मनुष्य जीवन पर ग्रहदोषों के प्रभाव को सहनीय बनाने के लिए ‘साधना करना’ ही सर्वाेत्तम उपाय
ग्रहदोष का अर्थ कुंडली में ग्रहों की अशुभ स्थिति ! कुंडली में कोई ग्रह दूषित हो, तो उस व्यक्ति को उस ग्रह के अशुभ फल प्राप्त होते हैं,
ग्रहदोष का अर्थ कुंडली में ग्रहों की अशुभ स्थिति ! कुंडली में कोई ग्रह दूषित हो, तो उस व्यक्ति को उस ग्रह के अशुभ फल प्राप्त होते हैं,
वेद से लेकर अनेक भारतीय पौराणिक ग्रंथों में महासागर, समुद्र और नदियों से जुडी ऐसी अनेकानेक घटनाओं का उल्लेख है, जिससे यह पता चलता है कि भारतीयों को नौकायान का ज्ञान आदिकाल से ही रहा है । भारतीय साहित्यकला, मूर्तिकला, चित्रकला और पुरातत्व-विज्ञान से प्राप्त अनेक साक्ष्यों से भारत की समुद्री परंपराओं का अस्तित्व प्रमाणित … Read more
हिन्दू धर्म में परमेश्वर, ईश्वर, अवतार तथा देवता ऐसी संकल्पना है । ‘ईश्वर’ शब्द सामान्यतः जगन्नियंता, सृष्टि-स्थिति-प्रलय के कर्ता, सर्वव्यापक, सर्वांतर्यामी और देवाधिदेव आदि अर्थों से उपयोग किया जाता है । प्रत्यक्ष में ईश्वर एक ही हैं, तथा वह निर्गुण, निराकार हैं ।
नववर्षारंभ तथा दशहरे के दिन सरस्वतीपूजन करें । ब्रह्मांड में नववर्षारंभ पर श्री सरस्वतीदेवी के तारक तत्त्व की तरंगें एवं दशहरे के दिन महासरस्वतीदेवी के मारक तत्त्व की तरंगें कार्यरत होती हैं ।
वर्तमान लेख में, हमने स्वामी विवेकानंद द्वारा प्रदान की गई सेवा, गुरु के प्रति उनके दृष्टिकोण, गुरुकृपा के महत्व और गुरुकृपा और गुरुकृपा के कारण व्यक्तिगत लक्ष्य को कैसे पूरा किया, इस पर चर्चा की है।
भयंकर दोष उत्पन्न करनेवाली आज की शिक्षा पद्धति की तुलना में मनुष्य का चारित्र बनानेवाली शिक्षा देना क्यों आवश्यक है, इसपर स्वामी विवेकानंद के अमूल्य विचार हम प्रस्तुत लेख में जानेंगे ।
धर्मप्रवर्तक, दार्शनिक, विचारक, वेदान्तमार्गी राष्ट्रसंत आदि विविध रूपों में विवेकानंद का नाम पूरे विश्व में प्रसिद्ध है । भरी युवावस्था में संन्यास की दीक्षा लेकर हिन्दू धर्म का प्रचारक बने तेजस्वी एवं ध्येयवादी व्यक्तित्त्व थे, स्वामी विवेकानंद ।
इंग्लैंड और अमेरिका में मेरे छोटे-से कार्य को ‘थियोसोफिस्ट’ लोगों ने सहायता की, यह समाचार सर्वत्र फैलाया जा रहा है । आपको यह स्पष्ट बताना चाहता हूं कि यह समाचार पूर्णत: असत्य है ।
धर्मांतरित हिन्दुओं और मूलतः अहिन्दुओं के शुद्धीकरण पर ‘प्रबुद्ध भारत’ पत्रिका के प्रतिनिधि ने वर्ष १८९९ में स्वामी विवेकानंद से वार्तालाप किया था ।
एक बार जब स्वामीजी अपने शिष्यों के साथ कश्मीर गए थे, तब उन्हें वहां क्षीर भवानी मंदिर के भग्नावशेष दिखाई दिए । उन्होंने बहुत दुखी होकर अपनेआप से पूछा, जब यह मंदिर भ्रष्ट और भग्न किया जा रहा था, तब लोगों ने प्राणों की बाजी लगाकर प्रतिकार क्यों नहीं किया ?