शनैश्चर देवता का माहात्म्य !
महाराष्ट्र के शनिशिंगणापुर में शनिदेव काली बडी शिला के रूप में है और वहां शनिदेव की शक्ति कार्यरत है । इसलिए शनिशिंगणापुर शनि का कार्यक्षेत्र है ।
पंढरपुर के देवता श्री विठ्ठल
१. व्युत्पत्ति एवं अर्थ अ. व्युत्पत्ति डॉ. रा.गो. भांडारकर कहते हैं कि ‘विष्णु’ शब्द का कन्नड अपभ्रंशित रूप ‘बिट्टि’ होता है तथा इस अपभ्रंश से ‘विठ्ठल’ शब्द बन गया । आ. अर्थ १. ईंट ठल (स्थल) = विठ्ठल अर्थ : जो ईंटपर खडा होता है, वह विठ्ठल है । २. h 5 > अर्थ : जो अज्ञानी … Read more
श्रीविष्णुजी के दिव्य शरीरपर विद्यमान ‘श्रीवत्स’ चिन्ह
‘महर्षि व्यासजी ने श्रीमद्भागवत में लिखा है, ‘‘वैकुंठ में सभी लेग श्रीविष्णुजी की भांति दिखते हैं । केवल एक ही बात ऐसी है कि केवल श्रीविष्णुजी के शरीरपर ही ‘श्रीवत्स’ चिन्ह है ।
श्रीदत्त के चित्र में विद्यमान त्रिदेवों की कांति भिन्न होने तथा एक जैसी होने में अंतर का आध्यात्मिक कारण !
वर्ष २०१९ के सनातन पंचांग के दिसंबर मास के पृष्ठपर श्रीदत्त का नया चित्र प्रकाशित हुआ है । इस चित्र में श्रीदत्त के संपूर्ण शरीर की कांति तथा श्रीदत्त के तीनों मुखों की कांति सुनहरी रंग की दिखाई गई है ।
श्री महालक्ष्मीदेवी के मंदिर में हुए किरणोत्सव का सूक्ष्म-परीक्षण
श्री महालक्ष्मीदेवी के मंदिर में आनेवाली कालानुरूप तारक-मारक तत्त्वों से सुसज्जित सूर्यकिरणें देवी के शक्तिरूपी कार्य से संबंधित हैं और उस काल में वायुमंडल को शुद्ध करती हैं । यह, एक प्रकार से वायुमंडल में रज-तम की प्रबलता दूर करने के लिए की गई प्राकृतिक व्यवस्था है ।
श्रीगणेशजी को अडहुल के पुष्प अर्पण करें
देवताओंको पुष्प अर्पित करनेका मुख्य उद्देश्य : देवताओंसे प्रक्षेपित स्पंदन मुख्यतः निर्गुण तत्त्वसे संबंधित होते हैं । देवताओंको अर्पित पुष्प तत्त्व ग्रहण कर पूजकको प्रदान करते हैं, जिससे पुष्पमें आकर्षित स्पंदन भी पूजकको मिलते हैं ।
गणेशपूजनमें दूर्वाका विशेष महत्त्व
दुः + अवम्, इन शब्दोंसे दूर्वा शब्द बना है । ‘दुः’ अर्थात दूरस्थ एवं ‘अवम्’ अर्थात वह जो पास लाता है । दूर्वा वह है, जो श्री गणेशके दूरस्थ पवित्रकोंको पास लाती है ।
विठ्ठल का मूर्तिविज्ञान
मूर्ति की कमर का नीचला भाग ब्रह्मास्वरूप, कमर से लेकर गर्दनतक का भाग श्रीविष्णुस्वरूप, तो मस्तक का भाग शिवस्वरूप है ।
मयूरेशस्तोत्रम्
यह स्तोत्र साक्षात् ब्रह्माजी ने ही कहा है । इसकी फलश्रुति का वर्णन गणेश भगवान ने इसप्रकार किया है – ‘इससे कारागृह के निरपराध कैदी ७ दिनों में मुक्त हो जाते हैं । स्तोत्र भावपूर्ण कहने से फलनिष्पति मिलती है ।