११ वे शतक में यशोधरपुरा के राजे उदयादित्यवर्मन (दूसरे) द्वारा निर्माणकार्य किया गया बापून मंदिर !

अंकोर थाम परिसर के बॅयान मंदिर से कुछ दूरी पर हमें पिरॅमिड के आकार में अब भग्न हुआ एक महान मंदिर दिखाई देता है । इसे ही बापून मंदिर कहा जाता है । ११ वे शतक के यशोधरपुरा के राजे उदयादित्यवर्मन (दूसरे) शिवभक्त थे ।

सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र निर्माण करनेवाली वैदिक शिक्षापद्धति !

प्राचीनकाल में हमारे देश में वैदिक शिक्षणपद्धति थी । इसलिए, उस समय भारत सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र था । कहा जाता है कि तब यह देश इतना समृद्ध था कि यहां की भूमि से सोने का धुआं निकलता था । इस वैदिक शिक्षापद्धति की नींव आध्यात्मिक थी ।

अंकोर वाट : राजा सूर्यवर्मन (द्वितीय) द्वारा कंबोडिया में बनाया गया हिन्दुओं का संसार का सबसे विशाल मंदिर !

हिन्दु राजा यशोवर्मन द्वारा स्थापित अंकोर नगरी का नाम यशोधरापुरा होना, आगे उसी वंश के राजा सूर्यवर्मन (द्वितीय) द्वारा नगर के मध्य में भगवान श्रीविष्णु का भव्य परमविष्णुलोक’ मंदिर बनाना संसारका सबसे बडा हिन्दू मंदिर हिन्दुबहुल भारत में नहीं , कंबोडिया में है ।

कंबोडिया बौद्ध राष्ट्र होते हुए भी वहां का राजा नरोदोम सिंहमोनी के राजवाडे में सर्व चिह्न ‘सनातन हिन्दु धर्म’ से संबंधित हैं !

‘महाभारत में जिस भूभाग को ‘कंभोज देश’ इस नाम से संबोधित किया जाताहै, वह अर्थात् वर्तमान का कंबोडिया देश ! यहां १५ वे शतक तक हिन्दु निवास करते थे । ऐसा कहा जाता है कि, ‘खमेर नामक हिन्दु साम्राज्य यहां वर्ष ८०२ से १४२१ तक था ।’ वास्तविक कंभोज प्रदेश कौडिण्य ऋषि का क्षेत्र था, साथ ही कंभोज देश नागलोक भी था ।

स्वामी विवेकानंदजी का उनके गुरु के प्रति उत्कट भाव !

वर्ष १८९६ में स्वामी विवेकानंद आगनांव से (जहाज से) नॅप्लस से कोलंबो की ओर आ रहे थे । उनके सहयात्रियों में दो ईसाई धर्मगुरु थे । अकारण वे हिन्दु धर्म तथा ईसाई पंथ में होनेवाले भेद इस विषय पर चर्चा विवाद करने लगे ।

विदेशी व्यक्तियों का स्पर्श होने पर सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळ को अनुभव हुआ सात्त्विक स्पर्श और असात्त्विक स्पर्श में भेद !

सद्गुरु(श्रीमती) अंजली गाडगीळ महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय की ओर से दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों की आध्यात्मिक अध्ययन यात्रा की । उसके अंतर्गत विविध देशों में अनेक स्थानों पर जाकर वहां की प्रथा-परंपराएं , संस्कृति आदि विषय की जानकरी लेने की सेवा वे कर रही है । उस समय वहां विविध देशों से आए अनेक पर्यटक भी होते हैं ।

बुद्धि, बल, कीर्ति, धैर्य तथा निर्भयता प्रदान करनेवाले पंचमुखी हनुमान !

जिस प्रकार से वैकुंठ में भगवान विष्णुजी की सेवा करने में गरुड व्यस्त रहता है, उसी प्रकार से हनुमानजी सदैव श्रीरामजी की सेवा में व्यस्त रहते हैं । गरुड ने अपनी माता को दासता से छुडाने के लिए, स्वर्ग से अमृत लाकर दिया था । उसी प्रकार से हनुमानजी मूर्च्छित लक्ष्मण के लिए संजीवनी वनस्पति लेकर आए ।

भक्ति – भाव वृद्धिंगत करनेवाले, हनुमानजी के कुछ पराक्रमों का स्मरण !

बुद्धिजीवियो, आपके सामने केवल २ ही विकल्प हैं, एक तो आप हनुमानजी की भांति न्यूनतम एक पराक्रम करने के लिए सिद्ध हो जाएं अथवा हनुमानजी के निम्न अतुलनीय पराक्रमों को स्वीकार कर अपनी हार स्वीकार करें !

समाजव्यवस्था दीर्घकाल तक सुसंगठित रखने में सक्षम धर्मशास्त्र !

हजारों वर्षों तक राजसत्ता होते हुए और न होते हुए भी समाज व्यवस्था दीर्घकाल तक सुसंगठित रखने में धर्मशास्त्र कितना प्रभावशाली रहा है !

गुरु समर्थ रामदास स्वामी के प्राण बचाने के लिए बाघिन का दूध दूहकर लानेवाले छत्रपति शिवाजी महाराज !

शिवाजी महाराज प्रत्येक गुरुवार समर्थ रामदासस्वामी के दर्शन कर ही भोजन करते थे । समर्थ के दर्शन में कितनी भी बाधा आए, वे दुखी नहीं होते थे ।