नवरात्रिमें आधुनिक गरबा : संस्कृतिका जतन नहीं; बल्कि पतन !

हिंदुओ, हमाारे सार्वजनिक उत्सवोंका विकृतिकरण हो रहा है । अधिकांश लोग उत्सव मनानेके धार्मिक, आध्यात्मिक व सामाजिक कारणको भूलकर केवल मौजमस्ती इस एक ही दृष्टिसे उत्सवोंकी ओर देखते हैं ।

विसर्जनकी विविध कृतीया एवं उनका अध्यात्मशास्र

ऐसी जगदोद्धारिणी मां शक्तिके प्रति कृतज्ञता व्यक्त कर आवाहित शक्तितत्त्वको उनके मूल स्थानपर विराजमान होनेकी विनती करनेका दिन है महानवमी । इस दिन वेदीपर स्थापित घट एवं नवार्णव यंत्रपर स्थापित देवी का विशेष पूजन कर उनका विसर्जन करते हैं ।

दुर्गाष्टमी

दुर्गाष्टमीके दिन देवीके अनेक अनुष्ठान करनेका महत्त्व है । इसलिए इसे `महाष्टमी’ भी कहते हैं । अष्टमी एवं नवमीकी तिथियोंके संधिकालमें अर्थात अष्टमी तिथि पूर्ण होकर नवमी तिथिके आरंभ होनेके बीचके कालमें देवी शक्तिधारणा / शक्ति धारण करती हैं ।

घटस्थापना के विधिओं का शास्रीय आधार तथा उनका आध्यात्मिक परिणाम

नवरात्रिके प्रथम दिन घटस्थापना करते हैं । घटस्थापना करना अर्थात नवरात्रिकी कालावधिमें ब्रह्मांडमें कार्यरत शक्तितत्त्वका घटमें आवाहन कर उसे कार्यरत करना ।

गुरुपूर्णिमाका अध्यात्मशास्त्रीय महत्त्व

गुरुदेव वे हैं, जो साधना बताते हैं, साधना करवाते हैं एवं आनंदकी अनुभूति प्रदान करते हैं । गुरुका ध्यान शिष्यके भौतिक सुखकी ओर नहीं, अपितु केवल उसकी आध्यात्मिक उन्नतिपर होता है ।

गुरुपूर्णिमाके दिन गुरुतत्त्व १ सहस्त्र गुना कार्यरत रहता है

गुरु ईश्वरके सगुण रूप होते हैं । उन्हें तन, मन, बुद्धि तथा धन समर्पित करनेसे उनकी कृपा अखंड रूपसे कार्यरत रहती है ।

सार्वजनिक श्रीगणेशोत्सव : कैसा न हो तथा कैसा हो ?

हिंदूओंमें धर्मनिष्ठा एवं राष्ट्रनिष्ठा बढे, उन्हें संगठित करनेमें सहायता हो, लोकमान्य तिलकने इस उदात्त हेतु सार्वजनिक गणेशोत्सव आरंभ किया; परंतु आजकल सार्वजनिक गणेशोत्सवोंमें होनेवाले अनाचार एवं अनुशासनहीनताके कारण उत्सवका मूल उद्देश्य विफल होनेके साथ उसकी पवित्रता भी नष्ट होती जा रही है । ‘सार्वजनिक श्रीगणेशोत्सव कैसा न हो तथा कैसा हो’, आगे दिए सूत्रोंसे इसकी जानकारी हो सकती है ।

ब्रह्मध्वजा पर रखे जानेवाले तांबे के कलश का महत्त्व !

आजकल ऐसा देखने को मिलता है कि कुछ लोग ब्रह्मध्‍वजा पर स्‍टील या तांबे का लोटा अथवा घडे के आकारवाला बरतन रखते हैं । धर्मशास्‍त्र के अनुसार ‘ब्रह्मध्‍वजा पर तांबे का कलश उल्‍टा रखने का अध्‍यात्‍मशास्‍त्रीय विवेचन यहां दे रहे हैं । इससे हमारी संस्‍कृति का महत्त्व तथा प्रत्‍येक कृत्‍य धर्मशास्‍त्र के अनुसार करने का महत्त्व समझ में आता है !

श्री दुर्गासप्तशती पाठ एवं हवन

नवरात्रिकी कालावधिमें देवीपूजनके साथ उपासनास्वरूप देवीके स्तोत्र, सहस्रनाम, देवीमाहात्म्य इत्यादिके यथाशक्ति पाठ एवं पाठसमाप्तिके दिन हवन विशेष रूपसे करते हैं ।सुख, लाभ, जय इत्यादि कामनाओंकी पूर्तिके लिए सप्तशतीपाठ करनेका महत्त्व बताया गया है । श्री दुर्गासप्तशती पाठमें देवीमांके विविध रूपोंको वंदन किया गया है ।

देवालयमें शिवजीके दर्शन कैसे करें ?

नंदीकी बाईं ओर साष्टांग नमस्कार करनेसे व्यक्तिमें शरणागतभाव जागृत होता है तथा देवालयमें विद्यमान चैतन्य तरंगें उसके देहमें प्रवाहित होने लगती हैं ।