शरयु तटपर स्थित मनुनिर्मितनगरी अयोध्या !
हिन्दुओं के उपास्यदेवता प्रभु श्रीरामचंद्रजी का जन्मस्थान है अयोध्यानगरी ! समय के तीव्रगति से आगे बढते समय अपने गौरवशाली इतिहास का अध्ययन एवं आचरण करना ही हिन्दुओं के लिए हितकारी होगा ।
हिन्दुओं के उपास्यदेवता प्रभु श्रीरामचंद्रजी का जन्मस्थान है अयोध्यानगरी ! समय के तीव्रगति से आगे बढते समय अपने गौरवशाली इतिहास का अध्ययन एवं आचरण करना ही हिन्दुओं के लिए हितकारी होगा ।
७.७.२०१९ से संत भक्तराज महाराज ने १००वें वर्ष में पदार्पण किया है । (यह दिन संत भक्तराज महाराज का १००वां जन्मदिवस) उन्हींकी कृपा से प्रेरणा लेकर उनके सभी भक्तों ने सर्वसम्मति से इस वर्ष को उनके शताब्दी वर्ष में मनाने का सुनिश्चित किया है ।
जिस पवित्र स्थानपर प्रभु रामचंद्रजी का राज्याभिषेक हुआ, उस पवित्र स्थान को अब ‘राजगद्दी’ कहा जाता है ।
कार्तिक शुक्ल पक्ष चतुर्दशी (११.११.२०१९) को पानवळ, बांदा (जनपद सिंधुदुर्ग, महाराष्ट्र) के प.पू. भगवानदास महाराज (प.पू. दास महाराज के पिता) का स्मृतिदिवस था । उसके उपलक्ष्य में यह लेख प्रकाशित कर रहे हैं ।
‘सूरदासजी ने प्रभु श्रीकृष्ण की नित्यनूतन पदों से शब्दपूजा करने का अपना नित्यक्रम जारी रखा । एक दिन पुजारी, अर्चनक (पूजा करनेवाला) और गोस्वामी के बच्चों में सूरदासजी की अद्भुत प्रतिभा के बारे में चर्चा प्रारंभ हुई ।
रंगोलीकी सात्त्विकता बढनेपर देवतातत्त्व अधिक मात्रामें आकर्षित होनेमें सहायता मिलती है ।
सनातन हिंदू धर्म में अनेक त्यौहार हैं । उस दिन वातावरण में त्यौहार से संबंधित विशिष्ट देवता का तत्त्व प्रचुर मात्रा में कार्यरत रहता है । इस तत्त्व का लाभ अधिक से अधिक होने हेतु प्रयास किए जाते हैं ।
भगवान दत्तात्रेय की पूजा से पूर्व तथा दत्त जयंती के दिन घर पर अथवा देवालय में दत्तात्रेय-तत्त्व आकर्षित और प्रक्षेपित करने वाली सात्त्विक रंगोलियां बनानी चाहिए ।
अध्यात्म में कर्मफलसिद्धांत को महत्त्वपूर्ण माना गया है । कर्म का फल अटल होता है । किए गए कर्मों का फल पाप-पुण्य के रूप में भोगना पडता है ।
‘रूट्स इन कश्मीर’के प्रवक्ता अमित रैना ने बताया, ‘‘वर्ष १९८६ के पश्चात धर्मांधों ने कश्मीर के कई मंदिरों को अपना लक्ष्य बनाया था ।