शनैश्चर देवता का माहात्म्य !
महाराष्ट्र के शनिशिंगणापुर में शनिदेव काली बडी शिला के रूप में है और वहां शनिदेव की शक्ति कार्यरत है । इसलिए शनिशिंगणापुर शनि का कार्यक्षेत्र है ।
महाराष्ट्र के शनिशिंगणापुर में शनिदेव काली बडी शिला के रूप में है और वहां शनिदेव की शक्ति कार्यरत है । इसलिए शनिशिंगणापुर शनि का कार्यक्षेत्र है ।
माघ कृष्ण पक्ष नवमी को ‘रामदासनवमी’ पडती है ! रामदासस्वामी ने अपने जीवनकाल में अनेक अवसरों पर उपदेश किया था । वे केवल उपदेश नहीं करते थे, जीवों का उद्धार भी करते थे । रामदासनवमी के उपलक्ष्य में ऐसी ही एक घटना के विषय में आज हम जाननेवाले हैं ।
‘जल का महत्त्व, उसका शोध तथा उसका नियोजन, इसका संपूर्ण विकसित तंत्रज्ञान हमारे देश में था । कुछ सहस्त्र वर्ष पूर्व हम वह प्रभावी पद्धति से उपयोग कर रहे थे तथा उसके कारण हमारा देश वास्तव में ‘सुजलाम् सुफलाम्’…
सरकारी काम और ६ मास की प्रतीक्षा, इसकी प्रचीती प्रत्येक नागरिक को कभी ना कभी होती ही है । पैसे खाने की वृत्ति के कारण आज प्रशासनिक पद्धति आज सुचारू तथा सहज नहीं रही है । इसमें पीसा जाता है, केवल सामान्य नागरिक ! इसी सामान्य नागरिक को अब इन दुष्प्रवृत्तियों के विरुद्ध आवाज उठानी होगी !
१. व्युत्पत्ति एवं अर्थ अ. व्युत्पत्ति डॉ. रा.गो. भांडारकर कहते हैं कि ‘विष्णु’ शब्द का कन्नड अपभ्रंशित रूप ‘बिट्टि’ होता है तथा इस अपभ्रंश से ‘विठ्ठल’ शब्द बन गया । आ. अर्थ १. ईंट ठल (स्थल) = विठ्ठल अर्थ : जो ईंटपर खडा होता है, वह विठ्ठल है । २. h 5 > अर्थ : जो अज्ञानी … Read more
‘महर्षि व्यासजी ने श्रीमद्भागवत में लिखा है, ‘‘वैकुंठ में सभी लेग श्रीविष्णुजी की भांति दिखते हैं । केवल एक ही बात ऐसी है कि केवल श्रीविष्णुजी के शरीरपर ही ‘श्रीवत्स’ चिन्ह है ।
उत्तर प्रदेश राज्य की राजधानी लक्ष्मणपुरी (लखनऊ) से ९० कि.मी. की दूरीपर सीतापुर जनपद में नैमिषारण्य स्थित है । वह गंगा नदी के गंगानदी की उपनदी गोमती नदी के बाएं तटपर स्थित है ।
मलेशिया का नाम पहले मलक्का था । उस समय में वहां का सुल्तान राजा परमेश्वरा अपनी नई राजधानी की खोज करते-करते मलक्का गांव के पास आया ।
गुजरात के स्वामीनारायण संप्रदाय के गुरु स्वामी गोपालानंद सारंगपुर जब गांव में आए थे, तब उन्हें ज्ञात हुआ कि उस क्षेत्र में अनेक वर्षों से वर्षा होने से यह क्षेत्र वीरान हो गया है । तब उन्होंने हनुमानजी से प्रार्थना की और उनकी प्रेरणा से वहां हनुमानजी की स्थापना की । हनुमानजी के कारण संकट दूर होने से उस मंदिर को कष्टभंजन हनुमान मंदिर नाम पडा ।
१९.३.२०१९ को पू. (डॉ.) उलगनाथन्जी ने बताया, ‘‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के हिन्दू राष्ट्र स्थापना के कार्य में उत्पन्न बाधाएं दूर होने हेतु सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी गुजरात राज्य की राजधानी के पास जो गणेशजी का प्राचीन मंदिर है, उस मंदिर में जाकर वहां बैठकर ५ मिनटतक नामजप करें तथा इस मंदिर की जानकारी लें ।’’