गोमूत्र से कर्कव्याधी अच्छी हो सकती है ! – गुजरात के संशोधकों का दावा

जुनागड कृषि विद्यापीठ के संशोधकों ने यह दावा किया है कि, गोमूत्र के कारण मुंह, यकृत, मूत्रपिंड, त्वचा तथा स्तन का कर्करोग ठीक हो सकता है । कृषि विद्यापीठ की श्रद्धा भट, रुकमसिंग तोमर तथा कविता जोशी ने पूरे वर्ष संशोधन कर यह निष्कर्ष निकाला है ।

शिष्यभाव का महत्त्व

साधना में साधक के लिए शिष्यभाव में रहना बहुत महत्त्वपूर्ण होता है । वह जब शिष्य बनता है, तब उसकी आगे की प्रगति गुरुकृपा से ही होती है । शिष्य बनने पर ही, गुरु साधक का पूरा दायित्व लेते हैं ।

श्रीलंका में जहां सीतामाता ने अग्निपरीक्षा दी, उस स्थान की गुरुकृपा से संपन्न अविस्मरणीय यात्रा !

महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की ओर से सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी तथा छात्र-साधकों द्वारा की गई रामायण से संबंधित श्रीलंका की अध्ययन यात्रा ! रामायण में जिस भूभाग को लंका अथवा लंकापुरी कहा जाता है, वह स्थान है आज का श्रीलंका देश ! त्रेतायुग में श्रीमहाविष्णुजी ने श्रीरामावतार धारण किया तथा लंकापुरी जाकर रावणादि असुरों का नाश किया ।

शिष्य

आध्यात्मिक उन्नति हेतु जो गुरु द्वारा बताई साधना करता है, उसे ‘शिष्य’ कहते हैं । शिष्यत्व का महत्त्व यह है कि उसे देवऋण, ऋषिऋण, पितरऋण एवं समाजऋण चुकाने नहीं पडते ।

सीतामाता तथा हनुमानजी के पदस्पर्श से पवित्रत तथा केवल दर्शनमात्र से भाव जागृत करनेवाली श्रीलंका की अशोक वाटिका !

रामायण में जिस भूभाग को लंका अथवा लंकापुरी कहा गया है, वह स्थान आज का श्रीलंका देश है । त्रेतायुग में श्रीमहाविष्णुजी ने श्रीरामावतार धारण किया तथा लंकापुरी जाकर रावणादि असुरों का नाश किया । इस स्थानपर युगों-युगों से हिन्दू संस्कृति ही थी ।

स्वयंभू गणेशमूर्ति

श्री विघ्नेश्‍वर, श्री गिरिजात्मज एवं श्री वरदविनायक की मूर्तियां स्वयंभू हैं । बनाई गईं श्री गणेशमूर्ति की तुलना में स्वयंभू गणेशमूर्ति में चैतन्य अधिक होता है । स्वयंभू गणेशमूर्ति द्वारा वातावरणशुद्धी का कार्य अनंत गुना अधिक होता है ।

अष्टविनायक

सिद्धटेक का श्री सिद्धीविनायक भीमा नदी पर बसे अष्टविनायकों का स्वयंभू स्थान है । इसका गर्भगृह की लंबाई-चौडाई काफी है । इसके साथ ही मंडप भी बडा और प्रशस्त है । पुण्यश्लोक अहिल्याबाई होळकर ने जीर्णोद्धार कर मंदिर बनाया था ।

भक्तों के मन में भाव एवं भक्ति निर्माण करनेवाले कळंब (जिला यवतमाळ) के प्रसिद्ध श्री चिंतामणी की महिमा !

यवतमाळ-नागपुर राज्य महामार्ग पर यवतमाळ से २३ कि.मी. के अंतर पर श्री क्षेत्र कळंब गांव के प्रसिद्ध श्री चिंतामणी मंदिर लाखों भाविकों के श्रद्धास्थान हैं । इस प्रसिद्ध श्री चिंतामणी मंदिर के विषय में तथा श्री चिंतामणी की आख्यायिका जान लेते हैं ।

थेऊर में स्थापित चिंतामणि गणपति (अष्टविनायकों में से एक) !

आकाशवाणी द्वारा हुए आदेश से महर्षि गृत्समद ने विदर्भ छोडकर पुणे जिले के थेऊर को अपनी कार्यभूमि के रूप में चुना और तपश्‍चर्या प्रारंभ की । बारह वर्षों की तपस्या के उपरांत भगवान गणेश प्रकट हुए और उन्होंने महर्षि गृत्समद को अनेक वरदान दिए । उसी स्थान पर महर्षि गृत्समद ने श्री गणेश की स्थापना की ।

मोरगांव के मयुरेश्‍वर : भूलोक में अधिक आनंद देनेवाले स्थान !

ब्रह्मदेव के कमंडल का पानी नीचे पृथ्वी पर छलका और कर्हा नामक नदी का उदय हुआ । इस नदी के किनारे मयुरेश्‍वर आदि क्षेत्र अत्यंत प्राचीन काल से बसा है । मोरगांव के गणपति के रूप में विख्यात क्षेत्र पुणे जिले में आता है । यह क्षेत्र अविनाशी है ।