंगपंचमी मनाने का उद्देश्य

रंगपंचमीके दिन एक-दूसरेके शरीरको स्पर्श कर रंग लगानेसे नहीं; अपितु केवल वायुमंडलमें रंगोंको सहर्ष उडाकर उसे मनाना चाहिए । वातावरणमें होनेवाली प्रक्रिया रंगपंचमीके दिन तेजतत्त्वामक शक्तिके कण ईश्वरीय चैतन्यका प्रवाह एवं आनंद का प्रवाह पृथ्वीकी ओर आकृष्ट होता है ।

हाथ उलटा कर मुंहपर रखकर जोरजोरसे चिल्लाने का शास्त्राधार

हुताशनी पूर्णिमा अर्थात होलिकोत्सव! होली प्रज्वलनके उपरांत हाथ उलटाकर मुंहपर रखकर जोरजोरसे चिल्लानेका कृत्य किया जाता है ।

होली का महत्त्व एवं होली मनाने की पद्धति

होलीके दिन अग्निदेवताकी पूजा करनेसे व्यक्तिको तेजतत्त्वका लाभ होता है । इससे व्यक्तिमेंसे रज-तमकी मात्रा घटती है । इसीलिए इस दिन अग्निदेवताकी पूजा कर उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त की जाती है ।

होली की शास्त्रानुसार रचना एवं होली मनानेकी उचित पद्धति

होलीकी ऊंचाई साधारणतः पांच-छः फुट होनी चाहिए । होलीकी रचना करते समय मध्यस्थानपर गन्ना,
अरंड तथा सुपारीके पेडका तना खडा करते है । होलीकी रचनामें गायके गोबरसे बने उपलोंका उपयोग करते है ।