प्रभु श्रीरामजी से संबंधित श्रीलंका एवं भारत के विविध स्थानों का भावपूर्ण दर्शन करते हैं !
रामायण का काल अर्थात लाखों वर्ष प्राचीन है । उससे हिन्दू संस्कृति की महानता और प्राचीनता की प्रचीती होती है ।
रामायण का काल अर्थात लाखों वर्ष प्राचीन है । उससे हिन्दू संस्कृति की महानता और प्राचीनता की प्रचीती होती है ।
कुंभपर्व अत्यंत पुण्यकारी होने के कारण इस पर्व में प्रयाग, हरद्वार (हरिद्वार), उज्जैन एवं त्र्यंबकेश्वर-नासिक में स्नान करने से अनंत पुण्यलाभ मिलता है । इसीलिए करोडों श्रद्धालु और साधु-संत यहां एकत्रित होते हैं ।
अमेरिका अथवा अन्य किसी देश में कोई प्राचीन वस्तु मिलनेपर उसका विश्व में ढिंढोरा पीटा जाता है; किंतु अतिप्राचीन अक्षयवट की महिमा संपूर्ण विश्व को गर्व प्रतीत होनेयोग्य होते हुए भी भारत के तत्कालीन कांगेस सरकार ने उसे दर्शन हेतु नहीं खोला ।
भारत से दूर इंडोनेशिया में वहां के लोगों ने अभी तक रामायण नृत्यनाटिका के माध्यम से राम के आदर्शों को संजोया है । रामायण वास्तव में घटित हुए अनेक युग बीत गए; परंतु विश्व में अनेक स्थानों पर अलग-अलग रूप में रामायण की कथा बताई जाती है ।
रामायण में जिस भूभाग को लंका अथवा लंकापुरी कहा गया है, वह स्थान है आज का श्रीलंका देश ! त्रेतायुग में श्रीमहाविष्णुजी ने श्रीरामावतार धारण किया तथा लंकापुरी जाकर रावणादि असुरों का नाश किया । वाल्मिकी रामायण में महर्षि वाल्मिकी ने जो लिखा, उसीके अनुरूप घटनाएं घटने के अनेक प्रमाण श्रीलंका में मिलते हैं ।
कुम्भ मेला एक प्रकार का धार्मिक मेला है । करोडों हिन्दुओं के जनसमूह की उपस्थिति में संपन्न होनेवाला कुम्भ क्षेत्र का मेला विश्व का सबसे बडा धार्मिक मेला है । कुम्भ मेले में सभी पंथों तथा संप्रदायों के साधु-संत, सत्पुरुष तथा सिद्धपुरुष लाखों की संख्या में एकत्र आते हैं ।
कुंभपर्व के समय आयोजित धार्मिक सम्मेलन में शस्त्र धारण करने के विषय में निर्णय होकर एकत्रित होने के अखंड आवाहन किया गया ।
वर्ष २०१९ के सनातन पंचांग के दिसंबर मास के पृष्ठपर श्रीदत्त का नया चित्र प्रकाशित हुआ है । इस चित्र में श्रीदत्त के संपूर्ण शरीर की कांति तथा श्रीदत्त के तीनों मुखों की कांति सुनहरी रंग की दिखाई गई है ।
विज्ञान नहीं, अपितु अध्यात्म ही मानव की खरी उन्नति कर सकता है और उसे आनंद और शांति दे सकता है । महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय द्वारा किए जा रहे अध्यात्म के प्रसार का परिचय करवाने और अन्यों को इसमें सम्मिलित करने के लिए हमारी यात्रा चल रही है ।
एक समय जहां समुद्रमंथन हुआ था, वह भूभाग आज का इण्डोनेशिया है ! १५ वीं शताब्दी तक इण्डोनेशिया में श्रीविजय, मातरम्, शैलेंद्र, संजया, मजपाहित जैसे हिन्दू राजाओं का राज्य था । पश्चात, मुसलमानों के आक्रमण से वहां की भाषा और संस्कृति में परिवर्तन हुआ ।