गुरु को कैसे पहचानें ?
गुरु अर्थात ईश्वर का साकार रूप व ईश्वर अर्थात गुरु का निराकार रूप, ऐसे शास्त्र बताते हैं ।
गुरु अर्थात ईश्वर का साकार रूप व ईश्वर अर्थात गुरु का निराकार रूप, ऐसे शास्त्र बताते हैं ।
मंदिरों में देवता का पूजन करते समय उपचार के अंतर्गत दर्पण उपचार में देवता को दर्पण दिखाते हैं अथवा दर्पण से सूर्य की किरण भगवान की ओर परावर्तित करते हैं ।
अयोध्यानगरी सूर्यवंशी राजाओं की राजधानी है । उनकी कुलदेवी श्री देवकालीदेवी है । त्रेतायुग में सूर्यवंशी दशरथ राजा के घर में श्रीराम का जन्म हुआ ।
प्रतीक अर्थपूर्ण, सामर्थ्यशाली और प्रभावशाली होते हैं । इसीलिए हमें अपना राष्ट्रध्वज भी कई गुना सर्वश्रेष्ठ लगता है । हमारा तिरंगा झंडा प्रत्येक भारतीय के प्राण एवं आत्मा का प्रतीक है ।
गुरु ही हमारे हृदय में वास कर हमारा प्रतिपालन करते हैं, हमारा हाथ पकडकर हमें साधनापथ पर आगे-आगे ले जाते हैं और हमारे कल्याण के लिए सर्व करते हैं । तो हमें किस बात का अभिमान है ?
गुरु द्वारा कोई सेवा बताई जाने पर वह करना, यह मात्र चाकर (नौकर) अथवा दूत समान हुआ; परंतु गुरु को जो अभिप्रेत है (अर्थात ‘श्री’ गुरु की इच्छा जानकर), वह करना सद्शिष्य का लक्षण है ।
‘इंडोनेशिया एक द्वीपसमूह और मुसलमानबहुल राष्ट्र है, तब भी यहां पर महान हिन्दू संस्कृति की जडें गहरी पाईं गईं हैं ।
हमारे दक्षिण-पूर्व राष्ट्रों के दौरे पर जानकारी मिली की इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप पर कपूर के वृक्ष हैं और उससे शुद्ध भीमसेनी कपूर मिलता है ।
प्राचीन काल में नैनातीवू को नागद्वीप नाम से पहचाना जाता था । यहां शक्तिपीठ के स्थान पर देवी का एक मंदिर है । उस देवी का नाम नागपुषाणी देवी है ।
कैन्डी शहर के इस बौद्ध मंदिर के पिछले भाग में एक संग्रहालय है । १७ बौद्ध देशों ने इस संग्रहालय के लिए अपने-अपने देशों से विविध विशेषतापूर्ण वस्तुएं और प्रतिकृतियां (रेप्लिकाज) दी हैं । इस संग्रहालय में भारत का सबसे बडा दालान है ।