हिन्दू किसे कहना चाहिए ?

जो व्यक्ति (उत्तर-पश्चिम में) सिन्धु महानदी से (दक्षिण में) सिन्धु (हिन्द) महासागर तक फैले विशाल भूभाग को अपनी पितृभूमि (पूर्वजों की भूमि) और पुण्यभूमि मानता है, वह हिन्दू है ।

गुरुकुल शिक्षापद्धति

आजतक आपने अनेक बार भारत की प्राचीन गुरुकुल शिक्षापद्धति के विषय में सुना होगा । इस पद्धति की शिक्षा के विषय में हमें इतना ही पता होता है कि इसमें गुरु के घर जाकर अध्ययन करना पडता है ।

धर्म और नीति

नीति का मुख्य सिद्धांत है, एकता, मोक्ष अथवा समरसता का अनुभव करना । जिससे देवता के विषय में उचित ज्ञान बढाने में और उसके माध्यम से उनका दर्शन होने में सहायता हो, वह सब नीति है, अन्य सब अनीति है ।’

हिन्दुओ, हिन्दू धर्म की अद्वितीय विशेषताएं समझ लें !

प्राणिमात्र में ही नहीं, अपितु निर्जीव बातों में भी परमेश्वर का अस्तित्व होने के कारण हिन्दू धर्म में देवी-देवताओं की संख्या ३३ करोड है ।

हिंदूओं के देवता और उनकी कुल संख्या

सदैव कहा जाता है कि तैंतीस कोटि (करोड) देवता होते हैं । इसका अर्थ यह हुआ कि प्रमुख देवता तैंतीस हैं और प्रत्येक देवता के एक कोट गण, दूत आदि हैं ।

वेदाध्ययन का अधिकार

वेदाध्ययन में चारों वर्णों के बालकों का अधिकार है, किंतु गुण-कर्म से हीन का नहीं । गुण और कर्म ही उच्च और कनिष्ठ वर्ण के कारण हैं ।

शनि के साढे तीन पीठों में से एक है प्रभु श्री रामचंद्रजी के शुभहस्तों स्थापित राक्षसभुवन का श्री शनिमंदिर !

बीड जिले की गेवराई तालुका के राक्षसभुवन में श्री शनि मंदिर में पौष शुक्ल पक्ष अष्टमी को सायं शनिमहाराजजी का जन्मोत्सव मनाया जाता है । इसी निमित्त से प्रस्तुत है मंदिर की जानकारी !

महाबळेश्‍वर में श्रीकृष्णामाई का देवालय

महाबळेश्वर यहां श्री महाबळेश्वर, श्री पंचगंगा और श्री कृष्णादेवी के अति प्राचीन भव्य देवालय हैं । कुछ कामनिमित्त से महाबळेश्वर में जाने का योग आया था, तब श्री कृष्णामाई के दर्शन हेतु जानेपर ध्यान में आए सूत्र यहां प्रस्तुत कर रहा हूं ।

कोल्हापुर में अतिप्राचीन श्री एकमुखी दत्त मंदिर !

कोल्हापुर शहर में एकमुखी दत्त मंदिर की दत्त मूर्ति १८ वीं शताब्दी में बनी और नृसिंह सरस्वती महाराज, गाणगापुर; श्रीपाद वल्लभ महाराज और तदुपरांत स्वामी समर्थ ने इस मूर्ति की पूजा की है ।

पांडवों के वास्तव्य से पावन है एरंडोल (जलगांव) का पांडववाडा !

पांडववाडा की वास्तु का क्षेत्रफल ४५१५.९ चौरस मीटर है । कुछ समय पूर्व ही पांडववाडा के प्रवेशद्वार के पत्थर पर प्राचीनकालीन नक्काशी उकेरी गई है ।इसमें कमलफूलों की नक्काशी स्पष्ट दिखाई देती है ।