५१ शक्तिपीठों में से एक श्री त्रिपुरसुंदरी देवी का त्रिपुरा स्थित जागृत मंदिर, वहां का इतिहास एवं विशेषताएं
महाराज ज्ञान माणिक्य ने वर्ष १५०१ में उस समय में जानेवाले रंगमती नामक स्थानपर अर्थात आज की इस टिलीपर त्रिपुरसुंदरी देवी की स्थापना की ।
महाराज ज्ञान माणिक्य ने वर्ष १५०१ में उस समय में जानेवाले रंगमती नामक स्थानपर अर्थात आज की इस टिलीपर त्रिपुरसुंदरी देवी की स्थापना की ।
हिमाचल प्रदेश का श्री ज्वालादेवी मंदिर, देश के महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थलों तथा ५१ शक्तिपीठों में एक है ! यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगडा जनपद में है । राज दक्ष के हाथों अपने पति शिव का अनादर न सह पाने के कारण सती ने यज्ञ में अपनी आहुति दी थी । उससे शिव को बहुत … Read more
१. शिवगंगा गांव के निकट भागंप्रियादेवी का जागृत स्थान तथा इतिहास १ अ. पार्वती का तप:स्थान इस स्थान पर देवी पार्वती ने शिवजी को प्राप्त करने हेतु तपस्या की थी । यहां पर शिवालय भी है । ऐसा कहा जाता है कि इसी स्थान पर देवी पार्वती यह कहते हुए कि मुझे शिव ही पति के … Read more
गोंडा, उत्तरप्रदेश के मुकुंदनगर गांव में श्री वाराहीदेवी का मंदिर है । मंदिर में अति प्राचीन वटवृक्ष है । जिसकी शाखाएं मंदिर परिसर में फैली हैं । श्री वाराहीदेवी उत्तरी भवानीदेवी के नाम से भी विख्यात हैं ।
महालक्ष्मी पीठ अपने सर्व ओर लट्टूसमान वलयांकित ज्ञानशक्तिका भ्रमण दर्शित करता है । भवानी पीठ अपने केंद्रबिंदुसे क्रियाशक्तिका पुंज क्षेपित करता है, तो रेणुका पीठ क्षात्रतेजसे आवेशित किरणोंका क्षेपण करता है ।
उज्जैन, मध्य प्रदेश के प्रमुख मंदिरों में श्री हरसिद्धि देवी मंदिर की गणना होती है । यह देवी राजा विक्रमादित्य की कुलदेवी थीं ।
सतना, मध्यप्रदेश स्थित रामगिरि पर्वत पर श्री शारदा देवी का मंदिर है । श्री विष्णु ने शिव की पीठ पर विद्यमान माता सती की निष्प्राण देह के सुदर्शन चक्र से ५१ टुकडे किए । जहां जहां वे गिरे, वहां शक्तिपीठ निर्मित हुआ । यहां सती देवी का दाहिना स्तन गिरा था ।
लगभग प्रतिदिन अनेक मंदिरों में ले जाकर महर्षि हमसे भिन्न-भिन्न धार्मिक कृत्य करने के लिए कहते हैं तथा प्रार्थनाएं भी करवाते हैं । अनिष्ट शक्तियों के निवारणार्थ किए जानेवाले कृत्य देवालय में करने से इसमें होनेवाले अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण से अपनेआप ही रक्षा होने में सहायता मिलना |
श्री तनोटमाता मंदिर, राजस्थान राज्य के जैसलमेर जनपद से १३० किलोमीटर दूर थार मरुस्थल (रेगिस्तान) में भारत-पाकिस्तान की सीमा पर स्थित है । भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय हुई अद्भुत घटनाओं के कारण यह मंदिर विख्यात है ।
काशी के दुर्गाघाट पर श्री ब्रह्मचारिणी देवी का मंदिर है । शारदीय नवरात्रि के दूसरे दिन श्री ब्रह्मचारिणी देवी की पूजा की जाती है । देवी के प्रति श्रद्धालुओं का विश्वास है कि ‘इस देवी के दर्शन से परब्रह्म की प्राप्ति होती है |