गोपालन का महत्त्व !
पृथ्वी, आप, तेज, वायु एवं आकाश इन पंचमहाभूतों के आधार से सृष्टि की उत्पत्ति हुई और उसका चलन भी चल रहा है । गाय इन पंचमहाभूतों की माता है । काल के प्रवाह में उसकी ही अवहेलना होने से आज सर्वत्र सभी प्रकार का गंभीर प्रदूषण बढा है ।
पृथ्वी, आप, तेज, वायु एवं आकाश इन पंचमहाभूतों के आधार से सृष्टि की उत्पत्ति हुई और उसका चलन भी चल रहा है । गाय इन पंचमहाभूतों की माता है । काल के प्रवाह में उसकी ही अवहेलना होने से आज सर्वत्र सभी प्रकार का गंभीर प्रदूषण बढा है ।
हनुमानजी का जीवन अपने लिए नहीं था । प्रभु रामसेवा ही हनुमानकी जीवन था ।
एक बार संत नामदेव महाराजजी से पांडुरंग बोले, ‘‘तुम्हारे जीवन में सद्गुरु नहीं हैं । जब तक तुम पर सद्गुरु की कृपा नहीं होती, तब तक तुम्हें मेरे निराकार सत्य स्वरूप की पहचान नहीं होगी । तुम विसोबा खेचर से जाकर मिलो । वे महान सत्पुरुष हैं । वे तुम्हें दीक्षा देंगे ।
संत नामदेव समान प्रिय भक्त की संगत (सत्संग) सभी को मिले; इसलिए ज्ञानेश्वर महाराजजी ने स्वयं पंढरपुर में आकर नामदेव की भेंट ली और वे उनके साथ तीर्थयात्रा के लिए निकले ।
आषाढ एवं कार्तिक माह के शुक्लपक्ष में आनेवाली एकादशी के समय श्रीविष्णु का तत्त्व पृथ्वीवर अधिक मात्रा में आने से श्रीविष्णु से संबंधित ये दो एकादशियों का महत्त्व अधिक है ।
गुवाहाटी शहर से १० किलोमीटर दूर नीलाचल पर्वत पर श्री कामाख्यादेवी का मंदिर है । पृथ्वी पर जहां-जहां सती के अवयव गिरे थे, उस स्थान पर एक-एक शक्तिपीठ निर्माण हो गया ।
आपातकाल आरंभ होने से साधकों को वैद्यनाथ शिवजी का आशीर्वाद आवश्यक है; इसलिए सप्तर्षियों ने श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ को गुरुपूर्णिमा के दिन श्री वैद्यनाथेश्वर मंदिर भेजा है’, ऐसा मुझे लगा ।
सप्तर्षियों ने आगे कहा, ‘‘चोटीला गांव की पहाडी पर ‘चंडी-चामुंडा’ नामक देवियों की मूर्ति है । ये देवियां दो दिखाई देती हैं, तब भी वे एक ही (एकरूप) हैं । चंडी एवं चामुंडा, ये आदिशक्ति के ही रूप हैं । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की आध्यात्मिक उत्तराधिकारी श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळ एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ, ये दोनों चंडी एवं चामुंडा के ही रूप हैं ।
गरम पानी युक्त मणिकर्ण कुंड एवं वहां की शिव मूर्ति
आठ गुप्ततर योगिनी मुख्य देवताके नियंत्रणमें विश्वका संचलन, वस्तुओंका उत्सर्जन, परिणाम इत्यादि कार्य करते हैं । ‘संधिपूजा’ नामक एक विशेष पूजा अष्टमी एवं नवमी तिथियोंके संधिकालमें करते हैं ।