श्रीक्षेत्र राक्षसभुवन का आदि दत्तपीठ : वरद दत्तात्रेय मंदिर !
महाराष्ट्र के बीड जनपद के गेवराई तहसील में गोदावरी नदी के दक्षिण तट पर बसा एक पवित्र दत्तपीठ !! जो अब ‘श्री राक्षसभुवन’ के नाम से जाना जाता है ।
महाराष्ट्र के बीड जनपद के गेवराई तहसील में गोदावरी नदी के दक्षिण तट पर बसा एक पवित्र दत्तपीठ !! जो अब ‘श्री राक्षसभुवन’ के नाम से जाना जाता है ।
दक्षिण काशी के नाम से विख्यात, महाराष्ट्र के नासिक जनपद के निकट ‘त्र्यम्बकेश्वर’ नामक ज्योतिर्लिंग है ।
‘चतुर्थी’ तिथि के देवता श्री गणेशजी हैं; क्योंकि वे विघ्न दूर करनेवाले हैं । हमारी संस्कृति में श्रीगणेश एवं श्रीसरस्वती, इन दोनों देवताओं का बुद्धिदाता देवता के रूप में वर्णन है; परंतु इन दोनों देवताओं के कार्य भिन्न हैं ।
रंगोलीकी सात्त्विकता बढनेपर देवतातत्त्व अधिक मात्रामें आकर्षित होनेमें सहायता मिलती है ।
सनातन हिंदू धर्म में अनेक त्यौहार हैं । उस दिन वातावरण में त्यौहार से संबंधित विशिष्ट देवता का तत्त्व प्रचुर मात्रा में कार्यरत रहता है । इस तत्त्व का लाभ अधिक से अधिक होने हेतु प्रयास किए जाते हैं ।
भगवान दत्तात्रेय की पूजा से पूर्व तथा दत्त जयंती के दिन घर पर अथवा देवालय में दत्तात्रेय-तत्त्व आकर्षित और प्रक्षेपित करने वाली सात्त्विक रंगोलियां बनानी चाहिए ।
विशिष्ट आकृतिबन्धमें पुष्प इस प्रकार चढाएं कि वे आडे-तिरछे न दिखाई दें । अध्यात्मका एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है – सत्यम्-शिवम्-सुन्दरम् ।
महालक्ष्मी पीठ अपने सर्व ओर लट्टूसमान वलयांकित ज्ञानशक्तिका भ्रमण दर्शित करता है । भवानी पीठ अपने केंद्रबिंदुसे क्रियाशक्तिका पुंज क्षेपित करता है, तो रेणुका पीठ क्षात्रतेजसे आवेशित किरणोंका क्षेपण करता है ।
‘हमारे जीवन में कहीं तो न्यूनता है अथवा हमारी इच्छा अपूर्ण है’, ऐसा लगना, इसे उच्छिष्ट कहा जाता है ।
बाढग्रस्त प्रदेशों में जिन हिन्दुओं को आर्थिक समस्या के कारण श्री गणेशमूर्ति की प्रतिष्ठापना करना संभव नहीं है, वे गणेशोत्सव के समय में भावभक्ति के साथ श्रीगणेशजी की उपासना करें ।