श्री गणपति अथर्वशीर्ष

‘गणपति अथर्वशीर्ष’ यह श्री गणेश का दूसरा सर्वपरिचित स्तोत्र है । ‘अथर्वशीर्ष’ का ‘थर्व’ अर्थात ‘उष्ण.’ अथर्व अर्थात शांति’ एवं ‘शीर्ष’ अर्थात ‘मस्तक’ । जिसके पुरश्‍चरण से शांति मिलती है, वह है ‘अथर्वशीर्ष’ ।

स्वयंभू गणेशमूर्ति

श्री विघ्नेश्‍वर, श्री गिरिजात्मज एवं श्री वरदविनायक की मूर्तियां स्वयंभू हैं । बनाई गईं श्री गणेशमूर्ति की तुलना में स्वयंभू गणेशमूर्ति में चैतन्य अधिक होता है । स्वयंभू गणेशमूर्ति द्वारा वातावरणशुद्धी का कार्य अनंत गुना अधिक होता है ।

सनातन-निर्मित सात्त्विक श्री गणेश मूर्ति

श्री गणपतिके हाथकी लंबाई, मोटाई, आकार अथवा मुकुटकी कलाकृतियोंमें थोडा भी परिवर्तन करनेपर पूरे स्पंदन परिवर्तित हो जाते हैं ।

दुष्टों के निर्दालन के लिए ब्राह्म तथा क्षात्र तेज का उत्तम उपयोग करनेवाले योद्धावतार भगवान परशुराम ! 

सत्ययुग में मत्स्य, कूर्म, वराह, नृसिंह तथा वामन ये श्रीविष्णु के ५ अवतार हुए । त्रेतायुग के प्रारंभ में महर्षि भृगु के गोत्र में जामदग्नेय कुल में महर्षि जमदग्नी तथा रेणुकामाता के घर श्रीविष्णु ने अपना छठा अवतार लिया ।

बुद्धि, बल, कीर्ति, धैर्य तथा निर्भयता प्रदान करनेवाले पंचमुखी हनुमान !

जिस प्रकार से वैकुंठ में भगवान विष्णुजी की सेवा करने में गरुड व्यस्त रहता है, उसी प्रकार से हनुमानजी सदैव श्रीरामजी की सेवा में व्यस्त रहते हैं । गरुड ने अपनी माता को दासता से छुडाने के लिए, स्वर्ग से अमृत लाकर दिया था । उसी प्रकार से हनुमानजी मूर्च्छित लक्ष्मण के लिए संजीवनी वनस्पति लेकर आए ।

भक्ति – भाव वृद्धिंगत करनेवाले, हनुमानजी के कुछ पराक्रमों का स्मरण !

बुद्धिजीवियो, आपके सामने केवल २ ही विकल्प हैं, एक तो आप हनुमानजी की भांति न्यूनतम एक पराक्रम करने के लिए सिद्ध हो जाएं अथवा हनुमानजी के निम्न अतुलनीय पराक्रमों को स्वीकार कर अपनी हार स्वीकार करें !