शिष्यभाव का महत्त्व
साधना में साधक के लिए शिष्यभाव में रहना बहुत महत्त्वपूर्ण होता है । वह जब शिष्य बनता है, तब उसकी आगे की प्रगति गुरुकृपा से ही होती है । शिष्य बनने पर ही, गुरु साधक का पूरा दायित्व लेते हैं ।
साधना में साधक के लिए शिष्यभाव में रहना बहुत महत्त्वपूर्ण होता है । वह जब शिष्य बनता है, तब उसकी आगे की प्रगति गुरुकृपा से ही होती है । शिष्य बनने पर ही, गुरु साधक का पूरा दायित्व लेते हैं ।
महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की ओर से सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी तथा छात्र-साधकों द्वारा की गई रामायण से संबंधित श्रीलंका की अध्ययन यात्रा ! रामायण में जिस भूभाग को लंका अथवा लंकापुरी कहा जाता है, वह स्थान है आज का श्रीलंका देश ! त्रेतायुग में श्रीमहाविष्णुजी ने श्रीरामावतार धारण किया तथा लंकापुरी जाकर रावणादि असुरों का नाश किया ।
आध्यात्मिक उन्नति हेतु जो गुरु द्वारा बताई साधना करता है, उसे ‘शिष्य’ कहते हैं । शिष्यत्व का महत्त्व यह है कि उसे देवऋण, ऋषिऋण, पितरऋण एवं समाजऋण चुकाने नहीं पडते ।
रामायण में जिस भूभाग को लंका अथवा लंकापुरी कहा गया है, वह स्थान आज का श्रीलंका देश है । त्रेतायुग में श्रीमहाविष्णुजी ने श्रीरामावतार धारण किया तथा लंकापुरी जाकर रावणादि असुरों का नाश किया । इस स्थानपर युगों-युगों से हिन्दू संस्कृति ही थी ।
इंडोनेशिया के बाली द्वीप पर ८७ प्रतिशत लोग हिन्दू हैं । बाली के मंदिरों को ‘पूरा’ नाम से जाना जाता है । उनमें पूरा बेसाखी, पूरा तीर्थ एंपूल, पूरा तनाह लोट और पूरा उलुवातू प्रमुख हैं । आज हम उनमें से पूरा तीर्थ एंपूल, पूरा तनाह लोट और पूरा उलुवातू , इन मंदिरों की जानकारी लेंगे ।
इंडोनेशिया के लोग विविध प्रकार की विशेषतापूर्ण बाटिक नक्काशीवाले कपडों में घूमते हुए दिखाई देते हैं । इस विषय में अधिक जानकारी लेते समय यह ध्यान में आया कि प्रत्येक प्रकार की नक्काशी का एक अलग अर्थ तथा अलग महत्त्व होता है ।
विश्व में ऐसे अनेक देश हैं, जिनके पोस्ट के टिकटों पर, चलन के नोटों पर, हिन्दू देवताओं के चित्र हमें देखने मिलते हैं । श्रीलंका, थाइलैंड, इंडोनेशियाआदि देशोंं में आज भी हमें रामायण से संबंधित हिन्दू देवताओं पर आधारित चित्रवाले पोस्ट के टिकट, पोस्टकार्ड दिखाई देते हैं ।
प्राचीन काल में जिसे श्याम देश कहा जाता था, वह भूभाग है, आज का थाईलैंड देश ! इस भूभागपर अभीतक अनेक हिन्दू तथा बौद्ध राजाआें ने राज्य किया । यहां की संस्कृति हिन्दू धर्मपर आधारित थी; परंतु कालांतर से बौद्धों के सांस्कृतिक आक्रमण के कारण इस स्थानपर बौद्ध धर्म प्रचालित हुआ ।
महाभारत में जिस भूभाग का उल्लेख कंभोज देश किया गया है, वह भूभाग है आज का कंबोडिया देश ! यहां १५वीं शताब्दीतक हिन्दू रहते थे । वर्ष ८०२ से लेकर १४२१ की अवधि में वहां खमेर नामक हिन्दू साम्राज्य था, साथ ही कंभोज देश एक नागलोक भी था ।
‘महाभारत में जिस भूभाग को ‘कंभोज देश’ संबोधित किया गया है, वह भूभाग आज का कंबोडिया देश ! यहां १५ वें शतक तक हिन्दू रहते थे । ऐसा कहा जाता है की ‘ईसवी सन ८०२ से १४२१ तक वहां ‘खमेर’ नाम का हिन्दू साम्राज्य था’ ।