पानी की शक्ति और सकारात्मकता
पानी अर्थात जीवन । पानी में स्वयं की विशिष्ट एक स्मरणशक्ति होती है । पानी पीते समय जिसप्रकार के अपने विचार होते हैं अथवा जिस मानसिक स्थिति में हम पानी पीते हैं, उसका भारी परिणाम पानी पर और हम पर होता है ।
पानी अर्थात जीवन । पानी में स्वयं की विशिष्ट एक स्मरणशक्ति होती है । पानी पीते समय जिसप्रकार के अपने विचार होते हैं अथवा जिस मानसिक स्थिति में हम पानी पीते हैं, उसका भारी परिणाम पानी पर और हम पर होता है ।
गुरू का यथावत आज्ञापालन करनेवाले ब्रह्मचैतन्य गोंदवलेकर महाराज !
‘ज्योतिषशास्त्र मन और स्वभाव का भी वेध ले सकता है । इसलिए जाने-अनजाने में जिनके अपराध की ओर मुडने की संभावना हो, उन्हें समय रहते ही सावधान कर, इसके साथ ही जो पहले ही अपराधी जगत में प्रवेश कर चुके हैं, उन्हें अच्छे मार्ग पर लाने के लिए उनका मार्गदर्शन कर समाज में अपराध नियंत्रित करने में यह शास्त्र सहायता कर सकता है ।’
चिंतन, कठोर अनुष्ठान, जप-तप, वैराग्य, संन्यास ये विषय शनि ग्रह के अधिकारक्षेत्र में आते हैं ।
‘ज्योतिषी केवल शास्त्र बता सकेंगे; परंतु वे बचा नहीं सकेंगे । संत उपाय बताकर कष्टों की तीव्रता न्यून कर सकते हैं ।
बहुत प्राचीन समय से चीन, तिब्बत और भारत के सांस्कृतिक संबंध थे । तिब्बत को त्रिविष्टप अर्थात स्वर्ग’ कहा गया है । मनु ने चीन का उल्लेख किया है (ई.स.पू. ८०००) । रेशम चीन से आता है; इसलिए पाणिनि ने (ई.स.पू. २१०० वर्ष) उसे चीनांशुक’ कहा है ।
शिवाजी विश्वविद्यालय के युवा शोधकर्ता छात्र प्रशांत सावळकर एवं ऋतुजा मांडवक ने देसी गीर गाय के मूत्र की (गोमूत्र की) सहायता से चांदी धातु का विघटन कर उससे रुपहले सूक्ष्म कण (नैनो पार्टिकल्स) तैयार किए हैं । इस शोध से यह बात सामने आई है कि ‘चांदी के यह अरबांश कण (सिल्वर नैनो पार्टिकल्स) वस्रोद्योग से बाहर निकलनेवाले अत्यंत विषैले पानी के शुद्धिकरण के लिए उपयोग किए जा सकते हैं ।
हाल ही में हुए एक शोध में यह बात सामने आई है कि यज्ञयाग से मनुष्य का तनाव अल्प होने के साथ-साथ वातावरण के प्रदूषण का स्तर भी न्यून होता है ।
हिमाचल प्रदेश को ‘देवभूमि हिमाचल’ कहा जाता है । युग-युग से हिमाचल प्रदेश देवताओं एवं ऋषि-मुनियों का निवासस्थान रहा है । यहां वसिष्ठ, पराशर, व्यास, जमदग्नि, भृगु, मनु, विश्वामित्र, अत्री आदि अनेक ऋषियों की तपोस्थली, साथ ही शिव-पार्वती से संबंधित अनेक दिव्य स्थान हैं ।
‘भारत की परिस्थिती में कुछ परिवर्तन होगा’ इसकी अपेक्षा करना अत्यंत अनुचित तथा घातक है । इस पर एकमात्र उपाय यही है कि, संतों के नेतृत्व में सात्त्विक लोगों को संगठित होकर हिन्दु राष्ट्र की स्थापना करना !