अक्कलकोट के श्री स्वामी समर्थ की समाधि के छायाचित्र
‘डरो मत…! – तुम्हारी रक्षा के लिए मैं तुम्हारे साथ हूं !’ मराठी में ऐसा आशीर्वचन देनेवाले श्री स्वामी समर्थ । स्वामी समर्थ अर्थात प्रभु दत्तात्रेय के चौथे अवतार ।
‘डरो मत…! – तुम्हारी रक्षा के लिए मैं तुम्हारे साथ हूं !’ मराठी में ऐसा आशीर्वचन देनेवाले श्री स्वामी समर्थ । स्वामी समर्थ अर्थात प्रभु दत्तात्रेय के चौथे अवतार ।
भारतीय रुपया जैसा उस पर महात्मा गांधी अथवा किसी नेपाली राजनेता का चित्र नहीं, अपितु इस नोट पर हिमालय का चित्र है ।
भक्ति काल के सर्वश्रेष्ठ संत कवि सूरदास की रचनाओं को जो भी पढता है, वह श्रीकृष्ण की भक्ति में डूबे बिना नहीं रह पाता है ।
संत मीरा बाई ने बताया है कि श्रीकृष्ण के प्रति अटूट आस्था के कारण, उनपर दृढ श्रद्धा के कारण उन्होंने अपने जीवन के कठिन से कठिन प्रसंग भी पार किए हैं ।
गुरुआज्ञा मानकर ही तो संत सूरदास जी ने अपने को कृष्ण भक्ति में ऐसा डुबो दिया था कि आज भी उनके समान दूसरे भक्त कवि नहीं हुए ।
मन का कार्य ही है विचार करना । इस कारण मन में सदैव संकल्प और विकल्प आते रहते हैं । इस कारण जब तक साधना करके मनोलय की स्थिति नहीं आती, तब तक मन में संदेह उत्पन्न होना स्वाभाविक है ।
कुछ लोगों की मोहमाया की इच्छाएं तृप्त ही नहीं होतीं । वे गुरु के पास सतत कुछ ना कुछ मांगते ही रहते हैं । वे लोग भूल जाते हैं कि मन की इच्छा नष्ट कर मनोलय करवाना ही गुरु का खरा कार्य है ।
जो भी व्यक्ति रामनाम का, प्रभुनाम का पूरा लाभ लेना चाहे, उसे दस दोषों से अवश्य बचना चाहिए । ये दस दोष ‘नामापराध’ कहलाते हैं ।
गुरुमंत्र देवता का नाम, मंत्र, अंक अथवा शब्द होता है जो गुरु अपने शिष्य को जप करने हेतु देते हैं ।
गुरु अर्थात ईश्वर का साकार रूप व ईश्वर अर्थात गुरु का निराकार रूप, ऐसे शास्त्र बताते हैं ।