कोल्हापुर में अतिप्राचीन श्री एकमुखी दत्त मंदिर !
कोल्हापुर शहर में एकमुखी दत्त मंदिर की दत्त मूर्ति १८ वीं शताब्दी में बनी और नृसिंह सरस्वती महाराज, गाणगापुर; श्रीपाद वल्लभ महाराज और तदुपरांत स्वामी समर्थ ने इस मूर्ति की पूजा की है ।
कोल्हापुर शहर में एकमुखी दत्त मंदिर की दत्त मूर्ति १८ वीं शताब्दी में बनी और नृसिंह सरस्वती महाराज, गाणगापुर; श्रीपाद वल्लभ महाराज और तदुपरांत स्वामी समर्थ ने इस मूर्ति की पूजा की है ।
महाराष्ट्र के बीड जनपद के गेवराई तहसील में स्थित श्रीक्षेत्र राक्षसभुवन में गोदावरी में श्री पांचालेश्वर मंदिर है ।
महाराष्ट्र के बीड जनपद के गेवराई तहसील में गोदावरी नदी के दक्षिण तट पर बसा एक पवित्र दत्तपीठ !! जो अब ‘श्री राक्षसभुवन’ के नाम से जाना जाता है ।
भगवान दत्तात्रेय की पूजा से पूर्व तथा दत्त जयंती के दिन घर पर अथवा देवालय में दत्तात्रेय-तत्त्व आकर्षित और प्रक्षेपित करने वाली सात्त्विक रंगोलियां बनानी चाहिए ।
वर्ष २०१९ के सनातन पंचांग के दिसंबर मास के पृष्ठपर श्रीदत्त का नया चित्र प्रकाशित हुआ है । इस चित्र में श्रीदत्त के संपूर्ण शरीर की कांति तथा श्रीदत्त के तीनों मुखों की कांति सुनहरी रंग की दिखाई गई है ।
दत्त अर्थात वह जिसने निर्गुणकी अनुभूति प्राप्त की है; वह जिसे यह अनुभूति प्रदान की गई है कि ‘मैं ब्रह्म ही हूं, मुक्त ही हूं, आत्मा ही हूं ।’ भक्तोंका चिंतन करनेवाले अर्थात भक्तोंके शुभचिंतक श्री गुरुदेव दत्त हैं ।
जगतकी प्रत्येक वस्तु ही गुरु है; क्योंकि प्रत्येक वस्तुसे कुछ न कुछ सीखा जा सकता है । बुराईसे हम सीखते हैं कि कौनसे दुर्गुणोंका परित्याग करना चाहिए तथा अच्छाईसे यह शिक्षा मिलती है कि कौनसे सद्गुण अपनाने चाहिए ।
भगवान दत्तात्रेय गुरुतत्त्वका कार्य करते हैं, इसलिए जबतक सभी लोग मोक्ष प्राप्त नहीं कर लेते, तबतक दत्त देवताका कार्य चलता ही रहेगा । भगवान दत्तात्रेयने प्रमुखरूपसे कुल सोलह अवतार धारण किए ।
दत्तात्रेयके चित्रमें विद्यमान ४ श्वान चार वेदोंके प्रतीक होनेके कारण उनके स्थानपर आगे दिए अनुसार चार विविध रंगोंके वलय दिखाई दिए ।
सात्त्विक अक्षरोंमें चैतन्य होता है । सात्त्विक अक्षर और उनके चारों ओर निर्मित देवतातत्त्वके अनुरूप चौखटसे युक्त संबंधित देवताके नामजपकी पट्टियां सनातन बनाता है ।