कंबोडिया में एक समय पर अस्तित्व में होनेवाली हिन्दुओं की वैभवशाली संस्कृति के पतन का कारण और वर्तमान स्थिति !

७ वीं शताब्दी से लेकर १५ वीं शताब्दी तक जिन्होंने कंबोडिया पर राज्य किया, उस साम्राज्य को खमेर साम्राज्य कहते हैं । इस खमेर साम्राज्य के राजा स्वयं को चक्रवर्ती अर्थात ‘पृथ्वी के राजा’ समझते थे ।

लाखों वर्षों का इतिहास प्राप्त और भारत से श्रीलंका में तलैमन्नार के छोर तक फैला रामसेतु : श्रीराम से अनुसंधान साधने का भावबंध !

तलैमन्नार के अंतिम छोर से २ कि.मी. चलते हुए जाने पर रामसेतु के दर्शन होते हैं । रामसेतु से देखने पर १६ छोटे द्वीप एकत्र होने समान ((द्वीपसमूह समान) दिखाई देते हैं ।) दिखाई देते हैं ।

थायलैंड की राजधानी बँकॉक में राजमहल की विशेषताएं !

राजा राम १ के बैंकॉक शहर में राजमहल बनवाने के पश्चात इसकी दीवारों पर रामायण के विविध प्रसंगाेंं के सुंदर चित्र रंगवाए हैं । चित्रों में राम, लक्ष्मण इत्यादि व्यक्तिरेखाओं के मुख और सभी के वस्त्र थायलैंड की पद्धतिनुसार हैं ।

मंदिर के निकट श्रीविष्णु की विशाल मूर्ति का लुटेरों द्वारा तोडा गया सिर दैवी संचार होनेवाले व्यक्ति के बताने पर पूर्ववत बनानेवाली कंबोडिया सरकार !

‘अंकोर वाट’ मंदिर के पश्चिम द्वार के मुख्य प्रवेशद्वार के ३ गोपुरों में से दाईं ओर के गोपुर में आज भी श्रीविष्णु की विशाल अष्टभुजा मूर्ति है ।

कांचीपुरम (तमिलनाडू) के श्री अत्तिवरद पेरुमल स्वामी !

सप्त मोक्षपुरियों में से एक मोक्षपुरी कांचीपुरम ! तमिलनाडू का कांचीपुर मंदिरों का मायका है; क्योंकि यहां शिवशक्ति और विष्णु सहित अन्य देवताओं के १००८ मंदिर हैं । शिवकांची और विष्णुकांची, ये जुडवां मोक्षपुरियां हैं ।

गुजरात का ‘द्वारकाधीश’ मंदिर और द्वारकापीठ

श्रीकृष्ण ने अवतार-समाप्ति के पहले द्वारका समुद्र में डुबो दी । दुर्वास ॠषि के शाप के कारण यदुकुल का नाश हुआ । समुद्र में विलीन द्वारका के समीप के भूभाग को तदनंतर द्वारका का स्थान प्राप्त हुआ ।

योगतज्ञ दादाजी वैशंपायनजी द्वारा स्थापित शेवगाव का जागृत दत्त मंदिर !

योगतज्ञ दादाजी ने स्वयं जयपुर से गर्भगृह की प्रसन्न, सजीव, मासूम, वात्सल्यमयी एवं तेजस्वी दत्त मूर्ति बनवाकर लाई है । दादाजी ने स्वयं दत्तमूर्ति में प्राण प्रोक्षण किए हैं, इस कारण मूर्ति प्रत्यक्ष हमसे बात कर रही है, ऐसा प्रतीत होता है ।

भगवान श्रीकृष्ण के अस्तित्व का अनुभव किए हुए कुछ स्थानों का छायाचित्रात्मक दिव्यदर्शन !

श्रीकृष्ण के प्रति उत्कट भाव बढाने के लिए उनके दिव्य जीवन से संबंधित गोकुल, वृंदावन एवं द्वारका, इन दैवी क्षेत्रों के छायाचित्र यहां दिए हैं । इन छायाचित्रात्मक कृतज्ञता के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण के अस्तित्व का अनुभव करने का प्रयत्न करते हैं !

जन्मकुंडली, हस्तसामुद्रिक और पादसामुद्रिक में भेद

हाथ और पैर की रेखाओं का संबंध पूर्वजन्म के कर्मों से होता है; इसलिए उन्हें ‘कर्मरेखा’ कहा गया है । कर्म करने से इन रेखाओं में सूक्ष्म परिवर्तन होते हैं । पश्चात, ये परिवर्तन स्थूलरूप में दिखाई देते हैं ।